
कानपुर जेल अस्पातल में यूं तो एक सामान्य कैदी की मौत हुई थी. लेकिन पोसा नाम के इस कैदी की मौत ने उस घटना की याद दिला दी जब प्रतिशोध की आग में जल रही चंबल के बीहड़ की दस्यु सुंदरी फूलन देवी और उनके गैंग ने कानपुर देहात के बहमई में 20 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा करके उन्हें गोली मार दी थी. 42 साल पुरानी इस घटना का आज भी जिक्र रोंगटे खड़े कर देता है.
85 साल के जिस पोसा नाम के कैदी की मौत हुई है वो फूलन देवी के गैंग के आखिरी सदस्यों में से था. ये वो शख्स था जो 14 फरवरी 1981 की रात को बेहमई गांव में फूलन देवी के साथ मौजूद था. पोसा की तबीयत सोमवार देर रात जेल में बिगड़ने पर उसे जेल अस्पताल में भर्ती कराया जहां से उसे गंभीर हालत में जिला अस्पताल ले जाया गया. जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने आरोपी पोसा को मृत घोषित कर दिया. बहमई कांड में पोसा जेल में बंद अकेला आरोपी था अन्य दो आरोपी जमानत पर जेल से बाहर हैं.
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार बहमई कांड में 23 आरोपी थे. इसमें अबतक 18 की मौत हो चुकी है. जबकि 2 कैदी अब भी फरार हैं जबकि दो डाकू श्याम बाबू और विश्वनाथ जमानत पर जेल से बाहर हैं.
गरीबी, अपमान और जिल्लत की जिंदगी
फूलन देवी का जन्म आजाद हिन्दुस्तान के उस गांव में हुआ था जहां काफी भेदभाव था. 1963 में जन्मीं फूलन के पिता बेहद गरीब थे. जब फूलन 11 साल की थी तो एक अधेड़ से उनकी शादी कर दी गई. लेकिन ये फूलन को मंजूर नहीं था वे अपने अधेड़ पति के घर से भाग गईं. फूलन अपनी जिंदगी में यहीं से बागी होने लगीं.
जब वे 16 वर्ष की थीं तो कुछ डाकुओं ने उनका अपहरण कर लिया था. बता दें कि तब यमुना और चंबल बेल्ट में फैले जालौन-कानपुर देहात, औरैया इटावा, भिंड-मुरैना में डाकुओं की समानांतर सरकार चलती थी. कहा जाता है कि फूलन की किडनैपिंग उस गांव के ही दबंग ठाकुरों ने की थी. बदमाशों ने उसे उसे निर्वस्त्र कर प्रताड़ित किया और उसके साथ गैंगरेप किया. इस घटना का फूलन देवी के दिलो-दिमाग पर गहरा आघात पड़ा वे कई दिनों तक सुन्न की हालत में रहीं. उन्होंने इंसाफ पाने की खूब कोशिश की लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला.
बेहमई कांड: डाकू पोसा की टीबी से मौत, फूलन देवी के साथ मिलकर की थीं 20 हत्याएं
इसके बाद वे अपने सरकार की घोषित रूप से बागी हो गई और अपना इंतकाम खुद लेने का फैसला किया. फूलन देवी के गांव पर कुछ डकैतों ने हमला किया. पुलिस-कानून के डर से बेखौफ डकैत जाते वक्त फूलन को भी अपने साथ उठा ले गए. यहां गिरोह का सरदार बाबू गुज्जर उसे अपने गुट में मिला लिया. लेकिन उसकी बुरी नजरें फूलन पर थी. फूलन ने शुरुआती दिनों में कई जिल्लतें सहीं, यौन हिंसा का शिकार हुई. यहीं पर फूलन की दोस्ती विक्रम मल्लाह से हुई. विक्रम मल्लाह ने खुद को इस गैंग का सरदार घोषित कर दिया.
लेकिन भाग्य के खाते में फूलन की मुश्किलें समाप्त नहीं हुई थी. जेल से भागे दो भाई श्री राम तथा लाला राम चंबल पहुंचे और फूलन के गिरोह में शामिल हो गए. यहां एक बार फिर गैंगवार हुआ. इन दो लोगों ने विक्रम मल्लाह को मार दिया और फूलन को बंदी बनाकर अपने गांव बेहमई ले आए.
बेहमई को एक कोठरी में बंद कर दिया गया. यहां उसके साथ गैंगरेप किया गया. यहां से फूलन बड़ी मुश्किल से बचकर निकलीं. फूलन की जिंदगी एक बार फिर से बीहड़ों की ओर चली गई. यहां उन्होंने पुराने मल्लाह साथियों को इकट्ठा कर एक नया गिरोह बनाया और खुद उसकी सरदार बनीं.
