
चीन है कि अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. एक ओर तो सीमा पर शांति की बात करता है तो दूसरी ओर तनाव भी खुद ही बढ़ाता है.
याद होगा कि पिछले साल दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के पास चीनी घुसपैठ को भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया था. लेकिन इस घटना के बाद भी चीन बाज नहीं आया.
इंडिया टुडे को मिली सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि तवांग में हुई घटना के कुछ महीनों के भीतर ही चीन त्सोना डीजोंग के लैपुंग में क्लैश साइट के पास तैनात अपने कंबाइंड आर्म्स ब्रिगेड (सीएबी) को ल्होंत्से डीजोंग के रितांग में ट्रांसफर कर दिया था.
हालांकि, चीनी घुसपैठ का मुकाबला करने के लिए भारत ने लगभग आधा दर्जन छोटी पोस्ट का नेटवर्क तैयार कर रखा है. लेकिन चीन ने सीमा के पास बड़ी मात्रा में रोड नेटवर्क और नई पोस्ट के निर्माण में खर्च किया है. सीमा के पास चीनी सैनिकों की स्थायी या अर्ध-स्थायी तैनाती भारत के लिए थोड़ा टेंशन बढ़ा सकती है.
हाल ही में अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने भी अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया है कि एलएसी के पूर्वी सेक्टर में चीन ने तीन कंबाइंड आर्म्स ब्रिगेड की तैनाती की है.
दिसंबर 2022 में तवांग सेक्टर के पास हुई झड़प के बाद भारत और चीन, दोनों ही सरकारों ने अलग-अलग बयान जारी किए थे. इन बयानों में दोनों ने एक-दूसरे पर एलएसी का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था. और बाद में सैनिकों की वापसी की सूचना दी थी.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में इस घटना के बारे में बताया था कि इस झड़प में भारतीय सेना का कोई जवान हताहत नहीं हुआ था. वहीं, चीन ने तो इस किसी झड़प का जिक्र तक नहीं किया था.
हाल की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि गलवान झड़प से पहले की अवधि की तुलना में भारत-तिब्बत सीमा क्षेत्रों की पूर्वी सीमा पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) की तैनाती में बढ़ोतरी हुई.
मैकमोहन रेखा से 30 मील से भी कम और तवांग से लगभग 100 किमी दूर ल्होंत्से डीजोंग में नए ड्युअल-यूज वाले एयरपोर्ट के निर्माण ने क्षेत्र में यथास्थिति बदल दी है.
भारत-तिब्बत सीमा के ऑब्जर्वर नेचर देसाई ने बताया कि भारत की तुलना में चीन ने बुनियादी ढांचे, संचार और रसद के मामले में बढ़त हासिल करने के लिए तिब्बत-अरुणाचल के सीमाई क्षेत्रों पर अपनी सेना की तैनाती बढ़ा रहा है.
देसाई इन घटनाक्रमों को अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट करते रहे हैं. सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पीएलए ने तवांग सेक्टर के ठीक सामने त्सोना डीजोंग में अपने फील्ड कैंप के कुछ एलिमेंट्स को ल्होंत्से डीजोंग के रितांग में ट्रांसफर कर दिया है.
देसाई का मानना है कि असाफिला और त्सारी चू घाटी आने वाले समय में एलएसी के पूर्वी क्षेत्र में अगले फ्लैश प्वॉइंट हो सकते हैं.
मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन में डिपार्टमेंट ऑफ जियोपॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशन की असिस्टेंट प्रोफेसर अमृता जाश कहती हैं कि चीन अरुणाचल प्रदेश की ओर इस तरह की हरकत सिर्फ अपने दावों को सुरक्षित रखने के लिए करता है. अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है, जबकि चीन सिर्फ इस पर अपना दावा करता है. भारत के साथ लगने वाली सीमाओं पर चीन की ये रणनीति का मकसद सिर्फ अपनी भूमि सीमाओं को सुरक्षित करना है, क्योंकि मैकमोहन रेखा को नहीं मानता.
