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पैसे लेकर सवाल पूछने पर घिरीं महुआ मोइत्रा... आखिर लोकसभा में प्रश्न पूछने का तरीका क्या है?

संसद की आचार समिति 26 अक्टूबर को तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ "कैश-फॉर-क्वेरी" शिकायत पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और वकील जय आनंद देहाद्राई की सुनवाई करेगी. मामले में रियल एस्टेट अरबपति निरंजन हीरानंदानी के बेटे दर्शन हीरानंदानी सरकारी गवाह बन गए हैं. दर्शन ने दावा किया कि उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल पूछने के लिए महुआ की संसदीय लॉगिन का इस्तेमाल किया था.

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (फाइल फोटो) टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 10:59 AM IST

TMC सांसद महुआ मोइत्रा की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. कैश फॉर क्वेरी मामले में फंसी महुआ मोइत्रा का मामला संसद की एथिक्स कमिटी के पास है. संसद की आचार समिति 26 अक्टूबर को तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ "कैश-फॉर-क्वेरी" शिकायत पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और वकील जय आनंद देहाद्राई की सुनवाई करेगी. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मोइत्रा पर अडानी समूह और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के लिए व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी की ओर से संसद में "सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने" का आरोप लगाया था.

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दर्शन हीरानंदानी के कबूलनामे से मुश्किल मे महुआ
मामले में रियल एस्टेट अरबपति निरंजन हीरानंदानी के बेटे दर्शन हीरानंदानी सरकारी गवाह बन गए हैं. दर्शन ने दावा किया कि उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल पूछने के लिए महुआ की संसदीय लॉगिन का इस्तेमाल किया था. दर्शन का बयान मोइत्रा की तरफ से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ दायर मानहानि मामले में शुक्रवार को सुनवाई से पहले आया है.

इस पूरे मामले में एक बात लगातार केंद्र में है, वह है संसद में सवाल पूछना. आखिर संसद में सवाल पूछने का तरीका क्या है. महुआ ने कहां गलती की है और कैसे की है, ये सारी बातें तो एथिक्स कमेटी देखेगी, लेकिन लोकसभा में सवालों के उठाने के क्या नियम हैं, इस पर डालते हैं एक नजर. 

लोकसभा का पहला घंटा होता है प्रश्नकाल
जब लोकसभा शुरू होती है तो इसका पहला घंटा और राज्‍यसभा में 12 बजे के बाद का समय प्रश्न किए जाने के लिए तय है. इसे ही प्रश्नकाल कहा गया है. प्रश्‍न पूछना सांसदों का अधिकार है और इन प्रश्नों के आधार पर ही सरकार को कसौटी पर परखा जाता है. किया जाने वाला हर प्रश्न जिस मंत्रालय के जुड़ा होता है तो उसके मंत्री को उत्तर देना होता है. कई बार जब उठाया गया मामला गंभीर होता है और लोगों के देशव्यापी हित से जुड़ा होता है, साथ ही उसका उत्तर किसी अनुसंधान के जरिए खोजने की जरूरत पड़ जाती है, तो प्रश्नों के जरिए ही किसी आयोग का गठन, उनकी नियुक्ति या न्यायालयी जांच की प्रक्रिया अपनायी जाती है. इसे ऐसे समझ में लें कि अगर किसी प्रश्न के जरिए किसी शिकायत या समस्या को सामने रखा गया है तो उसकी जांच आदि के लिए कमीशन गठित की जाती है.

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सांसद कैसे पूछ सकते हैं सवाल, ये है तरीका
अब आता है बेहद जरूरी सवाल , जो कि अभी के महुआ मोइत्रा मामले में भी अहम है, कि आखिर प्रश्‍न पूछने का तरीका क्या होता है? संसद में प्रश्नों की भी अलग-अलग कैटिगरी होती है. अगर किसी सदस्य के प्रश्न को मौखिक उत्तर की कैटगरी में रखा गया है, तो वह सदस्य अपने प्रश्‍न की बारी आने पर सीट से खड़े होते हैं और अपना प्रश्‍न पूछते हैं. संबंधित मंत्री प्रश्‍न का उत्तर देते हैं. इसके बाद जिस सदस्य ने प्रश्‍न पूछा था, वे दो अनुपूरक प्रश्‍न पूछ सकते हैं.

इसके बाद दूसरे सदस्य जिसका नाम प्रश्‍न करने वाले सदस्य के साथ शामिल किया गया हो, वे एक अनुपूरक प्रश्‍न पूछ सकते हैं. इसके बाद सदन के  अध्यक्ष उन सदस्यों को एक-एक अनुपूरक प्रश्‍न पूछने की अनुमति देते हैं, जिनका वह नाम पुकारते हैं. ऐसे सदस्यों की संख्या प्रश्‍न के महत्व पर निर्भर करती है. इसके बाद अगला प्रश्‍न पूछा जाता है. प्रश्‍न काल के दौरान जिन प्रश्‍नों के उत्तर मौखिक उत्तर हेतु नहीं पहुंचते हैं उन्हें सदन के पटल पर रखा गया माना जाता है. प्रश्‍न काल के अंत में यानी तमाम मौखिक उत्तर दिए जाने के बाद, अल्प सूचना प्रश्‍नों को लिया जाता है और इसी तरह उनके भी उत्तर दिए जाते हैं.

