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मणिपुर में उग्रवादी हमले में मारे गए चौथे व्यक्ति का शव मिला, इलाके में फैला तनाव

अहनथेम दारा का शव मिलने के बाद कुंबी इलाके में तनाव फैल गया. स्थानीय लोगों ने तीन दिन के अंदर इलाके में तैनात केंद्रीय बलों को हटाने की मांग की है. पिछले साल 3 मई 2023 को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क गई थी, जिसके बाद से अब तक 200 लोग मारे गए हैं. कई सैकड़ा लोग घायल हुए हैं.

 मणिपुर में पिछले साल मई से अबतक 200 लोगों की हिंसा में मौत हो चुकी है (फाइल फोटो) मणिपुर में पिछले साल मई से अबतक 200 लोगों की हिंसा में मौत हो चुकी है (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • इंफाल,
  • 14 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:44 AM IST

मणिपुर में हिंसा का दौर अभी भी जारी है. बिष्णुपुर जिले के वांगू सबल इलाके में 10 जनवरी से लापता चौथे व्यक्ति का शव मिला है. शव की शिनाख्त अहनथेम दारा मैतेई (56) के रूप में हुई है. अहनथेम उन चार लोगों में शामिल थे, जो जिले के कुंबी हाओतक इलाके में सशस्त्र उग्रवादियों के हमले के बाद लापता हो गए थे. पुलिस ने कहा कि सुरक्षाबलों की गहन तलाशी के बाद चौथे व्यक्ति का शव मिल गया है.

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बता दें कि अहनथेम के अलावा चरमपंथियों के हमले में ओइनम रोमेन मैतेई (45), थौदाम इबोम्चा मैतेई (53) और उनके बेटे थौदाम आनंद मैतेई (27) के शव 11 जनवरी को पाए गए थे. तीनों के शव उस जगह मिले, जहां गोलीबारी हुई थी. अहनथेम दारा का शव मिलने के बाद कुंबी इलाके में तनाव फैल गया. स्थानीय लोगों ने तीन दिन के अंदर इलाके में तैनात केंद्रीय बलों को हटाने की मांग की है.

मणिपुर के कुंबी विधानसभा क्षेत्र के चार लोग बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों से सटे पहाड़ी श्रृंखलाओं के पास लकड़ी इकट्ठा करने गए थे. लेकिन वह वापस नहीं लौटे. पुलिस ने उनकी पहचान दारा सिंह, इबोम्चा सिंह, रोमेन सिंह और आनंद सिंह के रूप में की थी. उग्रवादियों ने 10 जनवरी को बिष्णुपुर जिले के हाओतक गांव में गोलीबारी की और बम से भी हमले किए थे, जिससे 100 से अधिक महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सुरक्षित इलाकों में भाग गए. सूचना मिलने पर सुरक्षा बल मौके पर पहुंचे और जवाबी कार्रवाई की. 

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पिछले साल मई में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़प के बाद रुक-रुक कर हिंसा की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें अब तक करीब 200 लोगों की जान जा चुकी है.

हिंसा की चपेट में आने से निजी और सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा है. हिंसा की शुरुआत तब हुई, जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया गया था. हिंसा से पहले कुकी ग्रामीणों को आरक्षित वन भूमि से बेदखल करने को लेकर तनाव था, जिसके कारण कई छोटे आंदोलन हुए थे.

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