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1 KM तक तालिबानियों ने घसीटा, मस्जिद के पास मारी थी गोली, लेखिका सुष्मिता बनर्जी को भाई ने ऐसे किया याद

अफगानिस्तान में तालिबान ने बंगाली लेखिका सुष्मिता बनर्जी की हत्या कर दी थी. उनकी मौत के 8 साल बाद उनके छोटे भाई गोपाल बनर्जी ने तालिबान की बर्बरता को याद किया है, जिसकी वजह से उनकी बहन, हमेशा के लिए उनसे दूर हो गईं.

पति के साथ बंगाल की बहादुर लेखिका सुष्मिता बनर्जी. (फाइल फोटो) पति के साथ बंगाल की बहादुर लेखिका सुष्मिता बनर्जी. (फाइल फोटो)
प्रेमा राजाराम
  • कोलकाता,
  • 23 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 8:41 PM IST
  • अफगानिस्तानी युवक से की थी सुष्मिता ने शादी
  • 2013 में लिख रहीं थीं तालिबान पर दूसरी किताब
  • उनकी किताब पर बन चुकी है बॉलीवुड फिल्म
  • तालिबानियों ने मस्जिद के बाहर किया था कत्ल

आज से 9 साल पहले अफगानिस्तान में तालिबानियों ने कोलकाता की लेखिका सुष्मिता बनर्जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. सुष्मिता के भाई गोपाल बनर्जी आज भी उस भयावहता को याद कर सिहर जाते हैं. उन्हें याद है कि कैसे एक तालिबान की क्रूरता ने उनकी बहन को उनसे छीन लिया. 

सुष्मिता बनर्जी ने तालिबान के आतंक पर अपने अफगानिस्तान प्रवास के दौरान एक किताब भी लिखी थी. उन्होंने एक अफगानिस्तानी नागरिक जानबाज खान के साथ साल 1986 में शादी की थी. वे अपने पति के साथ अफगानिस्तान में रह रही थीं.

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साल 1997 में सुष्मिता बनर्जी की एक किताब प्रकाशित हुई. किताब का नाम था 'काबुलीवालार बंगाली बू.' अंग्रेजी में इस किताब का नाम है- 'A Kabuliwala's Bengali Wife.' इसी किताब पर बॉलीवुड फिल्म 'एस्केप फ्रॉम तालिबान' बनाई गई, जिसके बाद वह तालिबान की नजरों में आ गईं.

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भाई ने सुष्मिता बनर्जी को दी थी हिदायत

सुष्मिता 1994 में अपने पति के साथ भारत लौटी थीं, लेकिन उन्होंने मई 2013 में अफगानिस्तान वापस जाने की ठान ली और अपनी दूसरी किताब को पूरा करने का फैसला किया. जुलाई में ही दोबारा सुष्मिता बनर्जी वापस कोलकाता आईं. उन्होंने किताब लिखने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेजों को लिया. सुष्मिता के भाई ने उनसे कहा कि अफगानिस्तान में उनकी दूसरी किताब भी तालिबानियों को भड़का सकती है. सुष्मिता ने तब अपने भाई से कहा था कि वहां कामकाजी महिलाओं के प्रति तालिबान उदार हुआ है, वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने बदले हैं.

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2013 में किताब लिखने अफगानिस्तान गई थीं सुष्मिता

गोपाल बनर्जी ने कहा कि उनकी बहन ने सोचा था कि 2013 तक अफगानिस्तान में अमेरिका के हस्तक्षेप से चीजें आसान हो गई हैं. अमेरिका ने तालिबान का प्रभाव कम कर दिया था. अब स्थितियां महिलाओं के अनुकूल थीं. वे मई 2013 में तालिबान पर एक और किताब लिखने के लिए वहां वापस चली गईं.

घरवालों के सामने से घसीटकर ले गए थे तालिबानी

4 सितंबर 2013 तालिबान ने सुष्मिता बनर्जी को उनके घर से दिन में  2.30 बजे परिवार के अन्य सदस्यों की मौजूदगी में घसीटा. तालिबानियों ने सुष्मिता को दूर ले जाकर गोली मारी. हमले के वक्त तालिबान ने परिवार के अन्य असहाय सदस्यों पर कथित तौर पर बंदूक तान दी थी. कोलकाता में सुष्मिता परिवार के पास अब शब्द नहीं हैं कि किस तरह से वे सुष्मिता की बहादुरी पर बात करें, जिन्होंने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए बहादुरी की सारी सीमाओं को लांघ दिया था. 

मस्जिद के पास ले जाकर मारी थी गोली

गोपाल बनर्जी ने कहा कि जब तालिबानी सुष्मिता को मार रहे थे तब दूसरे लड़ाकों ने परिवार को चुप कराने के लिए सभी के सिरों पर बंदूक तान दी थी. सुष्मिता को घसीटते हुए वे एक किलोमीटर तक एक मस्जिद के पास ले गए थे. वहीं उन पर धड़ाधड़ गोलियां बरसा दीं. परिवार के सदस्यों को हत्या के बारे में सुबह जानकारी मिली. गोपाल बनर्जी की आंखें अपने साले की बातों को यादकर नम हो गईं.

भाई ने मौजूदा स्थितियों को बताया 'बहुत भयावह'

अफगानिस्तान तालिबान के 33 प्रांतों पर कब्जा जमा चुका है. पंजशीर में निर्णायक लड़ाई तालिबानी लड़ाके और अफगानी फौज लड़ रही है. जब काबुल पर तालिबानियों ने कब्जा किया, तभी से भयावह खबरें अफगानिस्तान से सामने आ रही हैं. गोपाल बनर्जी ने अफगानिस्तान संकट पर कहा कि तालिबान की दहशत उससे भी ज्यादा बदतर है, जो कहानियां उन्होंने अपनी बहन से सुनी थीं.

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'आतंकवादी चला रहे देश, इससे बुरा क्या?'

गोपाल बनर्जी ने कहा, 'तालिबान के बारे में मेरी बहन ने जो कहा, यह उससे भी बुरा है. क्या आतंकवादी किसी देश पर शासन कर सकते हैं? दूसरे देश ऐसी स्थिति का समर्थन कर रहे हैं. अच्छे लोग मारे जा रहे हैं. मैं हैरान हूं. मैं लोगों की स्थिति को देखकर डर रहा हूं. कोई भी मारा जा सकता है. कभी भी.'
 

 

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