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किसानों के मसीहा, प्रधानमंत्री और अब भारत रत्न... जानें चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत

गांव-गरीब और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के मोदी सरकार के फैसले की राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी ने प्रशंसा की है.

किसान नेता और पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह.(फाइल फोटो) किसान नेता और पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह.(फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:05 PM IST

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों और गांव-गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया है. मोदी सरकार के इस फैसले के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश और समाजवादी नेताओं ने खुशी जाहिर की है. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के कई मायने निकाले जा रहे हैं. अब हम आपको इस मौके पर चौधरी चरण के के पश्चिमी यूपी से किसान नेता के रूप में शुरू हुए राजनीतिक से लेकर प्रधानमंत्री पद  पर आसीन हो और भारत रत्न मिलने तक के दिलचस्प सफर के बारे में बता रहे हैं.

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1979 में बने पीएम

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की राजनीति से लेकर देश के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री पद पर आसीन होकर इतिहास रच दिया. उन्होंने 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक भारत की बागडोर संभाली थी.

चौधरी चरण का जन्म 23 दिसंबर, 1902 को बाबूगढ़ छावनी के पास उस वक्त के नूरपुर तहसील हापुड़, गाजियाबाद के एक जाट परिवार में हुआ था. चौधरी चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद उनके पिता नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गए. यहीं के परिवेश में उनके मन में गांव-गरीब और किसानों के शोषण के खिलाफ संघर्ष का विचार पैदा हुआ. उन्होंने कॉलेज में पढ़ाई के दौरान किसानों के मुद्दों पर अपनी आवाज को मुखरता से उठाना शुरू कर दिया था.

चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत

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  • इसके बाद 1937 में वह पहली बार पश्चिमी यूपी की छपरौली विधानसभा से सदस्य चुने गए. इसके बाद उन्होंने 1946, 1952, 1962 और 1967 में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.
  • साल 1946 में चौधरी चरण सिंह पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने. इस दौरान उन्होंने राजस्व, चिकिस्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना सहित कई डिपार्टमेंट का काम संभाला.
  • इसके बाद उन्हें साल 1951 जून में राज्य में कैबिनेट मंत्री का कार्यभार के साथ-साथ न्याय और सूचना का भार दिया गया.
  • साल 1952 में उन्होंने सीएम संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल में वित्त और कृषि मंत्री का कार्यभार संभाला और यही से उन्होंने किसानों के हित में काम करना शुरू कर दिया.
  • साल 1959 में उन्होंने संपूर्णानंद सरकार में अपने मंत्री पदों से इस्तीफा दे दिया था. तब वह राजस्व और परिवहन विभाग संभाल रहे थे.
  • 1960 में उन्होंने चंद्रभानु गुप्ता सरकार में गृह और कृषि मंत्रालय का कार्यभार संभाला.  
  • 1962-63 में यूपी की मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी सरकार में कृषि और वन मंत्री भी रहे.
  • 1965 में उन्होंने कृषि विभाग छोड़ दिया और 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का कार्यभार संभाला.
  • उन्होंने 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 17 अप्रैल 1968 को पद से इस्तीफा दे दिया.
  • इसके बाद कांग्रेस के विभाजन के बाद फरवरी 1970 में कांग्रेस पार्टी के समर्थन से दूसरी बार यूपी के सीएम पद की शपथ ली, लेकिन 2 अक्टूबर 1970 से यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था.
  • 1974 में उन्होंने लोकदल का गठन किया, जिसमें भारतीय क्रांति दल, स्वतंत्र पार्टी के कुछ सदस्य, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल जैसे कई दल शामिल थे. इस वक्त वे देश में आपातकाल लागू होने के चलते जेल में थे.
  • 1979 में वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की.
  • 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (U) के समर्थन से प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर देश की बागडोर संभाली.

दिया था अजगर का फॉर्मूला

चौधरी चरण सिंह ने अपने वक्त में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को धूल चटाने के लिए अजगर फॉर्मूला दिया था. इस फॉर्मूले का अर्थ जातियों से था. उन्होंने अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत के मिल जाने को अजगर का नाम दिया था. चौधरी चरण सिंह का ये फॉर्मूला पश्चिम यूपी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में सफल रहा था.

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क्या कहते हैं समीकरण

आपको बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 26 लोकसभा सीटों में से 19 पर जीत हासिल की थी, जबकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन को सात सीटें मिली थीं. इस बार बीजेपी उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रही है. 

क्या है जाटलैंड की ताकत?

वैसे तो जाट समुदाय की आबादी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान समेत कई राज्यों में प्रभावी है लेकिन खासकर यूपी के पश्चिमी जिलों में स्थिति बेहद मजबूत है. यूपी में जाट प्रभाव वाले जिले हैं- मेरठ, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, आगरा, बिजनौर, मुरादाबाद, सहारनपुर, बरेली और बदायूं. भले ही पूरे यूपी में जाट समुदाय की आबादी 4 से 6 फीसदी के बीच हो लेकिन जाटलैंड की इतनी चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि पश्चिमी यूपी के कुल वोटों में करीब 17 फीसदी हिस्सेदारी जाट समुदाय की है.

इस इलाके की 120 विधानसभा सीटों और 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोट बैंक असर रखता है और इनमें से 30 विधानसभा सीटों पर तो जाट वोटबैंक निर्णायक स्थिति में है. संसदीय चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव... जाट बिरादरी के वोट काफी हद तक सत्ता का रुख तय करते हैं. खेती के लिहाज से काफी उपजाऊ इस इलाके को किसान लैंड के साथ-साथ जाटलैंड भी कहा जाता है.

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