फूलन के प्रतिशोध की रात और 20 लोगों का कत्ल
फूलन श्री राम तथा लाला राम से बदला लेने के लिए आग में जल रही थीं. आखिरकार 14 फरवरी 1981 को वो रात आ गई. कानपुर देहात में स्थित बेहमई गांव में एक शादी हो रही थी. फूलन अपने गैंग के साथ हथियारों से लैस होकर वहां पहुंच गई.
फूलन और उसके गिरोह ने हथियारों के दम पर पूरे गांव को घेर लिया. फूलन ने ठाकुर समुदाय के 21 मर्दों को लाइन में खड़ा कर दिया. इन 20 में से दो ऐसे लोग थे जो फूलन के गिरोह के डाकू थे. फूलन ने सबसे पहले पूछा कि लाला राम कहां है? लेकिन लाला राम वहां नहीं था. फूलन ने सभी को बैठने को कहा, फिर उन्हें खड़ा होने को कहा. फूलन अपने दुश्मन को वहां न पाकर बेहद गुस्से में थी.
अचानक ही उसने अपने गैंग को फायर करने का आदेश दे दिया. कुछ ही मिनटों में बेहमई की ये जगह खून से रक्तरंजित हो गई और नीचे पड़ी थी 20 नौजवानों की लाश.
इस घटना के बाद उत्तर भारत में सनसनी फैल गई. फूलन देश की नामी डकैत बन गई. उन्हें लोग बैंडिन क्वीन कहने लगे. सरकार ने उसके सिर पर इनाम रख दिया. उत्तरप्रदेश- मध्यप्रदेश की पुलिस किसी भी हाल में पकड़ना चाहती थी. लेकिन फूलन फरार थी.
अगले दो साल तक फूल बीहड़ों की खाक छानती रही. फूलन की ठाकुरों से दुश्मनी थी इसलिए उन्हें अपनी जान का खतरा हमेशा महसूस होता था. पुलिस भी उनके पीछे लगी थी. इस लंबे जद्दोजहद में वे थक गईं थी. वे अब सरेंडर करना चाहती थी. 1983 में आखिरकार उन्होंने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने सरेंडर कर दिया.
बंदूक माथे से छुआया फिर अर्जुन सिंह के पैरों में रख दिया
भिंड में एक बड़ा कार्यक्रम हुआ. तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह खुद वहां मौजूद थे. फूलन की एख झलक पाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जमा थी. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार फूलन देवी ने सिर पर लाल रंग का कपड़ा बांधा हुआ था. उनके हाथ में बंदूक थी. फूलन जब मंच की ओर बढ़ीं तो सबकी सांसें जैसे थम सी गई हो.
लोगों को अनहोनी का डर था. फूलन के दुश्मन हजार थे. तभी कुछ पलों में फूलन देवी ने अपनी बंदूक माथे पर छुआ फिर उसे अर्जुन सिंह के पैरों में रख दिया. फूलन के पूरे गैंग ने सरेंडर कर दिया. फूलन 1994 तक एमपी के जेल में रहीं. 1994 में उन्हें रिहा कर दिया गया. ऐसा तब संभव हुआ जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. मुलायम सिंह यादव ने सरकारी वकीलों को फूलन देवी के ऊपर लगे सारे आरोप वापस लेने का निर्देश दिया. इसके बाद फरवरी 1994 में फूलन देवी को जेल से रिहा कर दिया गया.
1996 के लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर मिर्जापुर से सांसद बनीं. 1999 में उन्होंने फिर से लोकसभा चुनाव जीता. फूलन देवी पिछड़ी जातियों की आवाज बन गईं.
फूलन का सियासी करियर आगे बढ़ रहा था, लेकिन उनकी जिंदगी पर खतरा बरकरार था. आखिरकार 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में दस्यु सुंदरी फूलन देवी की उनके घर के बाहर ही शेर सिंह राणा नाम के शख्स ने गोली मार कर हत्या कर दी. हत्या से पहले शेर सिंह राणा देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल से फर्जी तरीके से जमानत पर रिहा होने में कामयाब हो गया. हत्या के बाद शेर सिंह फरार हो गया. हालांकि बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
मशहूर निर्देशक शेखर कपूर फूलन देवी की जिंदगी पर 1994 में फिल्म बैंडिट क्वीन लेकर आए. इस फिल्म ने अपने कंटेंट, डायलॉग और दृश्यों को लेकर काफी सुर्खियां बटोरी.