
मणिपुर में मई महीने में भड़की जातीय हिंसा में मारे गए कुकी और मैतेई समुदायों के 64 लोगों के शव उनके परिजनों को सौंप दिए गए हैं. ये सभी शव अब तक मणिपुर के मुर्दाघरों में रखे हुए थे. न्यूज एजेंसी के मुताबिक जेएनआईएमएस और रिम्स अस्पतालों में रखे गए कुकी समुदाय के 60 लोगों के शवों को मणिपुर पुलिस और सेना की असम राइफल्स यूनिट द्वारा की गई कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच हवाई मार्ग से लाया गया.
अधिकारियों ने बताया कि आदिवासियों के प्रभुत्व वाले जिले चुराचांदपुर के मुर्दाघर में पड़े मैतेई लोगों के चार शवों को भी इम्फाल लाया गया और अंतिम संस्कार के लिए उनके परिजनों को सौंप दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने हिंसाग्रस्त मणिपुर में जांच, राहत, उपचारात्मक उपायों, मुआवजे और पुनर्वास की जांच के लिए अगस्त में हाईकोर्ट के तीन पूर्व जजों- न्यायमूर्ति गीता मित्तल, न्यायमूर्ति शालिनी जोशी और आशा मेनन की एक समिति बनाई थी. इसके बाद, समिति की रिपोर्ट पर शीर्ष अदालत ने पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा में मारे गए लोगों को 11 दिसंबर तक दफनाने या दाह-संस्कार करने के निर्देश जारी किए, जिनमें वे 88 लोग भी शामिल हैं, जिनकी पहचान की गई है. लेकिन उनके शवों पर उनके परिवार के सदस्यों ने दावा नहीं किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे ये निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था, "या तो मृतक के रिश्तेदार शव स्वीकार कर सकते हैं और मणिपुर सरकार द्वारा चिह्नित 9 स्थलों में से किसी पर अंतिम संस्कार कर सकते हैं या राज्य सरकार शवों के अंतिम संस्कार की कार्रवाई नियम अनुसार करे."
बता दें कि चुराचांदपुर मुर्दाघर में चौबीस और शव थे, जिनके बारे में माना जाता है कि वे कुकी के थे. आदिवासियों ने इंफाल से शव लाए जाने तक उन्हें दफनाने से इनकार कर दिया था. एक अधिकारी ने कहा, ''हम उम्मीद कर रहे हैं कि इन शवों पर भी दावा किया जाएगा और अंतिम संस्कार किया जाएगा.''
175 में से 169 शवों की हुई पहचान
रिपोर्ट के मुताबिक, जातीय संघर्ष के दौरान 175 मौतें हुईं और 169 शवों की पहचान की गई. शीर्ष अदालत ने कहा कि पहचाने गए 169 शवों में से केवल 81 पर पीड़ितों के रिश्तेदारों ने दावा किया था. समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि 94 लावारिस शवों को राज्य के अधिकारियों द्वारा बनाए गए मुर्दाघरों में संरक्षित किया जा रहा है और कहा गया है कि बड़ी संख्या में शवों को लंबे समय तक संरक्षित करना राज्य के खजाने की बर्बादी है और अंतिम संस्कार करने में विफलता मृतकों के प्रति अनादर दिखाने के समान होगी.
शीर्ष अदालत ने इस बात पर भी सहमति व्यक्त की थी कि जिन शवों की पहचान नहीं हुई है या जिन पर दावा नहीं किया गया है, उन्हें मुर्दाघरों में अनिश्चित काल तक रखना उचित नहीं होगा. अज्ञात शवों के लिए, अदालत ने राज्य को धार्मिक अनुष्ठानों के साथ दफनाने या दाह संस्कार करने की अनुमति दी थी.