Advertisement

बिलकिस बानो केस को सुप्रीम कोर्ट ने बताया भयावह, 11 दोषियों की रिहाई पर केंद्र-गुजरात सरकार को नोटिस

बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई की. पीड़िता बिलकिस बानो के दोषियों को गुजरात सरकार ने 15 अगस्त 2022 को को गोधरा उप जेल से रिहा कर दिया गया था. इसी के खिलाफ बानो ने 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इस मामले में कोर्ट ने केंद्र व गुजरात सरकार को नोटिस भेजा है.

बिलकिस बानो (फाइल फोटो) बिलकिस बानो (फाइल फोटो)
कनु सारदा/अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 27 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 7:13 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले के दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो की याचिका पर सोमवार को सुनवाई की. कोर्ट ने इसके बाद केंद्र, गुजरात राज्य और 11 दोषियों को नोटिस जारी किया है. जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय की है. सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी में कहा कि 'दोषियों द्वारा किया गया अपराध भयावह है और यह भावनाओं से अभिभूत नहीं होगा.

Advertisement

रिहाई संबंधित फाइलें रखें तैयार

सुनवाई के दौरान, पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से पूछा कि क्या छूट देने से पहले उनसे परामर्श किया गया था. इस पर एएसजी ने पीठ को बताया कि इस मामले में केंद्र से विधिवत परामर्श किया गया था. इस पर, न्यायमूर्ति जोसेफ ने गुजरात राज्य के वकील से कहा कि दोषियों की रिहाई से संबंधित सभी फाइलें सुनवाई की अगली तारीख पर तैयार रखें. अदालत ने मामले की सुनवाई 18 अप्रैल के लिए निर्धारित करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि वह पहले वह दायरा तय करेगी जिसके भीतर सुनवाई की जानी है.

दोषियों पर पैरोल में लगे थे छेड़छाड़ के आरोप

न्यायमूर्ति जोसेफ ने मामले में पेश होने वाले वकीलों से यह भी कहा कि मामले को जून से पहले समाप्त करने की जरूरत है, क्योंकि वह तब सेवानिवृत्त हो रहे हैं. अदालत ने यह भी पूछा कि क्या गुजरात सरकार इस तरह से छूट नीति लागू कर सकती है जब हत्या के दोषी भी वर्षों से जेल में बंद हैं. अदालत ने रिहा हुए दोषियों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में भी पूछा. इस सवाल के जवाब में वृंदा ग्रोवर ने पीठ को बताया कि पैरोल के दौरान दोषियों पर छेड़छाड़ के भी आरोप लगे हैं. वृंदा ग्रोवर इस मामले में, एक जनहित याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रही थीं. सुनवाई के दौरान जस्टिस  बी वी नागरत्ना ने उस छूट नीति के बारे में भी पूछा जिसके आधार पर इस मामले में दोषियों को तत्काल छूट दी गई थी?

Advertisement

अदालत ने पूछा, किस आधार पर दी गई छूट

एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने जवाब दिया कि हालांकि यह 1992 की नीति के आधार पर दिया गया था, लेकिन इस मामले में एक 2014 की नीति भी है. उन्होंने कहा कि इस दोनों ही आधार पर देखा जा सकता है कि दोषियों को मिली हुई छूट केंद्र और राज्य दोनों की छूट नीति के खिलाफ थी. 2014 की पॉलिसी में उल्लेख किया गया है कि बलात्कार और हत्या के दोषियों को राज्य सरकार द्वारा रिहा नहीं किया जा सकता है, हालांकि 1992 की नीति में यह स्पष्ट रूप से दोषियों को जेल से जल्दी रिहाई के योग्य या अयोग्य श्रेणी में वर्गीकृत नहीं करता था.

कोर्ट का सवाल, क्या मानकों को समान रूप से अपनाया गया? 

वृंदा ग्रोवर के इन तर्कों का विरोध करते हुए मामले में एक दोषी की ओर से पेश हुए वकील ऋषि मल्होत्रा ​​ने कहा, "इस अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि दोष सिद्धि के दौरान मौजूद छूट को अपनाया जाना चाहिए. उन्होंने इसके लिए 1992 की नीति का हवाला दिया. इस पर जस्टिस जोसेफ ने कहा, "यह एक जघन्य अपराध था और हत्या के मामलों में दोषी बिना छूट के जेलों में सड़ रहे हैं. तो क्या यह मामला ऐसा जहां मानकों को समान रूप से अपनाया गया है.?"

Advertisement

2002 में हुआ था बिलकिस बानो के साथ अपराध

न्यायाधीशों के सवाल का जवाब देते हुए, मल्होत्रा ​​ने कहा, इस विषय में एक विस्तृत एडवाइजरी बोर्ड का गठन किया गया था और इस बोर्ड में सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर कई विशेषज्ञ सदस्य के तौर पर शामिल थे. बोर्ड ने हर तथ्य पर विचार किया था. मल्होत्रा ​​ने कहा, "इस मामले में दोषियों ने 15.5 साल की वास्तविक सजा काट ली है और छूट के लिए 14 साल की जरूरत है."

बता दें कि बिलकिस बानो के साथ यह अपराध 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुआ था. सांप्रदायिक हमले के दौरान उनके साथ गैंगरेप किया गया और उनकी तीन साल की बेटी सहित परिवार के 14 सदस्यों को की हत्या की गई थी. बिलकिस इस मामले में एक मात्र जीवित पीड़िता थीं. इस मामले के सामने आने के बाद जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुकदमे को गुजरात से महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया गया था. 2008 में, मुंबई की एक सत्र अदालत ने 11 लोगों को गैंगरेप और हत्या के लिए दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
इस सजा को बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था.
 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement