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पीने वालों के लिए मौत बन रही शराब, लेकिन सरकार के लिए नहीं है 'खराब'! ये सच जानना जरूरी है

शराब पीने की वजह से भारत में हर साल ढाई लाख मौतें होती हैं. हजारों लोग जहरीली शराब पीने से मारे जाते हैं, इसके बावजूद भारत में सरकारों के लिए शराब 'खराब' नहीं है, क्योंकि उनके रेवेन्यू कलेक्शन में 10 से 15 फीसदी तक की हिस्सेदारी शराब की बिक्री से मिलने वाले टैक्स की होती है. देश में शराब की बिक्री का क्या है गणित? कितने भारतीय शराब पीते हैं? कितनी शराब पीनी चाहिए? यहां समझते हैं.

हर भारतीय सालभर में औसतन 5.6 लीटर शराब पीता है. (फाइल फोटो-PTI) हर भारतीय सालभर में औसतन 5.6 लीटर शराब पीता है. (फाइल फोटो-PTI)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 19 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:52 PM IST

बिहार में छपरा से लेकर सारन तक, बेगूसराय से लेकर सिवान तक...जहरीली शराब पीने से दर्जनों लोगों की मौत हो गई है. राज्य से समय-समय पर जहरीली शराब पीने से लोगों के मरने की खबरें आती हैं. हालांकि, सरकारी आंकड़ों में ये संख्या तकरीबन गायब रहती है. 

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 से 2021 के बीच 6 साल में बिहार में जहरीली या अवैध शराब पीने से 23 लोगों की मौत हुई है. 

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लेकिन, अवैध या जहरीली शराब सिर्फ बिहार की समस्या नहीं है. देश के लगभग सभी राज्यों में अवैध शराब का कारोबार धड़ल्ले से चलता है. हर साल लाखों लीटर अवैध शराब जब्त भी होती है. लेकिन इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लग पा रही.

अवैध शराब से सरकार को ही नुकसान!

बिहार ही नहीं, बल्कि गुजरात, मिजोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप में भी पूरी तरह से शराबबंदी है. इसके बावजूद यहां जहरीली शराब से मौतें होती रहती हैं. गुजरात पहला राज्य था, जिसने शराब पर प्रतिबंध लगाया था. फिर भी NCRB के आंकड़े बताते हैं कि 6 साल में जहरीली या अवैध शराब पीने से राज्य में 54 लोगों की मौत हो चुकी है. इसी साल जुलाई में सूरत पुलिस ने 56 लाख रुपये की अवैध शराब जब्त की थी.

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फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) की रिपोर्ट बताती है कि देश में अवैध शराब का कारोबार 23 हजार 466 करोड़ रुपये का है. फिक्की के मुताबिक, अवैध शराब की तस्करी की वजह से सरकार को 15 हजार 262 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है. 

अवैध शराब यानी जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं है. ये शराब बिना किसी रिकॉर्ड के बिकती है. इसकी तस्करी होती है और इस पर कोई टैक्स नहीं दिया जाता है. लिहाजा अवैध शराब की तस्करी से सरकार को रेवेन्यू लॉस होता है, लोगों की मौत होती है तो दूसरी ओर शराब कारोबारी पैसा कमाते हैं.

एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल पांच अरब लीटर शराब पी जाती है. इसमें 40 फीसदी से ज्यादा अवैध तरीके से बनाई जाती है और ये सस्ती होती है. ग्रामीण इलाकों में देसी शराब ज्यादा पी जाती है. जबकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि भारत में हर साल शराब की जितनी खपत होती है, उसमें से 50 फीसदी अवैध तरीके से बनती और बिकती है.

बिहार सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 1 अप्रैल 2016 से इस साल 30 नवंबर तक सवा दो करोड़ लीटर अवैध शराब पकड़ी जा चुकी है. इसमें से साढ़े 92 लाख लीटर से ज्यादा देसी शराब भी शामिल है. शराबबंदी कानून तोड़ने के मामले में 6.71 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. बिहार सरकार के शराबबंदी कानून के मुताबिक, शराब की जो बोतलें जब्त की जाती हैं, उन्हें तोड़कर खत्म किया जाता है.

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भारत में बढ़ रहे हैं शराब पीने वाले

भारत में शराब पीने वालों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है. साइंस जर्नल लैंसेट की एक स्टडी के मुताबिक, तीन दशकों में भारत में शराब पीने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है.

लैंसेट की स्टडी बताती है कि 1990 की तुलना में 2020 में भारत में शराब पीने वालों की संख्या 26 फीसदी तक बढ़ गई है. लैंसेट का अनुमान है कि 2020 में देश में 15 से 39 साल की करीब 54 लाख महिलाएं और 8 करोड़ पुरुष शराब पीते हैं. 

वहीं, 40 से 64 साल की उम्र की 29.50 लाख महिलाएं और 3.88 करोड़ पुरुष शराब पीते हैं. जबकि, 65 साल या उससे ज्यादा की उम्र के 57.70 लाख पुरुष और महिलाएं शराब का सेवन करते हैं. कुल मिलाकर भारत में शराब पीने वालों की अनुमानित संख्या 13.27 करोड़ से ज्यादा है. 