जाश कहती हैं कि भारत के साथ सीमा विवाद सुलझाने में चीन की रुचि भी नहीं है. उदाहरण के लिए, हाल के दिनों में चीन ने 'थ्री स्टेप रोडमैप' पर एक हस्ताक्षर करके भूटान के साथ सीमा वार्ता में तेजी लाई है. इसके अलावा 24 अक्टूबर को 'को-ऑपरेशन एग्रीमेंट' पर भी हस्ताक्षर किए हैं.
उनका कहना है कि चीन ने नेपाल के साथ वॉटरशेड प्रिंसिपल को अपनाया, म्यांमार के साथ मैकमोहन रेखा को माना और अब भूटान के साथ सीमा विवाद के लिए समझौता किया है, जबकि भारत के साथ सीमा पर किसी समाधान की बजाय सिर्फ टकराव ही किया है.
कोर कमांडर स्तर की 20 दौर की बातचीत के बावजूद पूर्वी लद्दाख में लगातार गतिरोध का जिक्र करते हुए उन्होंने पूछा, चीन से ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या वो भारत के साथ सीमा विवाद का हल करना चाहता है या नहीं? हालांकि, इसका जवाब बहुत आशावादी नहीं होगा.
हालांकि, कुछ जानकार सीमा पर इन सारे घटनाक्रमों को शी जिनपिंग की नीति से भी जोड़कर देखते हैं, जो उनके बयानों और भाषणों में भी साफ झलकती है.
ऑर्गनाइजेशन फॉर रिसर्च ऑन चाइना एंड एशिया में सीनियर रिसर्च एसोसिएट ओमकार भोले बताते हैं, जिनपिंग बार-बार 'स्थानीय युद्ध' जीतने पर जोर देते हैं. सीमा पर जब भी टकराव होता है तो वो तुरंत पीएलए को 'युद्ध के लिए तैयार' रहने की बात कहते हैं.
उन्होंने कहा कि तवांग के पास के इन घटनाक्रमों को भारत की गतिविधि की प्रतिक्रिया के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे टू-फ्रंट वॉर की दुविधा से बचने के लिए चीन की लॉन्ग-टर्म स्ट्रैटजी के एक हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए.
भोले हाल ही में ली शोंगफु को रक्षा मंत्री के पद से हटाए जाने पर भी सवाल उठाते हैं. वो कहते हैं कि इस साल मार्च में ली को रक्षा मंत्री नियुक्त करना बताता है कि शी जिनपिंग कितनी तेजी से सैन्य आधुनिकिकरण चाहते हैं. पिछले एक साल में ली के अलावा पीएलए के कई अधिकारियों को हटाए जाने से सेना का मनोबल कमजोर हो सकता है. ये अभी नहीं दिखाई देगा, लेकिन लंबे समय में जिनपिंग की प्लानिंग में बाधा डाल सकता है.
वहीं, सीमा पर भारत का इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट अपनी गति से आगे बढ़ रहा है. अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के पास गांवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए 'वाइब्रेंट विलेज' स्कीम और बॉर्डर टूरिज्म जैसी पहल को चीन के विशेषज्ञ 'गैर-सैन्य उपाय' मानते हैं, लेकिन भारत की पकड़ को यहां मजबूत करने के लिए ये बहुत जरूरी हैं.
भोले का कहना है कि दलाई लामा की उत्तराधिकार प्रक्रिया के दौरान अरुणाचल प्रदेश का तवांग अहम क्षेत्र बन सकता है और भारत को अभी से इसकी तैयारी करने की जरूरत है.
इन सबके बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र तवांग का दौरा किया, जहां दशहरे के मौके पर उन्होंने सैनिकों के साथ शस्त्र पूजा की.
तवांग के अलावा राजनाथ सिंह ने असम के तेजपुर में स्थित 4-कोर हेडक्वार्टर का भी दौरा किया. यहां उन्हें एलएसी में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के अलावा आधुनिक सैन्य उपकरणों और प्रोद्योगिकी के उपयोग के बारे में जानकारी दी गई.