
गुजरात के चर्चित बिलकिस बानो गैंगरेप केस (Bilkis Bano Case) फिर से चर्चा में है. 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुई गर्भवती बिलकिस के साथ हुई इस वीभत्स घटना के 11 आरोपियों को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सजा हुई थी. कोर्ट ने 2008 में बिलकिस के गुनहगारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. सजा सुनाए जाने के 14 साल बाद बिलकिस बानो केस के आरोपी अब खुली हवा में सांस लेंगे. सभी आरोपियों को गुजरात सरकार की ओर से मिली छूट के कारण स्वतंत्रता दिवस के दिन रिहा कर दिया गया.
गुनहगारों की रिहाई पर जहां बिलकिस बानों सन्न हैं, सरकार से फैसले पर पुनर्विचार की गुहार लगा रही हैं वहीं सियासत भी सरगर्म हो गई है. इन सबके बीच लोग न्यायपालिका पर भी सवाल उठा रहे हैं, आलोचना कर रहे हैं. इन सबको लेकर बिलकिस बानो केस की दिन-प्रतिदिन सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा रहीं जस्टिस मृदुला भाटकर ने आजतक aajtak.in से खास बातचीत की.
उन्होंने कहा कि सेशन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, थ्री टियर ज्यूडिशियल सिस्टम ने कानून को बरकरार रखने और लोगों को न्याय दिलाने की दिशा में काम किया है. 2009 से 2019 के बीच बॉम्बे हाईकोर्ट में जज रहीं जस्टिस मृदुला भाटकर ने वर्तमान परिदृश्य पर सीधे कोई टिप्पणी करने से परहेज करते हुए कहा कि मुझे समझ नहीं आता कि लोग न्यायपालिका का विरोध क्यों कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किया है. इस समय महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण की अध्यक्ष न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर ने कहा कि जब हमारी आलोचना की जाती है तो हमें बुरा लगता है और हम बचाव भी नहीं कर सकते. न्यायमूर्ति भाटकर, न्यायमूर्ति वीके ताहिलरमानी के नेतृत्व वाली उस खंडपीठ में शामिल थीं जिसने सीबीआई और बिलकिस बानो गैंगरेप केस के आरोपियों की ओर से दायर अपील पर हर रोज सुनवाई की थी.
जस्टिस मृदुला भाटकर ही नहीं, बिलकिस बानो केस से अलग-अलग समय पर जुड़े रहे न्यायिक अधिकारी भी यही कह रहे हैं कि आरोपियों को छूट देने का निर्णय सरकार ने लिया. ऐसे में न्यायपालिका को दोष नहीं दिया जा सकता. गौरतलब है कि बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में सेशन कोर्ट ने 11 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. निचली अदालत ने सात आरोपियों को बरी भी कर दिया था. सीबीआई ने सात आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ अपील की थी.
सीबीआई ने तीन दोषियों को मौत की सजा देने की भी मांग की थी. सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने 2017 में मौत की सजा देने संबंधी सीबीआई की मांग खारिज कर दी थी और अपने आदेश में कहा था कि हमें ये तथ्य भी देखना होगा कि घटना 2002 की है. तब से अब तक 15 साल गुजर चुके हैं और इस दौरान सभी आरोपी हिरासत में रहे हैं. 15 साल लंबे अंतराल के बाद हम सजा बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं.
हाईकोर्ट ने बरकरार रखी थी सजा
जस्टिस ताहिलरमानी और जस्टिस मृदुला भाटकर की खंडपीठ ने सभी 11 दोषियों की सजा बरकरार रखी थी. साथ ही कोर्ट ने ड्यूटी के दौरान लापरवाही के आरोप में सात पुलिसकर्मियों और डॉक्टर्स को भी दो साल कैद की सजा सुनाई थी. डॉक्टर्स पर ऑटोप्सी में लापरवाही बरतने के आरोप लगे थे. पुलिसकर्मऔर डॉक्टर्स ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इनकी अपील खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था.