इसके अलावा, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक, करीब 20 फीसदी भारतीय शराब का सेवन करते हैं. यानी, 100 में से 20 भारतीय शराब पीते हैं. इनमें 19 फीसदी पुरुष और 1 फीसदी के आसपास महिलाएं हैं. शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या शहरों की तुलना में गांवों में ज्यादा है. शहरों में रहने वाले करीब 17 फीसदी और गांवों में रहने वाले 20 फीसदी पुरुष शराब पीते हैं.

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अनुमान है कि इस समय में देश में हर साल 5 अरब लीटर शराब की खपत हो रही है, जो 2024 तक सालाना 6.21 अरब लीटर तक पहुंचने का अनुमान है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, भारत में शराब की खपत तेजी से बढ़ रही है. 2009 में एक आम भारतीय सालाना औसतन 3.8 लीटर शराब पीता था. जबकि, 2019 में बढ़कर 5.61 लीटर हो गई है. 

कितनी शराब ठीक है और कितनी खतरनाक?

जो शराब नहीं पीते, वो इसे हानिकारक बताते हैं और जो शराब पीते हैं वो इसे सेहत के लिए अच्छा बताते हैं. वैसे तो शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता ही है, लेकिन अगर इसे सही मात्रा में पिया जाए तो इसका उतना बुरा असर नहीं होता.

इसी साल जुलाई में लैंसेट ने अपनी स्टडी में बताया था कि हर दिन पुरुष और महिला कितनी शराब पी सकते हैं? इसमें बताया था कि 15 से 39 साल की उम्र के पुरुष हर दिन स्टैंडर्ड ड्रिंक का 0.136 मात्रा ले सकते हैं. यानी, स्टैंडर्ड ड्रिंक के दसवें हिस्से से थोड़ी ज्यादा. स्टैंडर्ड ड्रिंक माने 10 ग्राम प्योर एल्कोहल. 

हालांकि, इस स्टडी में ये भी बताया गया था कि 15 से 39 साल के युवाओं के लिए शराब पीना ज्यादा खतरनाक हो सकता है. स्टडी में दावा किया गया था कि 2020 में दुनियाभर में 1.34 करोड़ लोगों की मौत कथित तौर पर शराब पीने से हुई थी, जिनमें 15 से 49 साल की उम्र के लोग ज्यादा थे.

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वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हर साल शराब पीने की वजह से 30 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है. इतना ही नहीं, शराब पीने से 200 से ज्यादा बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

2018 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि हर साल 2.6 लाख भारतीयों की मौत शराब पीने से हो जाती है.

जब जानलेवा है तो शराबबंदी क्यों नहीं?

देश के कुछ राज्यों में शराबबंदी लागू है और कुछ ऐसे भी हैं जहां पहले शराबबंदी थी लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया.

हरियाणा में 1996 में शराबबंदी लागू की गई थी, लेकिन दो साल बाद ही 1998 में इसे हटा लिया गया. आंध्र प्रदेश में 1995 में शराब पर प्रतिबंध लगा लेकिन 1997 में सरकार ने इसे वापस ले लिया. मणिपुर में भी 1991 से शराबबंदी लागू है और सरकार ने इसमें थोड़ी छूट देने का फैसला लिया है. ऐसा इसलिए ताकि सरकारी खजाना भर सके. मणिपुर सरकार को शराबबंदी के कानून में थोड़ी छूट देने से 600 करोड़ रुपये का रेवेन्यू मिलने का अनुमान है.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के ज्यादातर राज्यों के टैक्स रेवेन्यू में 10 से 15 फीसदी हिस्सेदारी शराब से मिलने वाले टैक्स की है. उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों के टैक्स रेवेन्यू में तो 20 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी शराब की है.

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मार्च-अप्रैल 2020 में कोरोना की वजह से जब लॉकडाउन लगा तो शराब की दुकानें भी बंद कर दी गई थीं. इससे सरकारों को बहुत नुकसान हुआ. लेकिन जब शराब की दुकानें फिर खुलीं तो एक दिन में ही सरकारों ने खूब कमाई की. अकेले उत्तर प्रदेश में एक दिन में 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की शराब बिकी थी. वहीं, महाराष्ट्र सरकार को भी एक दिन में 11 करोड़ रुपये से ज्यादा का रेवेन्यू मिला. जबकि, दिल्ली सरकार ने हफ्तेभर में 235 करोड़ रुपये की शराब बेच दी थी.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में ही ऐसा है. दुनियाभर में शराब की बिक्री से सरकारों की जमकर कमाई होती है. कुछ महीने पहले ही जापान में सरकार ने एक कैंपेन चलाया था. इस कैंपेन का मकसद बस इतना था कि युवा ज्यादा से ज्यादा शराब पियें, ताकि टैक्स कलेक्शन बढ़ सके. सरकार ने ये फैसला इसलिए लिया था क्योंकि सर्वे में सामने आया था कि जापान में शराब की खपत कम हो रही है जिसका असर सरकारी खजाने में पड़ रहा है. जापान की स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1980 में सरकार के रेवेन्यू में 5 फीसदी टैक्स शराब की बिक्री से आता था, जो 2020 में घटकर मात्र 1.7 फीसदी रह गया था.

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