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दिल्ली की शराब पॉलिसी बदलने से 2000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान, CAG की रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान पेश की गई शराब पॉलिसी को लेकर विधानसभा में सीएजी की रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली की शराब पॉलिसी बदलने से 2,002 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. 

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और अरविंद केजरीवाल दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और अरविंद केजरीवाल
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 2:35 PM IST

दिल्ली विधानसभा सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को सदन के पटल पर दिल्ली शराब घोटाले से कैग की रिपोर्ट पेश की गई. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कैग की इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा.

शराब पॉलिसी को लेकर कैग की यह ऑडिट रिपोर्ट 2017-2018 से 2020-2021 तक की चार अवधि की है. विधानसभा में पेश की गई इस रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली की शराब पॉलिसी बदलने से 2,002 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. 

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कैग की इस रिपोर्ट में 2017-18 से 2021-22 के बीच शराब के रेगुलेशन और सप्लाई की जांच की गई है. साथ ही इसमें 2021-22 की आबकारी नीति की समीक्षा भी की गई है. हालांकि, इस शराब पॉलिसी को सितंबर 2022 में वापस ले लिया गया था.

कैग की इस रिपोर्ट में बताया गया कि आम आदमी पार्टी ने नई शराब पॉलिसी लागू करते समय कई गंभीर तरह की अनियमितताएं बरती गईं, जिससे सरकारी खजाने को 2 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ था.

शराब घोटाले को लेकर CAG की रिपोर्ट में क्या-क्या है?

- आम आदमी पार्टी सरकार की नई शराब नीति से लगभग 2,002 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

- गलत फैसलों की वजह से दिल्ली सरकार को भारी नुकसान हुआ है. 

- नॉन कंफर्मिंग क्षेत्रों में लाइसेंस जारी करने में छूट देने से लगभग 940 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

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- रिटेंडर प्रक्रिया से 890 करोड़ रुपये का नुकसान.

- कोविड-19 प्रतिबंधों की वजह से 28 दिसंबर 2021 से 27 जनवरी 2022 तक शराब कारोबारियों को लाइसेंस शुल्क में 144 करोड़ की छूट दी गई.

- सिक्योरिटी डिपॉजिट सही से इकट्ठा नहीं करने से 27 करोड़ रुपये का नुकसान.

- कुछ खुदरा विक्रेताओं ने शराब नीति खत्म होने तक लाइसेंस का इस्तेमाल करते रहे लेकिन कुछ ने इन्हें समय से पहले ही सौंप दिया. 

लाइसेंस उल्लंघन से भी लगी सरकार को चपत

- दिल्ली एक्साइज नियम, 2010 के नियम 35 को सही से लागू नहीं किया गया.

- मैन्युफैक्चरिंग और रिटेल में दिलचस्पी रखने वाले कारोबरियों को wholesale का लाइसेंस दिया गया. इससे पूरी liquor supply chain में एक तरह के लोगों का फायदा हुआ. इससे wholesale मार्जिन पांच फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हुआ. 

- शराब जोन चलाने के लिए 100 करोड़ रुपये की जरूरत थी. लेकिन सरकार ने कोई जांच नहीं की. 

- आम आदमी पार्टी सरकार ने अपनी एक्सपर्ट  समिति की सलाह को नदरअंदाज किया और नीति में मनमाने बदलाव किए.

- रिपोर्ट में कहा गया कि पहले एक व्यक्ति को सिर्फ 2 दुकानें रखने की अनुमति थी, लेकिन नई पॉलिसी में लिमिट बढ़ाकर 54 कर दी गई.

- पहले सरकार की 377 दुकानें थीं लेकिन नई शराब पॉलिसी में 849 शराब वेंड बना दिए गए जिनमें से सिर्फ 22 निजी entity को लाइसेंस मिले. इससे मोनोपॉली को बढ़ावा मिला. 

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- मैन्युफैक्चरर को सिर्फ एक wholesaler के साथ टाई-अप करना था लेकिन 367 पंजीकृत आईएमएफएल ब्रांड में से सिर्फ 25 ब्रांड ने शराब की कुल बिक्री का 70 फीसदी हिस्सा कवर किया. 

- कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2010 में दिल्ली कैबिनेट ने फैसला लिया था कि शराब की तस्करी रोकने के लिए दिल्ली में बिकने वाली शराब की हर बोतल की बारकोडिंग की जाएगी. लेकिन यह भी तय हुआ था कि एक्साइज सप्लाई चेन इनफॉर्मेशन सिस्टम प्रोजेक्ट के तहत एक इम्प्लीमेंटिंग एजेंसी (IA) यह काम करेगी.

कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि जो समझौता हुआ था उसके तहत TCS को हर बोतल के लिए 15 पैसे मिलने थे. लेकिन नियमों के मुताबिक, शराब की दुकान पर बिकने वाली हर बोतल के बारकोड को स्कैन किया जाना था. हालांकि, मार्च 2021 तक कुल 482.62 करोड़ बारकोड बिके हुए दिखाए गए लेकिन सिर्फ 346.09 करोड़ ही ऐसे थे जिन्हें स्कैन किया गया. यानी बाकी के 136.53 करोड़ को दिखाया गया कि उन्हें बिना स्कैन किए ही बेचा गया. 

रिपोर्ट में कहा गया कि आम आदमी पार्टी की सरकार की नई शराब पॉलिसी में पूरी तरह से पारदर्शिता की कमी थी. इससे शराब माफियाओं को फायदा हुआ. उनकी बाजार में मोनोपॉली बनी. इससे सरकार को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ और आम जनता के लिए शराब की कीमतें मैनिपुलिट की गईं. 

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बता दें कि 17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने नई शराब नीति 2021-22 लागू की थी. इसके तहत दिल्ली में शराब की सभी दुकानें निजी कर दी गई थीं. 

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