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पहले कंचनजंगा, अब डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस... दो महीने में दो रेल हादसों के बीच कहां है रेलवे का जीरो एक्सीडेंट टारगेट वाला सुरक्षा 'कवच'?

डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसे के बाद अब रेलवे की KAVACH को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं. इससे पहले बीते महीने कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे के बाद भी सवाल उठे थे कि आखिर रेलवे का KAVACH कहां है, और यह यात्रियों की सुरक्षा के काम क्यों नहीं आ पा रहा है.

चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर गए. चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर गए.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 9:29 PM IST

उत्तर प्रदेश के गोंडा में गुरुवार को डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के 6 डिब्बे पटरी से उतर गए. घटना गोरखपुर रेल खंड के मोतीगंज बॉर्डर के पास हुई. चंडीगढ़ से असम वाया गोरखपुर जा रही डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसे में 2 यात्रियों की मौत हो गई. इसके अलावा इस दुर्घटना में 31 लोगों के घायल होने की जानकारी सामने आई. 

इससे पहले बीते महीने ही पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी के पास एक मालगाड़ी सियालदाह जाने वाली कंचनजंगा एक्सप्रेस से टकरा गई थी. हादसे में 9 लोगों की मौ​त हुई थी और 50 से अधिक घायल हो गए थे. इस घटना के बाद भी सवाल उठे थे कि आखिर रेलवे का KAVACH कहां है और यह रेल यात्रियों की सुरक्षा के काम क्यों नहीं आ पा रहा है. लगातार उठते सवाल के बीच तब रेलवे बोर्ड की CEO और चेयरमैन जया वर्मा सिन्हा कवच सिस्टम को लेकर सभी जरूरी जानकारी शेयर की थी. 

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डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसे के बाद अब रेवले की KAVACH को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं. घटना पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पर लिखा,  उत्तर प्रदेश में चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस का पटरी से उतरना इस बात का एक और उदाहरण है कि कैसे मोदी सरकार ने व्यवस्थित रूप से रेल सुरक्षा को खतरे में डाला है. उन्होंने एक महीने पहले हुए सियालदह-अगरतला कंचनजंगा एक्सप्रेस की दुर्घटना का जिक्र करते हुए मांग रखी कि पूरे भारत में सभी मार्गों पर कवच टक्कर रोधी प्रणाली शीघ्रता से स्थापित की जानी चाहिए ताकि सुरक्षा बेहतर हो सके और रेल दुर्घटनाओं को रोका जा सके.  

TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पर निशाना साधते हुए घटना को शर्मनाक बताया. महुआ ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर लिखा, 'जुमला सरकार के 10 साल बाद भारतीय रेलवे आपातकालीन कक्ष में है. भारत में सभी मार्गों पर तुरंत टकराव रोधी कवच ​​लगाया जाना चाहिए. इसकी कुल लागत मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के ₹1,08,000 करोड़ के आगे सिर्फ ₹63,000 करोड़ है.

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इससे पहले बीते साल जून में ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण हादसे में तीन ट्रेनों के बीच टक्कर हो गई थी. बालासोर हादसे में  290 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 1000 से अधिक लोग इस दुर्घटना में घायल हो गए थे. उस समय भी विपक्ष ने रेलवे की KAVACH तकनीक को लेकर है सवाल उठाया था. 

दरअसल भारतीय रेलवे ने इस घटना से कुछ महीने पहले ही  KAVACH सिस्टम का डेमो देश और दुनिया को दिखाया गया था. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिस KAVACH के जरिए रेलवे शून्य दुर्घटनाओं के लक्ष्य (जीरो एक्सीडेंट टारगेट) को हासिल करना चाहता है, वो आखिर क्या है और उससे भी बड़ी बात कि KAVACH आखिर है कहां? 

क्या है रेलवे का Kavach प्रोटेक्शन सिस्टम? 
कवच (KAVACH) एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है. इसे भारतीय रेलवे ने रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन (RDSO) के जरिए डेवलप किया है. कवच को लेकर रिसर्च और डेवलपमेंट का काम 2012 में शुरू किया गया था. हालांकि, उस समय इस प्रोजेक्ट का नाम TCAS- Train Collision Avoidance System था. कवच का पहला ट्रायल साल 2016 में किया गया था. 2022 में इसका लाइव डेमो भी दिखाया गया था.  

कहां तक पहुंचा है काम? 
कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे के बाद रेलवे की चेयरमैन जया वर्मा सिन्हा ने बताया था कि कुछ जगह ये सिस्टम बिछाया जा चुका है और कुछ जग इस सिस्टम को लगाने का काम लगातार चल रहा है. तब जया वर्मा सिन्हा ने कहा था कि कवच को लगाने का काम जल्द ही पूरे भारत में पूरा कर लिया जाएगा. 

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कवच सिस्टम को लेकर रेलवे के प्लान पर जया वर्मा सिन्हा ने तब कहा था कि कवच सिस्टम को मिशन मोड में आगे बढ़ाया जा रहा है. इस साल 3 हजार किलोमीटर ट्रैक पर कवच सिस्टम को बिछा दिए जाने की बात उन्होंने कही थी. साथ ही अगले साल भी और 3 हजार किलोमीटर को कवर किए जाने की बात भी कही गई थी. पूरे भारत में कवच सिस्टम को लगाने का काम चरणबद्ध तरीके से आगे बढाया जा रहा है. 

कैसे काम करता है कवच? 
ये सिस्टम कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का सेट है. इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिग्नल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है. ये सिस्टम दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट करता है. 

जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिव हो जाता है. इसके बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है. जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है. 
साथ ही सिस्टम लगातार ट्रेन की मूवमेंट को मॉनिटर करता है और इसके सिग्नल भेजता रहता है. आसान भाषा में कहें तो जैसे ही दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर आ जाती हैं तो इस टेक्नोलॉजी की वजह से एक निश्चित दूरी पर सिस्टम दोनों ही ट्रेनों को रोक देता है.

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सभी रूट्स पर नहीं है कवच
22 दिसंबर 2022 को रेल मंत्री ने राज्यसभा में एक प्रश्न का लिखित जवाब देते हुए बताया, 'कवच सिस्टम को फेज मैनर (चरणबद्ध) तरीके से इंस्टॉल किया जाएगा. कवच को साउथ सेंट्रल रेलवे के 1445 किलोमीटर रूट और 77 ट्रेनों में जोड़ा गया है. इसके साथ ही दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा कॉरिडोर पर भी इसे जोड़ने का काम चल रहा है.'

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