Advertisement

कभी मोदी ने हाथ पकड़कर बगल की कुर्सी पर बैठाया, अब दस साल बाद 'किंगमेकर' बने चंद्रबाबू नायडू

चंद्रबाबू ने फिलहाल साफ कर दिया है कि वो मोदी के साथ हैं. इस बात को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है कि मोदी के बगल में पांच साल बैठे रहने की गारंटी की वो क्या कीमत वसूलेंगे, कौन-कौन से मंत्रालयों पर अपना दावा ठोकेंगे. राजनैतिक दांव-पेंच के महारथी चंद्रबाबू नायडू भी कुछ मामलों में मोदी की तरह ही हैं. वो भी अपनी पार्टी पर बेहद मजबूत पकड़ रखने के लिए जाने जाते हैं.

पीएम मोदी और चंद्रबाबू नायडू का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है पीएम मोदी और चंद्रबाबू नायडू का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है
बालकृष्ण
  • नई दिल्ली,
  • 05 जून 2024,
  • अपडेटेड 7:53 PM IST

जब से लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं और ये बात साफ हो गई है कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई है और चंद्रबाबू नायडू-नीतीश कुमार के बिना नरेंद्र मोदी का पीएम बनना मुश्किल है, एक वीडियो को शेयर करके लोग खूब मजे ले रहे हैं. वीडियो में दिखता ये है कि एक चुनावी रैली के दौरान मंच पर नरेंद्र मोदी और चंद्रबाबू नायडू साथ में मौजूद हैं. चंद्रबाबू जैसे ही मोदी के पीछे वाली कुर्सी पर बैठने के लिए जाते हैं, मोदी उनका हाथ पकड़कर जबरदस्ती उन्हें अपने बगल वाली कुर्सी पर बैठा लेते हैं. 

Advertisement

ये उसी मजेदार वीडियो के पीछे की कहानी है. तारीख है 22 अप्रैल, 2014. जगह - महबूबनगर, तेलंगाना. बात उन दिनों की है जब 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने अपनी तरफ से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश कर दिया था और वो पहली बार पीएम बनने के लिए चुनावी संग्राम में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे थे. उस समय लोगों के मन में यूपीए की केंद्र सरकार को लेकर गुस्सा था और गुजरात से निकलकर मोदी राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर एक चमकते हुए सितारे की तरह उभरे थे. लेकिन तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख और अविभाजित आंध्र-प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके कद्दावर नेता चंद्रबाबू नायडू के सितारे उन दिनों गर्दिश में थे. वो सत्ता से बाहर थे, भ्रष्ट्राचार के आरोपों में जेल की हवा खा चुके थे और पार्टी के कार्यकर्ता हताश और निराश थे. 

Advertisement

दरअसल, आंध्र-प्रदेश के बंटवारे को लेकर पार्टी की रणनीति क्या हो, इसका समय रहते फैसला करने में चंद्रबाबू से चूक से गई थी. नतीजा ये हुआ कि 2014 में लोकसभा चुनाव के पहले जब आंध्र प्रदेश से काट कर तेलंगाना राज्य बनाने की घोषणा हो गई. चंद्रबाबू की पार्टी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना वाले इलाकों में हाशिये पर जाती हुई दिख रही थी. बंटवारे के बाद, इन दोनों राज्यों में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे थे जो कि लोकसभा चुनाव के साथ ही होने थे. ऐसे मुश्किल दिनों में जब बीजेपी की तरफ से साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऑफर आया तो चंद्रबाबू ने हवा का रुख भांपते हुए ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. 

इन राज्यों में कुछ खास मजबूत न होने के बावजूद बीजेपी ने टीडीपी से लोकसभा और विधानसभा की मनमाफिक सीटें ले ली थीं. सीटों के बंटवारे को लेकर आखिर तक खींचतान भी चली थी. वक्त की मार ऐसी थी कि चंद्रबाबू, बीजेपी को आगे की कुर्सी देकर खुद पीछे बैठने को मजबूर थे. चुनावी गठबंधन के बावजूद चंद्रबाबू को एनडीए की हर रैली में नहीं बुलाया जाता था, जहां असल स्टार मोदी होते थे. मगर आखिरकार, चुनाव प्रचार के दौरान जब 22 अप्रैल को तेलंगाना के महबूबनगर में दोनों नेता एक साथ मंच पर आए, तो चंद्रबाबू ने मोदी की मौजूदगी में कुर्सियों की पिछली लाइन में ही बैठना चाहा. लेकिन मोदी ने उन्हें बांह पकड़ कर खींच लिया और अपने बगल में बिठा लिया. 

