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बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज, गैंगरेप के 11 दोषियों की रिहाई का है मामला

सुप्रीम कोर्ट बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा. साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था. इसमें 11 लोगों दोषी साबित हुए थे. गुजरात सरकार ने इन दोषियों को सजा से छूट दे दी थी. इसका काफी विरोध हुआ, फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.

बिलकिस बानो बिलकिस बानो
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 11:46 AM IST

बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा. अगस्त 2022 में गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इसी पर आज फैसला आना है. 

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुयन की बेंच इस पर फैसला सुनाएगी. बेंच ने पिछले साल 12 अक्टूबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. मामले पर अदालत में लगातार 11 दिन तक सुनवाई हुई थी. सुनवाई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने से जुड़े ओरिजिनल रिकॉर्ड पेश किए थे.

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गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने के फैसले को सही ठहराया था. समय से पहले दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल भी उठाए थे. हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि वो सजा माफी के खिलाफ नहीं है, बल्कि ये स्पष्ट किया जाना चाहिए कि दोषी कैसे माफी के योग्य बने.

सुनवाई के दौरान एक दोषी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी थी कि सजा माफी से दोषी को समाज में फिर से जीने की उम्मीद की एक नई किरण दिखी है, और उसे अपने किए पर पछतावा है. 

इस मामले में जिन दोषियों को रिहाई मिली है, उनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरधिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदाना शामिल हैं. 

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इन दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हुई थीं. चुनौती देने वालों में बिलकिस बानो के अलावा सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लॉल और टीएमसी की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा भी शामिल हैं.

क्या है पूरा मामला?

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी.

इसके बाद दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं. 

बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. 

भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.

2008 में मिली उम्रकैद की सजा

इस घटना पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. इस मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार कर लिया गया.

इस मामले का ट्रायल अहमदाबाद में शुरू हुआ था. बाद में बिलकिस ने चिंता जताई कि यहां मामला चलने से गवाहों को डराया-धमकाया जा सकता है और सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अहमदाबाद से मुंबई ट्रांसफर कर दिया.

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21 जनवरी 2008 को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. स्पेशल कोर्ट ने 7 दोषियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. जबकि, एक दोषी की मौत ट्रायल के दौरान हो गई थी. 

बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी दोषियों की सजा को बरकरार रखा. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. साथ ही बिलकिस को नौकरी और घर देने का आदेश भी दिया था.

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