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कहानी कोयले कीः देश में 319 अरब टन का कोल रिजर्व, फिर भी बिजली का संकट क्यों?

भारत में 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोयले का खनन करना शुरू किया था. इसके बाद से लगातार कोयले की मांग बढ़ती गई और उत्पादन बढ़ता चला गया. 1970 के बाद कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और कोयले के खनन का काम ज्यादातर काम सरकारी कंपनियों के पास चला गया.

भारत दुनिया का 5वां देश है जिसके पास सबसे बड़ा कोयला भंडार है. (फाइल फोटो-PTI) भारत दुनिया का 5वां देश है जिसके पास सबसे बड़ा कोयला भंडार है. (फाइल फोटो-PTI)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 02 मई 2022,
  • अपडेटेड 11:07 AM IST
  • भारत में 1774 से हो रहा है कोयले का खनन
  • राष्ट्रीयकरण के बाद सरकारी कंपनियां कर रहीं खनन
  • 2021-22 में 78 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ

आज से लगभग 30 करोड़ साल पहले धरती पर घने जंगल हुआ करते थे. बाढ़ और तेज बारिश की वजह से ये जंगल जमीन में दबते चले गए. जैसे-जैसे समय गुजरता चला गया, वैसे-वैसे ये जमीन के और अंदर धंसते चले गए. बाद में यही कोयला बना. चूंकि ये पेड़-पौधों के अवशेषों से मिलकर बना है, इसलिए इसे जीवाश्म ईंधन भी कहा जाता है.

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आज ये कोयला बहुत बड़ी जरूरत बन गया है. भारत के थर्मल पावर प्लांट में 75 फीसदी से ज्यादा बिजली कोयले से ही बनती है. भारत में जब ट्रेनें चलनी शुरू हुईं, तो ये भी कोयले से ही चला करती थीं. भारत में दुनिया का 6वां सबसे बड़ा कोयला भंडार है. कोयला मंत्रालय के मुताबिक, भारत में 319 अरब टन कोयले का भंडार है. कोयले का सबसे बड़ा भंडार अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया और चीन के बाद भारत के पास है. 

भारत में कोयले के खनन की कहानी करीब 250 साल पहले शुरू हुई. कोयला मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार नारायणकुड़ी इलाके में कोयले का खनन किया. नारायणकुड़ी पश्चिम बंगाल के रानीगंज में पड़ता है. लेकिन ये वो दौर था जब औद्योगिक क्रांति नहीं हुई थी और कोयले की मांग काफी कम थी. 

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1853 में ब्रिटेन ने भाप से चलने वाले रेल इंजन का विकास किया. इसने भारत में कोयले के उत्पादन और मांग को बढ़ा दिया. 20वीं सदी की शुरुआत तक भारत में हर साल 61 लाख टन कोयले का उत्पादन होने लगा. 1920 तक भारत में कोयले का उत्पादन सालाना 1.8 करोड़ टन तक पहुंच गया. 

आजादी के बाद भारत की मांग और जरूरत, दोनों बढ़ी, जिसने कोयले पर निर्भरता बढ़ा दी. 1970 के दशक में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, जिसके बाद ज्यादातर कोयले का उत्पादन सरकारी कंपनियां ही करने लगीं. भारत में लगभग 85 फीसदी कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है. 2021-22 में भारत में 77.76 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ था, जिसमें से 62.26 करोड़ टन से ज्यादा कोयले का उत्पादन कोल इंडिया ने किया था.

सबसे ज्यादा कोयले की खपत करने के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर है. भारत में 319 अरब टन कोयले का भंडार है, लेकिन इसके बावजूद कोयले का संकट गहरा गया है. कोयले संकट से बिजली कटौती की आशंका भी बढ़ गई है. भारत में सबसे बड़ा कोयले का भंडार झारखंड में है. यहां 83 अरब टन से ज्यादा कोयले का भंडार है. उसके बाद ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश है. 

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फिर भी कोयले का संकट क्यों?

सबसे ज्यादा कोयले का उत्पादन करने के मामले भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. दुनिया का 5वां सबसे बड़ा कोयले का भंडार भारत में है, लेकिन उसके बावजूद भारत में कोयले का संकट क्यों गहरा रहा है? इसकी वजह है डिमांड और सप्लाई का खेल.

पॉवर मिनिस्ट्री के मुताबिक, 29 अप्रैल को देश में बिजली की डिमांड ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. 28 अप्रैल को देश में बिजली की डिमांड 2.07 लाख मेगावॉट थी. लेकिन इतनी डिमांड होने के बावजूद कोयले की सप्लाई नहीं हो पा रही है. यही वजह है कि रेलवे ने 650 से ज्यादा पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर दिया है, ताकि पॉवर प्लांट तक जल्द से जल्द कोयला पहुंचाया जा सके. 

कोयले से बिजली पैदा करने वाले थर्मल पॉवर प्लांट में कम से कम 26 दिन का कोल स्टॉक होना चाहिए, लेकिन देश के कई सारे ऐसे प्लांट हैं जहां 10 दिन से भी कम का कोयला बचा है. कुछ प्लांट तो ऐसे हैं जहां एक या दो दिन का कोयला ही है. 

भारत में हर दिन 4 लाख मेगावाट यानी 400 गीगावॉट से ज्यादा बिजली पैदा करने की क्षमता है. इसमें से आधी से ज्यादा बिजली कोयले से ही पैदा होती है. इसमें से भी ज्यादातर बिजली घरेलू कोयले से बनती है.

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सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अभी देश में 165 पावर प्लांट में से 100 में 25 फीसदी से भी कम कोयले का स्टॉक बचा है. इसी साल फरवरी में कोयला मंत्री आरके सिंह ने लोकसभा में बताया था कि 2024-25 तक कोयले का उत्पादन बढ़ाकर सालाना 1 अरब टन से भी ज्यादा बढ़ाने का टारगेट रखा गया है. 

 

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