
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित संशोधन विधेयक को आज लोकसभा में पेश किया जा सकता है. जानकारी के मुताबिक सांसदों को यह बिल सर्कुलेट कर दिया गया है. दरअसल इसी से जुड़े अध्यादेश पर केजरीवाल सरकार काफी दिनों से विरोध दर्ज कराती आई है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल देशभर के विपक्षी संगठनों से मुलाकात कर इसी बिल को चुनौती देने के लिए समर्थन की मांग कर रहे थे. अब अगर केंद्र सरकार ने लोकसभा में यह बिल पेश किया तो 'INDIA' गठबंधन के लिए यह एक लिटमस टेस्ट साबित हो जाएगा. आम आदमी पार्टी की पूरी कोशिश रहेगी कि इस बिल को हर हाल में पारित होने से रोका जाए. लोकसभा में तो मोदी सरकार के पास बहुमत है लेकिन आप नेता अन्य विपक्षी सांसदों की मदद से राज्यसभा में इसे रोकने की कोशिश में हैं.
बता दें कि 19 मई को जो अध्यादेश लाया गया था उसकी तुलना में अब बिल में कुछ जरूरी बदलाव किए गए हैं. केंद्र सरकार ने बिल लाने से पहले सेक्शन 3A और 45D में अहम बदलाव किए हैं. धारा 3A जो अध्यादेश का हिस्सा थी, उसे प्रस्तावित विधेयक से पूरी तरह हटा दिया गया है.
अध्यादेश में बदलाव कर लाया जा रहा बिल
धारा 3A संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-2 की प्रविष्टि 41 से संबंधित है. अध्यादेश में कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा को सेवाओं से जुड़े कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. लेकिन प्रस्तावित विधेयक में अध्यादेश की एक अन्य धारा 45D के तहत प्रावधानों को कमजोर कर दिया गया है. बताते चलें कि धारा 45D बोर्डों, आयोगों, प्राधिकरणों और अन्य वैधानिक निकायों के लिए की जाने वाली नियुक्तियों से संबंधित है.
इस अध्यादेश ने एलजी/राष्ट्रपति को सभी निकायों, बोर्डों, निगमों आदि के सदस्यों/अध्यक्षों आदि की नियुक्ति या नामांकन करने की विशेष शक्तियां प्रदान कीं हैं. हालांकि, नया अधिनियम राष्ट्रपति को यह शक्ति केवल संसद के अधिनियम के माध्यम से गठित निकायों/बोर्डों/आयोगों के संबंध में प्रदान करता है.
6 महीने में अध्यादेश को कानून बनाना जरूरी
पिछले कुछ महीनों से ट्रांसफर-पोस्टिंग के जिस अध्यादेश पर दिल्ली और केंद्र सरकार में ठनी है, उसको केंद्रीय कैबिनेट से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है. बता दें कि अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर लाया जाता है. अगर संसद नहीं चल रही, उस दौरान सरकार कोई नया कानून बनाना चाहती है तो इसे अध्यादेश के रूप में लाया जाता है, लेकिन इस अध्यादेश को छह महीने के अंदर कानून की शक्ल देनी होती है जिसके लिए इसे अगले ही सत्र में संसद में पेश करना होता है. केंद्र सरकार मई महीने में ही यह अध्यादेश लेकर आई थी.
क्या है अध्यादेश पर विवाद?
मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने LG बनाम दिल्ली सरकार के मामले पर सुनवाई की थी. इसमें पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सभी तरह की सेवाओं पर अधिकार चुनी हुई दिल्ली सरकार को दिया गया था.
लेकिन फिर केंद्र सरकार 19 मई को यह अध्यादेश ले आई. इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया.
दिल्ली के लिए लाए गए इस अध्यादेश से दिल्ली सरकार की शक्तियां कम हो गईं ऐसा कहा गया. दिल्ली सरकार ने कहा कि यह अध्यादेश पूरी तरह से निर्वाचित सरकार के सिविल सर्विसेज के ऊपर अधिकार को खत्म करता है.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) को इस तरह से बनाया गया है कि इसके अध्यक्ष तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन वो हमेशा अल्पमत में रहेंगे. समिति में बाकी दो अधिकारी कभी भी उनके खिलाफ वोट डाल सकते हैं, सीएम की अनुपस्थिति में बैठक बुला सकते हैं और सिफारिशें कर सकते हैं. यहां तक कि एकतरफा सिफारिशें करने का काम किसी अन्य संस्था को सौंप सकते हैं.
AAP ने किया विरोध, मिला विपक्षी दलों का साथ
अध्यादेश आने के बाद से आम आदमी पार्टी ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी. सीएम केजरीवाल ने इसे दिल्ली के साथ धोखा बताया था. अध्यादेश किसी भी तरह कानून ना बने इसकी तैयारी में AAP पार्टी पहले से लगी हुई है. सीएम केजरीवाल चाहते हैं कि राज्यसभा में विपक्षी दलों की मदद से बिल को पास ना होने दिया जाए. कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों का AAP को सपोर्ट मिल चुका है. अब जब यह बिल संसद में पेश किया जाएगा तो INDIA गठबंधन के सभी दल इसका विरोध करेंगे.
अध्यादेश से कैसे कम हो गई सीएम की शक्ति
दिल्ली की केजरीवाल सरकार शुरू से इस अध्यादेश और आगामी बिल का विरोध करती रही है. सीएम का कहना है कि यह अध्यादेश पूरी तरह से निर्वाचित सरकार के सिविल सर्विसेज के ऊपर अधिकार को खत्म करता है. इसी के साथ यह अध्यादेश संस्थाओं का निर्वाचन करने की शक्ति केंद्र को देकर निर्वाचित सरकार को और भी कमजोर बना रहा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) को इस तरह से बनाया गया है कि इसके अध्यक्ष तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन वो हमेशा अल्पमत में रहेंगे. समिति में बाकी दो अधिकारी कभी भी उनके खिलाफ वोट डाल सकते हैं, सीएम की अनुपस्थिति में बैठक बुला सकते हैं और सिफारिशें कर सकते हैं. यहां तक कि एकतरफा सिफारिशें करने का काम किसी अन्य संस्था को सौंप सकते हैं.