
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले देश में संशोधित नागरिकता कानून लागू कर दिया गया है. इसके साथ ही तीन मुस्लिम बहुल पड़ोसी मुल्कों से हिंदुस्तान आए 'प्रताड़ित' गैर-मुस्लिम आसानी से नागिरकता हासिल कर सकते हैं. कहा जाता है कि नागरिकता कानून को ही लेकर 2019 में विरोध-प्रदर्शन हुए थे, जहां मुस्लिम समुदाय को कथित रूप से अपनी नागरिकता छिन जाने का डर था.
आइए समझते हैं कि CAA के लागू होने पर क्या सच में मुसलमानों की नागरिकता छिन जाएगी? असम में सीएए नोटिफिकेशन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन की सुगबुगाहट जरूर है, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन कानून के नोटिफिकेशन (नागरिकता संशोधन नियम-2024) जारी किया है.
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क्या CAA के लागू होने से चली जाएगी नागरिकता?
संशोधित कानून के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों को आसानी से नागरिकता दी जाएगी. केंद्र सरकार का मानना है कि पड़ोसी मुस्लिम मुल्कों में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को प्रताड़ित किया गया है, और इसलिए उन्हें नागरिकता देने के प्रावधान किए गए.
हालांकि, नागरिकता कानून के संशोधन में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है कि भारतीय मुस्लिम समुदाय के लोगों की नागरिकता छिन जाएगी. इस बारे में केंद्र सरकार ने भी स्पष्ट किया है कि सीएए से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी, बल्कि सिर्फ संबंधित देशों के गैर-मुस्लिम को नागरिकता दी जाएगी और किसी की भी नागरिकता नहीं छिनेगी.
नागरिकता के लिए बेसिक नियम
मसलन, कानून में प्रावधान किया गया है कि 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आने वाले संबंधित समुदाय के लोगों को ज्यादा कुछ दस्तावेज नहीं दिखाना होगा. जिन लोगों ने भी भारत में रहते हुए पांच साल की अवधि पूरी कर ली है, तो उन्हें नागरिकता मिल जाएगी. इन प्रवासियों को पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी अधिनियम से भी छूट दी गई है. उन्हें अब 11 साल का इंतजार नहीं करना होगा और पांच साल में ही वे भारतीय नागरिक बन जाएंगे.
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असम से शुरू हुआ था विरोध
नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर दिसंबर 2019 में संसद में एक विधेयक पेश किया गया था, जो भारी हंगामे के बीच दोनों सदनों से पारित हुए. इसके अगले दिन ही राष्ट्रपति रहे रामनाथ कोविंद ने अपनी मंजूरी दे दी. नागरिकता कानून में संशोधन के प्रस्ताव का असम के स्टूडेंट्स संगठनों ने विरोध किया था, क्योंकि संशोधन में बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देने के प्रवाधान थे, जिन्हें वे अवैध शरणार्थी मानते हैं.
एनआरसी-एनपीआर की बहस के बाद हुए जबरदस्त प्रदर्शन
यहां स्पष्ट करने वाली बात ये है कि तबतक मुस्लिम समुदाय की तरफ से कानून में संशोधन का विरोध-प्रदर्शन नहीं किए जा रहे थे. असम के लोग दशकों से राज्य में एनआरसी लागू करने की मांग कर रहे हैं, ताकि अवैध रूप से वहां रह रहे बांग्लादेशियों को देश से बाहर किया जा सके, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं. इसके बाद देश में एनआरसी-एनपीआर की लहर दौर पड़ी और फिर लोगों में कथित रूप से गलतफहमी पैदा हो गई.
सीएए का कम, मुसलमानों ने किया था एनआरसी का विरोध
कहा जाता है कि मुस्लिम समुदाय के लोग नागरिकता कानून के विरोध में कम लेकिन एनआरसी के विरोध में ज्यादा थे. आसान भाषा में समझें तो केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून के तहत गैर-मुस्लिम को तो नागरिकता देने के प्रावधान किए लेकिन मुस्लिम समुदाय को इससे बेदखल कर दिया.
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इस बीच केंद्र की तरफ से यह ऐलान किया गया कि देश में सिर्फ सीएए ही नहीं बल्कि एनपीआर और एनआरसी भी लागू किया जाएगा. मुस्लिम समुदाय के लोग इसके बाद देशभर में सड़क पर उतरे और कथित रूप से नागरिकता छिन जाने की अपनी आशंकाएं जाहिर की. दिल्ली का शाहीनबाग केंद्र बना और देशभर में हफ्तों प्रदर्शन हुए.