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Bharat Bandh: जानिए कौन-कौन से संगठन और दल शामिल हैं, क्या डिमांड है? 7 बड़े सवालों के जवाब

दलित और आदिवासी संगठनों ने हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग को लेकर बुधवार को 'भारत बंद' का आह्वान किया है. नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशंस (NACDAOR) ने अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए न्याय और समानता समेत मांगों की सूची जारी की है.

दलित और आदिवासी संगठनों ने आज भारत बंद का आह्वान किया है. दलित और आदिवासी संगठनों ने आज भारत बंद का आह्वान किया है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 21 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 11:24 AM IST

सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर और कोटा के भीतर कोटा लागू करने के फैसले के खिलाफ दलित-आदिवासी संगठनों ने बुधवार को 14 घंटे के लिए भारत बंद का आह्वान किया है. नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशंस नामक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दलित और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ बताया है और केंद्र सरकार से इसे रद्द करने की मांग की है.

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1. सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया है?

दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कोटा के अंदर कोटा से जुड़े मामले में अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है. यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं, ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके. राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में समक्ष होंगी. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है. हालांकि, कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए. कोर्ट का कहना था कि ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है. कोर्ट ने यह साफ कहा था कि SC के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दिया जा सकता है. इसके अलावा, SC में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने ये फैसला सुनाया.

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2. क्यों विरोध किया जा रहा है?

यह फैसला देशभर में विवाद का विषय बना हुआ है. विरोध करने वालों का मानना है कि इससे आरक्षण व्यवस्था के मौलिक सिद्धांतों पर प्रश्नचिह्न लग गया है. कई संगठनों ने इसे आरक्षण नीति के खिलाफ बताया. उनका कहना है कि इससे आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था पर निगेटिव प्रभाव पड़ेगा और सामाजिक न्याय की धारणा कमजोर हो जाएगी. विरोध करने वालों का तर्क है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को यह आरक्षण उनकी तरक्की के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से उनके साथ हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने के लिए है. तर्क यह भी अस्पृश्यता यानी छुआछूत के भेद का शिकार हुईं इन जातियों को एक समूह ही माना जाना चाहिए. वे इसे आरक्षण खत्म करने की साजिश बता रहे हैं.

3. क्यों भारत बंद बुलाया?

भारत बंद का मुख्य उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देना और इसे वापस लेने की मांग करना और सरकार पर दबाव डालना है. संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट कोटे में कोटा वाले फैसले को वापस ले या पुनर्विचार करे. NACDAOR ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी से बुधवार को शांतिपूर्ण आंदोलन में हिस्सा लेने की अपील की है.

4. क्या मांगें रखी हैं....

संगठन द्वारा सरकारी नौकरियों में पदस्थ एससी, एसटी और ओबीसी कर्मचारियों का जातिगत आंकड़ा जारी करने और भारतीय न्यायिक सेवा के जरिए न्यायिक अधिकारी और जज नियुक्त करने की मांग रखी है. NACDAOR का कहना है कि सरकारी सेवाओं में SC/ST/OBC कर्मचारियों के जाति आधारित डेटा को तत्काल जारी किया जाए ताकि उनका सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके. समाज के सभी वर्गों से न्यायिक अधिकारियों और जजों की भर्ती के लिए एक भारतीय न्यायिक सेवा आयोग की भी स्थापना की जाए ताकि हायर ज्यूडिशियरी में SC, ST और OBC श्रेणियों से 50 फीसदी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए.

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संगठन का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सभी बैकलॉग रिक्तियों को भरा जाए. सरकारी प्रोत्साहन या निवेश से लाभान्वित होने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपनी फर्मों में सकारात्मक कार्रवाई की नीतियां लागू करनी चाहिए. आरक्षण को लेकर दलित-आदिवासी संगठन एससी, एसटी और ओबीसी के लिए संसद में एक नए अधिनियम को पारित किए जाने का भी आह्वान कर रहे हैं, जिसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करके संरक्षित किए जाए. उनका तर्क है कि इससे इन प्रावधानों को न्यायिक हस्तक्षेप से सुरक्षा मिलेगी और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा.

5. बंद में कौन-कौन से संगठन और दल शामिल हैं?

भारत बंद को दलित और आदिवासी संगठन के अलावा अलग-अलग राज्यों की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भी  समर्थन कर रहीं हैं. इनमें प्रमुख रूप से बहुजन समाज पार्टी, भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी (काशीराम) भारत आदिवासी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, एलजेपी (R) समेत अन्य संगठनों का नाम शामिल है. कांग्रेस ने भी बंद का समर्थन किया है. इन संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और इसे वापस लिया जाना चाहिए.

6. क्या सेवाएं प्रभावित नहीं होंगी?

भारत बंद के दौरान हॉस्पिटल, एंबुलेंस और इमरजेंसी जैसी जरूरी सेवाएं सामान्य रूप से संचालित रहेंगी. सरकारी दफ्तर, पेट्रोल पंप, स्कूल-कॉलेज और बैंक भी खुले रह सकते हैं. सार्वजनिक परिवहन और रेल सेवाएं भी चालू रहेंगी. हालांकि, बंद होने के संबंध में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है. मांस और शराब की दुकानों पर बंद का असर पड़ सकता है.

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8. कहां-कहां पर पुलिस-प्रशासन अलर्ट...

राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में खासकर बंद का व्यापक असर देखने को मिल सकता है. राजस्थान में जयपुर, दौसा, भरतपुर, गंगापुर सिटी, डीग समेत पांच जिलों के स्कूलों में छुट्टी घोषित कर दी गई है. इसके अलावा झुंझुनू और सवाईमाधोपुर जिले में भी स्कूलों में छुट्टियां घोषित की गई है.

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