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दिल्ली सरकार के अधिकारों पर केंद्र का अध्यादेश जारी, ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामलों में LG ही 'बॉस'

केंद्र सरकार इस अध्यादेश के जरिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन करेगी, जो दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग और विजिलेंस के काम पर नजर रखेगी. इसमें तीन सदस्य होंगे, जिसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रधान सचिव गृह होंगे. लेकिन समिति बहुमत से फैसला करेगी. 

दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
कुमार कुणाल/हिमांशु मिश्रा/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2023,
  • अपडेटेड 12:07 AM IST

केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए शुक्रवार को अध्यादेश लेकर आई है. इस अध्यादेश के जरिए केंद्र ने ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार उपराज्यपाल को दे दिए हैं. 

इस अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन करेगी, जो दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग और विजिलेंस का काम करेगी. इसके तीन सदस्य होंगे, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और गृह सचिव होंगे. मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में यह समिति अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का फैसला बहुमत के आधार पर करेगी. लेकिन आखिरी फैसला उपराज्यपाल का होगा. 

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कहा जा रहा है कि केंद्र का यह कदम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार को मिले अधिकारों में कटौती की तरह है. अभी तक मुख्य सचिव और गृह सचिव केंद्र सरकार के जरिए नियुक्त किए जाते हैं. यानी इस तरह अथॉरिटी में मुख्यमंत्री अल्पमत में होगा. इस तरह ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार केंद्र सरकार के पास ही होगा. 

अध्यादेश पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना

दिल्ली सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार का अध्यादेश सीधेतौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में बेहद स्पष्ट तौर पर कहा था कि चुनी हुई सरकार सुप्रीम है. चुनी सरकार के पास सारी शक्तियां हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से डरकर केंद्र सरकार यह अध्यादेश लेकर आई है. केजरीवाल सरकार की पावर को कम करने के लिए यह अध्यादेश लाया गया है.

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दिल्ली सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर जनता ने केजरीवाल को वोट दिया है तो केजरीवाल के पास सभी निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए. लेकिन केंद्र सरकार इस अध्यादेश के माध्यम से कह रही है कि दिल्ली के लोगों ने जिसे चुना है, उसे दिल्ली की जनता के हक में फैसले लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए. यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना के साथ दिल्ली की जनता के जनादेश का भी अपमान है. 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से डर गई केंद्र सरकार

केंद्र सरकार के इस अध्यादेश की आम आदमी पार्टी ने आलोचना की है. आम आदमी पार्टी की विधायक और दिल्ली सरकार की शिक्षा मंत्री आतिशी मार्लेना ने केंद्र सरकार के इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के आदेश की अवमानना बताया.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अरविंद केजरीवाल को अधिकार मिलने के डर से यह अध्यादेश लेकर आई है. यह अजीब है कि भले ही दिल्ली की जनता ने 90 फीसदी सीट अरविंद केजरीवाल को दी हो लेकिन दिल्ली की सरकार अरविंद केजरीवाल नहीं चला सकते. दरअसल केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले से डरी हुई है.

केंद्र का फैसला बदले की भावना से परिपूर्ण

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि केंद्र का नया अध्यादेश बदले की भावना से ओत-प्रोत है और पूरी तरह से संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है. संवैधानिक सिद्धांत यह है कि नौकरशाह चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह होते हैं. लेकिन आपने नौकरशाहों को अन्य नौकरशाहों का प्रभारी बना दिया है. आप कैसे अध्यादेश के जरिए संविधान का उल्लंघन कर सकते हैं? इसे चुनौती दी जाएगी और इसे संसद के जरिए पारित नहीं होने दिया जाएगा.
 

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केजरीवाल पहले जता चुके थे अंदेशा

मुख्यमंत्री केजरीवाल केंद्र सरकार के इस फैसले का पहले ही अंदेशा जता चुके थे. उन्होंने कहा था कि ऐसा सुनने में आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार कोई अध्यादेश ला सकती है. 

दरअसल पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग समेत सर्विसेज मामलों का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है.
 

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