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सवाल करने के नियम 'लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम' के अंतर्गत  32 से 54 तक दर्ज हैं. यह नियम अध्यक्ष के लोकसभा के निर्देशों  में शामिल निर्देश 10 से 18 के जरिए डाइरेक्ट होते हैं. प्रश्न पूछने के लिए सांसद पहले निचले सदन के महासचिव को संबोधित एक नोटिस देता है. इस नोटिस में वह जाहिर करता है कि उसे प्रश्न पूछना है. नोटिस में आमतौर पर प्रश्न का पाठ, जिस मंत्री को प्रश्न संबोधित किया गया है उसका आधिकारिक पदनाम, वह तारीख जिस पर उत्तर दिया जाना है और यदि सांसद उसी दिन एक से अधिक प्रश्नों के नोटिस देता है तो उनता वरीयता क्रम भी दर्ज होता है. 

सदस्य को किसी भी दिन, मौखिक और लिखित उत्तरों के लिए, कुल मिलाकर प्रश्नों की पांच से अधिक नोटिफिकेश देने की अनुमति नहीं है. एक दिन में किसी सदस्य से पांच से अधिक प्राप्त नोटिसों पर उस सत्र की अवधि के दौरान उस मंत्री से संबंधित अगले दिन के लिए विचार किया जाता है,'' एक सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार, 'लोकसभा में प्रश्नकाल' में आमतौर पर, किसी प्रश्न की सूचना की अवधि 15 दिन से कम नहीं होती है.

ऐसे दो तरीके हैं जिनके माध्यम से सांसद अपने प्रश्नों के नोटिस दे सकते हैं. सबसे पहले, एक ऑनलाइन 'मेम्बर पोर्टल' के जरिए से, इसके एक्सेस के लिए सांसद को अपनी आईडी और पासवर्ड दर्ज करना होगा. दूसरा, संसदीय सूचना कार्यालय में उपलब्ध मुद्रित प्रपत्रों के माध्यम से. अगला चरण तब होता है जब लोकसभा अध्यक्ष निर्धारित नियमों के आलोक में प्रश्नों के नोटिस की जांच करते हैं. ध्यक्ष ही है यह निर्णय लेता है कि कोई प्रश्न या उसका कोई भाग स्वीकार्य है या नहीं.

हर तरह के सवाल नहीं पूछ सकते, अस्वीकृत भी होते हैं प्रश्न
सवाल पूछना संसद सदस्यों का अधिकार जरूर है, लेकिन इसका यह बिल्कुल अर्थ नहीं है कि सदस्य वहां कुछ भी पूछ सकते हैं. किसी व्यक्ति के जुड़े ऐसे सवाल नहीं किए जाते जो उसके चारित्रिक हनन की ओर ले जाते हैं. किसी के आचरण पर कोई सवाल नहीं पूछा जा सकता है साथ ही सवालों की आड़ में किसी पर व्यक्तिगत दोषारोपण नहीं किया जा सकता है. किसी प्रश्न में अगर ऐसा कुछ भी संकेत मिलता है तो इसे अस्वीकृत कर दिया जाता है. ऐसे प्रश्‍न जिनके उत्तर पहले दिए जा चुके प्रश्‍नों की पुनरावृत्ति हो या जिनके संबंध में जानकारी उपलब्ध दस्तावेजों में या सामान्य संदर्भ ग्रंथों में उपलब्ध हो, उन्हें भी अस्वीकृत कर दिया जाता है.

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इस तरह के सवाल भी होते हैं रिजेक्ट
इसके साथ ही सवाल से जुड़ा मुद्दा अगर, अगर कोर्ट में या फिर किसी संसदीय समिति के विचाराधीन है तो ऐसे प्रश्‍न को पूछने की भी इजाजत नहीं होती है. ऐसे प्रश्‍न भी नहीं किए जा सकते, जिनके जरिए देश से मित्रता रखने वाले देशों के प्रति अविनयपूर्ण बातों की झलक मिलती हो. इन्हें भी रिजेक्ट कर दिया जाता है. नीति विषयक मुद्दों से संबंधित प्रश्‍नों को पूछने की भी अनुमति नहीं दी जाती है, जिनका समाधान प्रश्‍नों के उत्तर की सीमा में नहीं किया जा सकता हो. 150 से अधिक शब्दों वाले प्रश्‍नों अथवा ऐसे मामले जिसका मुख्यतः भारत सरकार से संबंध नहीं है, उन्हें भी स्वीकार नहीं किया जाता है. साथ ही प्रशासन की छोटी-मोटी बातों और सरकार के रोजाना के कार्य संबंधित प्रश्‍नों को भी अस्वीकार कर दिया जाता है.

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