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मठ मंदिरों की संपदा के रखरखाव के अधिकार वाली 'जनहित' याचिका पर क्यों पड़ी CJI की फटकार?

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-14 समानता की बात करता है और अनुच्छेद-15 कानून के सामने भेदभाव को रोकता है. लिंग, जाति, धर्म और जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं हो सकता.

मठ मंदिरों की संपदा के रखरखाव के अधिकार वाली 'जनहित' याचिका पर पड़ी CJI की फटकार? मठ मंदिरों की संपदा के रखरखाव के अधिकार वाली 'जनहित' याचिका पर पड़ी CJI की फटकार?
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 18 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 4:44 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू जैन बौद्ध धार्मिक संस्थानों की संपत्ति के रख रखाव और प्रबंधन की जनहित याचिका पर याचिकाकर्ताओं में से एक वकील अश्विनी उपाध्याय को नसीहत दी. सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप अपनी इस जनहित याचिका की प्रेयर यानी गुहार तो देख लीजिए. प्रेयर ऐसी होनी चाहिए जिस पर हम विचार कर सकें. आपकी प्रेयर में ऐसा कोई तथ्य नहीं हैं. ये तो लोकप्रियता पाने और मीडिया में बने रहने के लिए ही है.

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आपकी अर्जी सुनवाई योग्य ही नहीं है. लिहाजा आप पहले अपनी याचिका वापस लीजिए वरना हम उसे खारिज कर रहे हैं. इसके बाद तो उपाध्याय ने अपनी अर्जी फौरन वापस ले ली. वो दूसरी अर्जी दाखिल करने की छूट चाह रहे थे लेकिन सीजेआई ने कहा कि वो अगर चाहें तो स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती जिनकी पैरवी सीनियर एडवोकेट सीएस विश्वनाथन की अर्जी में हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर सकते हैं. लेकिन ये याचिका उनको वापस लेनी होगी. इसके बाद उपाध्याय ने अर्जी वापस ले ली..

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि अश्विनी उपाध्याय अपनी जनहित याचिका की जानकारी सबसे पहले मीडिया को बताते हैं. जबकि कोर्ट पहले इनकी प्रार्थना देख ले. ये अपनी प्रेयर में जिन मुद्दों पर कोर्ट का आदेश चाहते हैं वो अधिकार तो पहले ही संविधान में लिखा हुआ है.

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सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-14 समानता की बात करता है और अनुच्छेद-15 कानून के सामने भेदभाव को रोकता है. लिंग, जाति, धर्म और जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं हो सकता. वही अनुच्छेद-25 धार्मिक स्वतंत्रता की बात करता है और अनुच्छेद-26 गारंटी देता है कि तमाम समुदाय के लोग अपने संस्थान का रखरखाव और मैनेजमेंट करेंगे. लेकिन राज्य के कानून के कारण हिंदू, सिख, जैन और बौध इस संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं.

इस अर्जी में गुहार लगाई गई है कि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के रखरखाव और मैनेजमेंट का वैसा ही अधिकार मिले जैसा कि मुस्लिम आदि को मिला हुआ है. साथ ही हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के लिए चल व अचल संपत्ति बनाने का भी अधिकार मिले. यह भी गुहार लगाई गई है कि अभी मंदिर आदि को कंट्रोल करने के लिए जो कानून है उसे खारिज किया जाए. साथ ही केंद्र व लॉ कमिशन को निर्देश दिया जाए कि वह कॉमन चार्टर फॉर रिलिजियस एंड चैरिटेबल इंस्टीट्यूट के लिए ड्राफ्ट तैयार करे और एक यूनिफॉर्म कानून बनाए.

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