
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस संजय किशन कौल ने 'आजतक' से खास बातचीत की और कहा कि सरकारें शुरू से ही जांच एजेंसियों को कंट्रोल करती रही हैं. 25 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर रिटायर हुए जस्टिस कौल ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद सरकार से कोई पद नहीं लेंगे. उन्होंने कहा कि वह अब आम नागरिक की तरह दिल्ली और जम्मू- कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में अपने पुश्तैनी घर में परिवार, नाती नातिन के साथ समय बिताएंगे और अपने वो शौक भी पूरे करेंगे जो जज रहते पिछले साढ़े बाईस सालों से नहीं कर पाए.
सरकार चाहती है बड़ी भूमिका
न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच होने वाली खींचतान के बारे में बात करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि वर्तमान सरकार निश्चित रूप से बड़ी भूमिका निभाना चाहती है. इस सवाल के जवाब में कि क्या वर्तमान सरकार के साथ कोई टकराव हुआ है? जस्टिस कौल ने कहा, 'वे निश्चित रूप से एक बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं, उन्हें लगता है कि वे बड़ी भूमिका निभाने के हकदार हैं क्योंकि उन्हें एक बड़े जनादेश के साथ चुना गया है.'
उन्होंने कहा कि जब भी मजबूत सरकारें होती हैं तो खींचतान अधिक होती है. उन्होंने कहा कि जब भी गठबंधन सरकार रही है न्यायपालिका थोड़ा आगे रही है, जब भी मजबूत सरकारें रही हैं तो उसे पीछे धकेलने का काम ज्यादा हुआ है. सरकार न्यायिक नियुक्तियों में बड़ी भूमिका निभाना चाहती है.
कॉलेजियम का किया बचाव
जजों की नियुक्ति की व्यवस्था के बारे में बात करते हुए जस्टिस कौल ने कहा कि सरकार बड़ी भूमिका निभाना चाहती है, उन्हें लगता है कि उनकी भी भूमिका है क्योंकि वे निर्वाचित प्रतिनिधि हैं. एनजेएसी और जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली दोनों के बारे में बात करते हुए जस्टिस कौल ने कहा कि जो भी व्यवस्था है, उसे संचालित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा,'अगर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) प्रचलित होता तो हम एनजेएसी संचालित करते. भूमि का कानून अंतिम मध्यस्थ के रूप में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया जाता है. यदि यह कानून है तो नियुक्तियों को इससे होकर गुजरना होगा, इस मुद्दे पर सरकार के साथ मेरी राय में मतभेद है.'
जजों की नियुक्ति के लिए बने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के बारे में बात करते हुए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था, जस्टिस कौल ने कहा कि उनका मानना है कि सबसे बड़ी चिंता का ध्यान रखते हुए एनजेएसी में बदलाव किया जा सकता था, ताकि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी न हो. उन्होंने कहा कि सरकारें भी सीजेआई की सलाह से जज नियुक्त करती थीं फिर कॉलेजियम सिस्टम आया इसके बाद एनजेएसी लाया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर दिया. मेरे ख्याल से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को भी आजमाना चाहिए था. उसमें कुछ सुधार की गुंजाइश थी. मौजूदा सिस्टम जितनी क्षमता से काम कर सकता है कर रहा है.
जस्टिस कौल ने कहा कि निश्चित रूप से राजनीतिक वर्ग और सरकार के बीच यह भावना रही है कि न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं इसलिए उनकी भूमिका से समझौता किया गया है.
ऐसे नहीं की जा सकती है जजों की नियुक्ति
कॉलेजियम प्रणाली पारदर्शी नहीं? इस आलोचना का जवाब देते हुए जस्टिस कौल ने कहा, 'हम शीशे के घर में बैठकर न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं कर सकते.' उन्होंने कहा कि इसके लिए एक प्रक्रिया होती है जिसमें सभी बार के जजों से परामर्श, आईबी के साथ परामर्श, कॉलेजियम के साथ बैठक, नामों को एकत्र करना आदि शामिल है. उन्होंने कहा कि सिस्टम ने काम किया है और उन्हें कोई शिकायत नहीं है.
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु ने 60 नामों की सिफारिश की थी और 46 को उस अदालत के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. इसके अलावा पंजाब और हरियाणा HC की कुल 16 सिफारिशों में से 14 नामों की नियुक्ति की गई. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि, समय के साथ उन्होंने पाया कि समय बहुत ज्यादा लग रहा है और इसका समाधान नहीं हो पाया है. 'अपनों' को बढ़ावा देने के लिए कॉलेजियम की आलोचना पर, जस्टिस कौल ने कहा कि नियुक्ति के लिए किसी न्यायाधीश के बेटे के नाम पर विचार करने पर कोई रोक नहीं है. हालाँकि, उन्होंने एक सरल टेस्ट रखा, जिसके अनुसार यदि कोई उम्मीदवार किसी न्यायाधीश का नजदीकी है, तो उसे दूसरों की तुलना में 10% बेहतर होना होगा.