
भारत और चीन के बीच में पिछले दो सालों से तनातनी का दौर जारी है. गलवान वाली घटना के बाद से एक ऐसा माहौल बना है जहां पर तनाव कम होने के बजाय सिर्फ बढ़ता जा रहा है. अब उस तनाव के बीच भारतीय सेना ने एक नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. इस रणनीति के तहत सैनिकों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जा रही है और जवानों का 'पुनर्संतुलन' स्थापित करने पर भी जोर दिया जा रहा है.
एक सैन्य अधिकारी ने बताया है कि इस समय बॉर्डर एरिया में सड़क निर्माण, ब्रिज बनाने पर ज्यादा फोकस दिया जा रहा है. इसके अलावा आरएएलपी क्षेत्र (शेष अरुणाचल प्रदेश) में सैनिकों को तुरंत लामबंद करने के लिए भी जरूरी सैन्य ढांचे को विकसित किया जा रहा है. बड़ी बात ये है कि अब जिम्मेदारियां बांट दी गई हैं. एक तरफ थल सेना पूरी तरह उत्तरी सीमा पर तैनात होकर चीन का मुकाबला करेगी तो वहीं असम राइफल्स उग्रवाद विरोधी सभी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाएगी. अभी तक इन अभियानों में थल सेना ही ज्यादा एक्टिव दिखाई देती थी.
2 माउंटेन डिवीजन के जनरल-ऑफिसर-कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल एमएस बैंस बताते हैं कि अब तय समय में सभी विकास परियोजनाओं को पूरा करने की कोशिश है. ऊपरी दिबांग घाटी में तो सड़क निर्माण के साथ-साथ हेलीपैड और दूसरे बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं. इसके अलावा 4जी दूरसंचार नेटवर्क के विस्तार के लिए एक अलग रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया गया है.
अब ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि चीन ने LAC के पास में अपने कई मोबाइल टावर लगा दिए हैं. इस वजह से कई बार भारत में फोनों पर चीनी नेटवर्क आ जाता है. इससे बचने के लिए ही 4जी दूरसंचार नेटवर्क के विस्तार पर विचार किया जा रहा है. इसके अलावा पंचवर्षीय योजना (2021-2025) के तहत दीर्घावधिक दृष्टिकोण के साथ क्षमताओं को विकसित करने भी ध्यान केंद्रित है. जानकारी तो ये भी सामने आ रही है कि अब चीन से निपटने के लिए सेना की कई इकाइंया सिर्फ एलएसी पर सक्रिय होने वाली हैं, वहीं 73 माउंटेन ब्रिगेड को राज्य के चार जिलों में उग्रवाद रोधी अभियानों से निपटने के लिए रखा जाएगा.