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डिजिटल मीडिया के लिए कानून ज्यादा जरूरी, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का हलफनामा

केंद्र के हलफनामे मुताबिक न्यूज, मनोरंजन, खेल, भक्ति और विज्ञापन क्षेत्र से जुड़े चैनलों के आत्म अनुशासन और आत्म नियमन के लिए संगठन बनाकर स्वायत्त इंतजाम कर रखे हैं. लेकिन डिजिटल मीडिया को रेग्युलेट करने की सख़्त जरूरत है. क्योंकि इसके लिए अभी तक न तो कोई नियम कायदे हैं और न ही कार्रवाई के कोई नियमित प्रावधान हैं.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 4:08 PM IST
  • केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा
  • 385 चैनलों को न्यूज चैनल्स के लाइसेंस दिए
  • डिजिटल मीडिया को रेग्युलेट करने की जरूरत

निजी समाचार चैनल के कार्यक्रम पर लगी रोक को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के सिलसिले में केंद्र सरकार ने सेल्फ रेगुलेशन करने वाले चैनलों, उनके संगठन और अन्य प्रावधानों और प्रक्रिया पर विस्तृत हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दिया है.  

हलफनामे के मुताबिक न्यूज, मनोरंजन, खेल, भक्ति और विज्ञापन क्षेत्र से जुड़े चैनलों के आत्म अनुशासन और आत्म नियमन के लिए संगठन बनाकर स्वायत्त इंतजाम कर रखे हैं. लेकिन डिजिटल मीडिया को रेग्युलेट करने की सख़्त जरूरत है. क्योंकि इसके लिए अभी तक न तो कोई नियम कायदे हैं और न ही कार्रवाई के कोई नियमित प्रावधान हैं. 

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केंद्र के हलफनामे के मुताबिक देश भर में सरकार ने 385 चैनलों को नियमित न्यूज चैनल के लाइसेंस दिए हैं. ये चैनल समाचारों के साथ मनोरंजन से इतर कार्यक्रम प्रसारित करते हैं. इनमे वार्ता, बहस कार्यक्रम और जनता तक जानकारी पहुंचाने के अन्य कई कार्यक्रम भी होते हैं.

इसके अलावा सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 530 ऐसे चैनलों को भी लाइसेंस दिया हुआ है जो पूरी तरह मनोरंजन, खेल और भक्ति, अध्यात्म के कार्यक्रम प्रसारित करते हैं.  

इन खबरिया चैनलों ने आत्म नियमन के लिए सबसे पहले न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) बनाया. इसमें देश के कई अग्रणी न्यूज चैनल्स शामिल हैं. इसकी सदस्यता ऐच्छिक है. इसकी प्रशासनिक व्यवस्था के अगुआ सुप्रीम कोर्ट के ही सेवा निवृत्त न्यायाधीश जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी हैं.

सरकार ने बताया कि दूसरा संगठन हाल ही में अस्तित्व में आया है न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (NBF) जिसके प्रशासनिक समिति के अगुआ अभी तय होने हैं. उसमें भी सुप्रीम कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज को ही नियुक्त किया जाएगा. हालांकि हलफनामे के संलग्नक यानी एनेक्सचर में एनबीएफ ने पूर्व सीजेआई जस्टिस जेएस केहर को इस पद पर नियुक्त करने की बात कही है.
 
हलफनामे के मुताबिक इन दोनों संगठनों की सदस्यता ऐच्छिक है और ये नॉन स्टेट्यूट्री संगठन हैं. चैनलों पर ये बाध्यता नहीं है कि वो लाइसेंस मिलने या प्रसारण शुरू करने से पहले किसी संगठन के सदस्य बन ही जाएं.  

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अभी भी 237 ऐसे चैनल हैं जो दोनों में से किसी भी संगठन के सदस्य नहीं हैं. ऐसे चैनलों के खिलाफ आने वाली शिकायतों, गड़बड़ियों या लापरवाहियों पर कार्रवाई करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अंतर मंत्रालय समिति बना रखी है. ये समिति शिकायतों पर या फिर स्वत:संज्ञान लेकर भी कार्रवाई करती है. 

इसके अलावा मनोरंजन और अन्य किस्म के चैनलों ने भी इंडियन ब्रॉडकास्टर्स फाउंडेशन नाम से संगठन बनाया है और आत्म नियमन करते हैं. इसके करीब 300 सदस्य हैं. इस संगठन ने भी आत्म अनुशासन के लिए ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट केंपलेंट्स काउंसिल (बीसीसीआई) बनाई है जिसके अगुआ सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस विक्रमजीत सेन हैं. इनके अलावा विज्ञापन मानकों को लेकर भी एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स ऑफ इंडिया ने कंज्यूमर कंप्लेंट्स काउंसिल (CCC) से सबको अनुशासित करने के इंतजाम कर रखे हैं.


 

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