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लोकसभा में जोरदार हंगामा, पेश नहीं हो सका दिल्ली सेवा विधेयक, अब कल बिल लाने की तैयारी

संसद में भारी हंगामे के चलते लोकसभा को आज पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया गया. संसद में आज दिल्ली सेवा बिल पेश होना था. लेकिन अब बिल को कल यानी मंगलवार को पेश किया जाएगा. इस बिल को लेकर आम आदमी पार्टी पहले से ही विरोध दर्ज कराती आई है. ऐसे में जब मंगलवार को इसे लोकसभा में पेश किया जाएगा तब भी हंगामे के भारी आसार हैं.

सोमवार को लोकसभा में जोरदार हंगामा (फाइल फोटो) सोमवार को लोकसभा में जोरदार हंगामा (फाइल फोटो)
पॉलोमी साहा
  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 6:15 PM IST

देश की संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में आज दिल्ली सेवा बिल पेश होना था. लेकिन भारी हंगामे के चलते लोकसभा को स्थगित कर दिया गया और अब बिल को कल यानी मंगलवार को पेश किया जाएगा. वैसे तो यह बिल आज यानी सोमवार को ही पेश होना था. इसे लेकर सभी तैयारियां भी पूरी हो गई थीं. सांसदों को यह बिल एक दिन पहले यानी रविवार को ही सर्कुलेट भी कर दिया गया था. लेकिन सोमवार को सदन को पहले ही स्थगित कर दिया गया और बिल पेश न हो सका. इस बिल को लेकर आम आदमी पार्टी पहले से ही विरोध दर्ज कराती आई है. ऐसे में जब मंगलवार को इसे लोकसभा में पेश किया जाएगा तब भी हंगामे के भारी आसार हैं.

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने से पहले जान लेते हैं कि यह बिल आखिर है क्या. क्यों इस बिल पर इतना हंगामा मचा हुआ है. आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल इस बिल को रोकने के लिए पूरे देश में घूमकर विपक्षी नेताओं से मुलाकात की और उनका समर्थन मांगा. एनसीटी दिल्ली संशोधन बिल 2023 के जरिए राजधानी के प्रशासनिक और लोकतांत्रिक संतुलन का प्रावधान है. आइए जानते हैं कि अगर ये बिल कानून बनता है, तो क्या कुछ बदलेगा?

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद? 

दरअसल, दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर लंबे समय से केंद्र और केजरीवाल सरकार में ठनी है. दिल्ली में विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू है. 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था.

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केंद्र ने किए बदलाव तो SC पहुंची AAP सरकार

संशोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे. इसके मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था. GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी. इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुनाया फैसला 

दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल की याचिका पर मई में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने माना दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुड़े सभी अधिकार चुनी हुई सरकार के पास होंगे. हालांकि, पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास ही रहेगा. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 'अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा. उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी.'

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र लाया अध्यादेश 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए केंद्र सरकार 19 मई को एक अध्यादेश लाई. इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया.

दिल्ली के लिए लाए गए इस अध्यादेश पर केजरीवाल सरकार ने कहा कि इससे दिल्ली सरकार की शक्तियां कम हो गईं. दिल्ली सरकार ने कहा कि यह अध्यादेश पूरी तरह से निर्वाचित सरकार के सिविल सर्विसेज के ऊपर अधिकार को खत्म करता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) को इस तरह से बनाया गया है कि इसके अध्यक्ष तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन वो हमेशा अल्पमत में रहेंगे. समिति में बाकी दो अधिकारी कभी भी उनके खिलाफ वोट डाल सकते हैं, सीएम की अनुपस्थिति में बैठक बुला सकते हैं और सिफारिशें कर सकते हैं. यहां तक कि एकतरफा सिफारिशें करने का काम किसी अन्य संस्था को सौंप सकते हैं.

6 महीने में अध्यादेश को कानून बनाना जरूरी

बता दें कि अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर लाया जाता है. अगर संसद नहीं चल रही, उस दौरान सरकार कोई नया कानून बनाना चाहती है तो इसे अध्यादेश के रूप में लाया जाता है, लेकिन इस अध्यादेश को छह महीने के अंदर कानून की शक्ल देनी होती है जिसके लिए इसे अगले ही सत्र में संसद में पेश करना होता है. केंद्र सरकार मई महीने में ही यह अध्यादेश लेकर आई थी.

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अध्यादेश को बिल बनाने से पहले किए गए बदलाव 

गौरतलब है कि 19 मई को जो अध्यादेश लाया गया था उसकी तुलना में अब बिल में कुछ जरूरी बदलाव किए गए हैं. केंद्र सरकार ने बिल लाने से पहले सेक्शन 3A और 45D में अहम बदलाव किए हैं. धारा 3A जो अध्यादेश का हिस्सा थी, उसे प्रस्तावित विधेयक से पूरी तरह हटा दिया गया है. धारा 3A संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-2 की प्रविष्टि 41 से संबंधित है. अध्यादेश में कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा को सेवाओं से जुड़े कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. लेकिन प्रस्तावित विधेयक में अध्यादेश की एक अन्य धारा 45D के तहत प्रावधानों को कमजोर कर दिया गया है. बताते चलें कि धारा 45D बोर्डों, आयोगों, प्राधिकरणों और अन्य वैधानिक निकायों के लिए की जाने वाली नियुक्तियों से संबंधित है. इस अध्यादेश ने एलजी/राष्ट्रपति को सभी निकायों, बोर्डों, निगमों आदि के सदस्यों/अध्यक्षों आदि की नियुक्ति या नामांकन करने की विशेष शक्तियां प्रदान कीं हैं. हालांकि, नया अधिनियम राष्ट्रपति को यह शक्ति केवल संसद के अधिनियम के माध्यम से गठित निकायों/बोर्डों/आयोगों के संबंध में प्रदान करता है.

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