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...ताकि न बने कोई अतुल सुभाष, इसलिए 10 साल से 'मर्द का दर्द' सुन रही Men's हेल्पलाइन

AI इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड केस के बाद 'सिस्टम' पर नई बहस शुरू हो गई है. अचानक ही रेप से लेकर दहेज कानून के आरोपी पुरुष, विक्टिम की श्रेणी में आ गए हैं. सोशल मीडिया पर कई यूजर्स तो यहां तक कह रहे हैं कि मर्दों को सुनने वाला कोई नहीं है, उन्हें फंसाया जा रहा है. इस बीच पुरुषों की हेल्पलाइन 8882498498 भी काफी ट्रेंड करती रही. आइए जानते हैं कि कौन लोग ये हेल्पलाइन चला रहे हैं और इसके पीछे का मकसद क्या है.

Photo: Generative AI by Vani Gupta/Aaj Tak Photo: Generative AI by Vani Gupta/Aaj Tak
मानसी मिश्रा
  • नई द‍िल्ली ,
  • 16 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:56 PM IST

साल 2022 की वो रात, अचानक लुधियाना से एक लड़के का फोन आया. वो आईटी इंजीनियर था. उसकी मां, छोटी बहन और उस पर 498, 406, 376 आदि धाराओं पर मुकदमा किया हुआ था. लड़की के परिवार का राजनीतिक रसूख था,  लड़के ने रोते-रोते फोन किया और कहा कि अब कोई रास्ता नहीं है, मरना ही इकलौता विकल्प है. किसी के पास जाता हूं तो मजाक उड़ाता है, पुलिस से लेके महिला आयोग हर जगह गया. मेरी जॉब चली गई, वजन 75 से 62 किलो रह गया...

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Men's हेल्पलाइन नंबर पर आई इस कॉल का जिक्र करते हुए इससे जुड़े सदस्य ने कहा कि ये भी कोई अतुल सुभाष था जिसे हमने बचा लिया. आज वो अपना मुकदमा लड़ रहा है. ऐसी तमाम कॉल्स हम हर दिन अटेंड कर रहे हैं. तो आइए जानते हैं कि आखिर ऐसी हेल्पलाइन का होना आज कितना जरूरी हो गया है. 

बैंड बाजे के साथ घर में आई बहू अगर अचानक दहेज का मुकदमा कर देती है तो पूरा परिवार सकते में आ जाता है. फिर अगर ये मुकदमा पूरी तरह झूठ की बुनियाद पर हो तो हालात और खराब हो जाते हैं. ऐसे में सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट तो लगती ही है,  कोर्ट कचहरी की एक अंतहीन यात्रा परिवार को बेदम कर देती है. अगर इन हालात पर कोई मर्द टूटकर बिखर जाता है और सिस्टम से लड़ने में अक्षम हो जाता है तो उसे अपने सामने अंधकार ही दिखता है, कई लोग अवसादग्रस्त होकर आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं. इस पूरी प्रोसेस के बीच अब जो वाजिब सवाल उठ रहा है, वो ये कि अगर पुरुष की कोई गलती न हो तो उसे सुनने वाला कौन है? 

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पुरुषों को सुनने के लिए न कोई पुरुष आयोग है न सरकार की कोई हेल्पलाइन. लेकिन, आज फर्जी तरीके से महिलाओं के केसेज में फंसे ऐसे ही पुरुषों की आवाज सुनने वाले कई मंच बन गए हैं. इन्हीं में से एक है मेंस हेल्पलाइन यानी पुरुषों की ऐसी हेल्पलाइन जिसकी नींव रखने वालों से लेकर इसे संचालित करने वाले ज्यादातर लोग महिला कानूनों वाले मुकदमों से ही जूझ रहे हैं. इसी हेल्पलाइन का खास अंग सेव इंडियन फैमिली चंडीगढ़ के प्रेसिडेंट रोहित डोगरा से हमने बात की.

रोहित बताते हैं कि साल 2005 से एक पहल ऐसे लोगों द्वारा शुरू की गई जिन पर 498 का फर्जी केस था. इनमें दिल्ली से स्वरूप सरकार, वासिफ अली और चेन्नई से सुरेश राम आदि ने मिलकर अपने जैसे लोगों को जोड़ना शुरू किया था. रोहित आगे कहते हैं कि उस दौर में 498 का कानून बहुत सख्त होता था. तब परिवार में जिसका भी नाम एफआइआर में होता था, मां-बाप, बहन, रिश्तेदार, दोस्त या दूर के दोस्त सबको पुलिस उठा लेती थी. उस वक्त हमने याहू मेल पर आईडी बनाया जिससे लोग जुड़ने लगे. कई लोगों के जुड़ने के बाद साल 2014 में हमने हेल्पलाइन शुरू की.

आज 40 से ज्यादा संगठन एक साथ कर रहे मदद 

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रोहित कहते हैं कि वो शुरुआत भले ही छोटी थी, लेकिन आज 40 से ज्यादा NGO हमसे जुड़ चुके हैं. मसलन मुंबई में वास्तव , यूपी में दामन, नागपुर में सेफ जियो नागपुर, गुजरात में सवंता, मुंबई में मेन वेलफेयर इसी तरह दिल्ली पंजाब और दूसरे प्रदेशों से संस्थाएं जुड़ी हैं. ये वो संस्थाएं हैं जो पुरुषों के अधिकार और उनके कल्याण पर काम कर रही हैं. 

