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किसी ने पिता खोया, किसी ने पति... पढ़ें 1984 दंगे की पीड़ित पप्पी और लक्ष्मी की कहानी

1984 के सिख विरोधी दंगों ने अनगिनत परिवारों की ज़िंदगी को तहस-नहस कर दिया था. पप्पी कौर और लक्ष्मी कौर उस दंगों की पीड़ितों में से हैं, जिन्होंने अपना लगभग पूरा परिवार ही खो दिया. इस मामले में आरोपी सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, जिसके बाद मामला फिर से चर्चा में बना हुआ है.

सिख विरोधी दंगे की पीड़ित पप्पी और लक्ष्मी सिख विरोधी दंगे की पीड़ित पप्पी और लक्ष्मी
अमित भारद्वाज
  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 6:35 AM IST

1984 के सिख विरोधी दंगे ने अनगिनत परिवारों को गहरा आघात पहुंचाया था. पप्पी कौर और लक्ष्मी कौर उन दुर्भाग्यपूर्ण पीड़ितों में शामिल हैं जिन्होंने अपने अधिकांश परिवार को खो दिया. पप्पी के पिता और परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों की हत्या कर दी गई थी और लक्ष्मी के पति की भी इसी क्रूरता से मौत हो गई.

इन महिलाओं ने वर्षों तक न्याय के लिए संघर्ष किया और अदालत की कार्यवाहियों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. सज्जन कुमार को हाल ही में उम्रकैद की सजा मिलने के बाद यह घटना फिर से चर्चा में है. अब, लगभग 40 वर्षों बाद, उन्हें कुछ राहत मिली है, लेकिन न्याय का इंतजार और परिवार के खोने का दर्द बरकरार है.

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पप्पी कौर ने बताई आपबीती

पप्पी कौर उस समय महज 15 वर्ष की थीं जब उनके पिता इंदर सिंह और उनके परिवार के 9 अन्य पुरुष सदस्यों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

वह बताती हैं, "जब हम सेना द्वारा तैनाती के बाद अपने घर (त्रिलोकपुरी) लौटे, तब हमें केवल पिताजी की पगड़ी मिली." पप्पी बताती हैं, "हमने पिताजी का फोटो, उनकी पगड़ी और भाई की एक तस्वीर पाई."

पप्पी के पास उनके पिता इंदर सिंह की एक तस्वीर है जिसमें वे "पांच प्यारे" के रूप में सजे हुए हैं. पप्पी भावुक हो जाती हैं जब वे कहती हैं, "उन पांच प्यारे में से न तो कोई जीवित है, सभी मारे गए."

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लक्ष्मी कौर का दर्द भी कम नहीं

लक्ष्मी कौर की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं है. 1984 में उनके पति ग्यान सिंह की हत्या कर दी गई थी. उस समय वे सुल्तानपुरी बी 3 में रहती थीं. पति की मौत के बाद महीनों तक उन्होंने गुरुद्वारे और सदर बाजार पुलिस स्टेशन में शरण ली. 1985 में वे त्रिलोकपुरी आ गईं जहां कई सिख दंगे के बचे हुए लोग रहते हैं.

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यह दोनों महिलाएं, विशेषकर पप्पी कौर, अभियुक्तों के हर कानूनी कार्यवाही में उपस्थित रहती हैं. वह कहती हैं, "सज्जन कुमार को बड़ी उम्र में सजा मिलनी चाहिए थी ताकि वे हमारा दर्द महसूस कर सकते. हमारे परिवार के सदस्य जिंदा जला दिए गए. हम न्याय के इंतजार में जी रहे हैं."

लक्ष्मी कौर कहती हैं, "40 साल बाद, हमने कुछ सुना है. इतने वर्षों से हम केवल न्याय के लिए रो रहे हैं." वे सवाल करती हैं कि कांग्रेस सरकार के समय सिर्फ एक एफआईआर हुई, 10-10 हत्याओं के बावजूद, क्या ये अन्याय नहीं है.

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