
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में गुरुवार को चीन के खिलाफ लाया गया एक प्रस्ताव गिर गया. चीन के उइगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार को लेकर पश्चिमी देशों ने एक प्रस्ताव तैयार किया था. लेकिन कल उस प्रस्ताव को UNHRC में पर्याप्त वोट नहीं मिले और उसे खारिज करना पड़ गया. बड़ी बात ये रही कि भारत ने तो वोटिंग प्रक्रिया में ही हिस्सा नहीं लिया. उसके साथ कुछ दूसरे देशों ने भी वोटिंग से दूरी बना ली.
भारत ने चीन के खिलाफ वोट क्यों नहीं किया?
अब विदेश मंत्रालय ने एक जारी बयान में साफ कर दिया है कि भारत कभी भी 'Country-Specific Resolutions' में विश्वास नहीं जताता है. कहा गया है कि भारत हमेशा से ही मानवाधिकारों का सम्मान करता है. वहीं भारत का UNHRC में इस मुद्दे पर वोट ना देना उसकी पुराने स्टैंड के अनुरूप है जहां स्पष्ट कहा गया है कि 'Country-Specific Resolutions' कभी भी मददगार साबित नहीं होते हैं. ऐसे में मामलों में भारत का यही स्टैंड है कि बातचीत के जरिए समाधान निकाला जाए.
बयान में भारत ने ये भी साफ कर दिया है कि उसे उइगर मुस्लिमों की स्थिति के बारे में पूरी जानकारी है. वो उनके अधिकारों का सम्मान भी करता है. उम्मीद जताई गई है कि उपयुक्त पार्टी इस मसले को सुलझा लेगी.
कौन लाया था चीन के खिलाफ प्रस्ताव?
जानकारी के लिए बता दें कि कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड आइसलैंड, स्वीडन, यूके और अमेरिका जैसे देश चीन के खिलाफ एक प्रस्ताव लेकर आए थे. इस प्रस्ताव को तुर्की जैसे देशों ने भी अपना समर्थन दे दिया था. मुद्दा ये था कि चीन के Xinjiang क्षेत्र में उइगर मुसलमानों के साथ अत्याचार हो रहा है. लेकिन वोटिंग वाले दिन चीन, पाकिस्तान नेपाल जैसे कई दूसरे देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला, वहीं भारत, ब्राजील, मेक्सिको, यूक्रेन और आठ अन्य देशों ने वोटिंग से ही दूर बना ली.
भारत किसी के दबाव नहीं आया
लेकिन जरूरी बात ये है कि भारत ने किसी के दबाव में या डर की वजह से वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया है, बल्कि हमेशा से ही भारत की ये रणनीति रही है. बात जब भी किसी देश के आंतरिक मसले की होती है, 'Country-Specific Resolutions' लाए जाते हैं, भारत हमेशा बातचीत के जरिए समाधान पर ही जोर देता है. चीन वाले मामले में भी उसका यही रुख देखने को मिला है.