हर महीने आती हैं 5000 से ज्यादा कॉल्स

इसमें एक ही आईवीआर में कॉल जाता है. इसके बाद कॉलर को अपना स्टेट चूज करना होता है, जैसे आपने नॉर्थ इंडिया चूज किया तो नौ लोगों को एक साथ कॉल जाती है, इनमें से कोई न कोई कॉल अटेंड जरूर करता है. ये वो लोग होते हैं जो अपना केस लड़ने के अलावा निजी जिंदगी में कहीं न कहीं अपना जॉब या व्यवसाय कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात कि हेल्पलाइन या हमारे द्वारा दी जाने वाली कोई भी सेवा पेड नहीं है. सभी 40 एनजीओ सेल्फ फंडेड फॉर्म में इसे चलाते हैं. हमने मई में हेल्पलाइन के 10 साल कंप्लीट कर लिए. संसाधनों और जागरूकता की कमी है लेकिन हम लोग अपनी कमाई के कुछ हिस्से को इसमें लगाते हैं. 

कॉल के बाद कैसे मिलती है मदद 

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रोहित ने बताया कि हमें ज्यादातर वही लोग कॉल करते हैं जिन पर 498 या दूसरे महिला संबंध‍ित कानूनों की एफआईआर हो चुकी होती है. हम पहले उन्हें संबंधित शहर में हर हफ्ते शनिवार-रविवार होने वाली मीटिंग में बुलाते हैं. वहां उनके कागजात स्टडी किए जाते हैं, काउंसिलिंग की जाती है. उन्हें बताया जाता है कि कैसे चार्जशीट फाइल होती है, उसे कोर्ट में लेने से पहले आपको कैसे देखना है कि चार्जशीट सही से तैयार हुई है या नहीं. उसके लिए पहले एनेक्शर पढ़िए, फिर चेक करिए. फिर आप कोर्ट को बताइए कि ये अधूरी है या कहां गलत है. फिर जज कहते हैं कि इसे कंप्लीट करें. उसके बाद जो चार्ज लगते हैं वो आपको आंखें बंद करके सभी धाराएं नहीं लगवा लेनी, उसके लिए आपको बहस करनी होगी.

जैसे एफआईआर की कॉपी सरकारी वकील के पास होती है, वो वकीलों की ड्राफ्ट कराई हुई होती है. वही रीडर को टाइप करा देता है. जब मजिस्ट्रेट के सामने लड़की बयान देती है, तब वो जुबानी अपना बयान रखेगी तो हमारा वकील क्रॉस करता है. जैसे आपको कब मारा, सामने कौन था, जब मारा तो पुलिस को क्यों नहीं बताया,आसपास के लेागों को क्यों नहीं बताया आदि आदि. ये सब स्ट्रेटजीज हम डिस्कस करते हैं. 

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अपने आप लड़ते हैं मुकदमे 

अक्सर लोग आरोप लगने के बाद वकीलों पर निर्भर हो जाते हैं, लेकिन हमने अपने संगठन के साथ वकीलों को नहीं जोड़ रखा है. इसके लिए हम अपनी तरह से लोगों को लीगली अवेयर करते हैं. जिससे वो एविडेंस पढ़कर अपने केस को तैयार करते हैं और आगे की लड़ाई के लिए तैयार होते हैं. 

परेशान कर देती हैं डेट पर डेट 

रोह‍ित कहते हैं कि इन मामलों में आरोपी पक्ष बार बार पड़ने वाली तारीखों से ही परेशान हो जाता है. जैसे अतुल सुभाष का ही मामला देखिए इसमें दो साल में 120 डेट पड़ी. लगभग 1800 किमी का सफर तय करके अतुल महीने में करीब पांच डेट अटेंड कर रहा था. ये हालात लोगों को तोड़ देते हैं. सोचिए वो एआई इंजीनियर था, हमने कितना भावी बेहतर तकनीकी नागरिक खो दिया जो देश के लिए कुछ कर सकता था. 

अगर 498 का केस हुआ है तो याद रखें 
कतई घबराएं नहीं, अगर आप दोषी नहीं है तो सजा नहीं हो सकती. 
अपनी चार्जशीट का अध्ययन करें, गलत आरोपों पर बहस करें. 
मेन आरोपी हैं तो हर डेट पर जाएं ताकि बेल या बॉन्ड कैंसिल न हो. 
अगर डेट पर कोई काम है तो अपने वकील के जरिये एप्लीकेशन दिलाइए. 

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असली दोषी को सजा जरूरी 
रोहित डोगरा कहते हैं कि हमारे अभ‍ियान का उद्देश्य अपराधियों को बचाना कतई नहीं हैं. हम महिलाओं के नहीं बल्किर सिस्टम के खिलाफ हैं. जिसने अपराध किया है, उसे कोर्ट देखेगी. वैसे, हमें भी पता चल जाता है उसके कागज देखकर या बातचीत और काउंसिलिंग से कि केस कितना सही है और कितना फर्जी. उसी के हिसाब से हम आगे बढ़ते हैं.

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