Advertisement

मोदी को अंदाजा था कि अगर कार्यकर्ताओं में ये संदेश गया कि चुनावी गठबंधन के बावजूद दोनों पार्टियों के बीच मतभेद है तो ये मंहगा पड़ सकता है. चंद्रबाबू को खींचकर अपने बगल में बैठाना काम भी आया. मोदी प्रधानमंत्री बने और चंद्रबाबू आंध्र प्रदेश में विधानसभा का चुनाव जीतकर एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पा गए. 

तब किसने सोचा होगा कि दस साल पुराना ये वीडियो आज की राजनैतिक परिस्थिति पर इस कदर सटीक बैठैगा. किसने सोचा होगा कि 1996 में यूनाइटेड फ्रंट के लिए ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभा चुके चंद्रबाबू नायडू, 2024 में मोदी सरकार की तीसरी पारी में नीतीश कुमार के साथ एक बार फिर किंगमेकर बनकर उभरेंगे. किसने सोचा होगा कि चंद्रबाबू को हाथ खींच कर बगल में बिठाना, मोदी की इच्छा नहीं, मजबूरी बन जाएगी. आंध्र प्रदेश में बेहद शानदार जीत हासिल करने के बाद नायडू की मुख्यमंत्री की कुर्सी तो पक्की है. उन्हें फिलहाल बीजेपी की जरूरत नहीं है, पर बीजेपी को उनकी दरकार है. बीस सालों तक राष्ट्रीय राजनीति के मंच पर दूसरी लाइन की कुर्सी पर बैठने वाले चंद्रबाबू नायडू को पीछे बिठाने की हिम्मत अब दिल्ली में भी कोई नहीं कर पाएगा. लोकसभा की 16 सीटों के साथ उनकी पार्टी बीजेपी के सहयोगी दलों में सबसे आगे हैं. 

Advertisement

चंद्रबाबू ने फिलहाल साफ कर दिया है कि वो मोदी के साथ हैं. इस बात को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है कि मोदी के बगल में पांच साल बैठे रहने की गारंटी की वो क्या कीमत वसूलेंगे, कौन-कौन से मंत्रालयों पर अपना दावा ठोकेंगे. राजनैतिक दांव-पेंच के महारथी चंद्रबाबू नायडू भी कुछ मामलों में मोदी की तरह ही हैं. वो भी अपनी पार्टी पर बेहद मजबूत पकड़ रखने के लिए जाने जाते हैं. 1999 में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार को बाहर से समर्थन तो दिया था लेकिन 29 सांसद होने के बावजूद उन्होंने सरकार में हिस्सा नहीं लिया. वो नहीं चाहते थे कि मंत्री बनने के बाद अपने सांसदों पर उनकी पकड़ कमजोर हो. लेकिन वाजपेयी सरकार के दौरान जब भी वो दिल्ली आते, उनकी जेब में अपने राज्य के लिए एक भारी भरकम पैकेज की मांग का मसौदा जरूर मौजूद होता था. 

नायडू भी दूर की सोचते हैं और छोटे फायदे के चक्कर में नहीं पड़ते. 1996 से 1998 के बीच यूनाइटेड फ्रंट के संयोजक के तौर पर उन्होंने 13 पार्टियों का गठबंधन चलाने में सबसे महत्वपर्ण भूमिका तो निभाई, मगर प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और आई.के गुजराल को ही बनने दिया. वो खुद पीएम की रेस में नहीं कूदे क्योंकि उन्हें अंदाजा था कि ये सरकार पांच साल नहीं चलेगी. हुआ भी वही. मोदी के शासनकाल में बीजेपी के साथ 2014 में शुरू हुई टीडीपी की दोस्ती महज चार सालों तक चल पाई. 2018 में आंध्र-प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने से नाराज होकर टीडीपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया और उनके दोनों मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था. 

Advertisement

अब बीजेपी को तसल्ली सिर्फ इस बात की है कि लोकसभा चुनाव के साथ ही हुए आंध्र प्रदेश के चुनाव में 175 में से 135 सीटें जीतने के बाद चंद्रबाबू अमरावती में मुख्यमंत्री बनकर ही राज करना पसंद करेंगे. लेकिन अपने ससुर एन.टी रामाराव की पार्टी पर एक झटके में कब्जा जमा लेने वाले चंद्रबाबू नायडू कब क्या दांव चल सकते हैं, इसको लेकर बीजेपी हमेशा चिंता में ही रहेगी.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement