
कांग्रेस ने मंगलवार को सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर फिर से आरोप लगाते हुए सवाल पूछा कि आईसीआईसीआई समूह में उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें मिलने वाले रिटायरमेंट बेनिफिट उनके सैलरी से अधिक कैसे हो सकते हैं. दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, "रिटायरमेंट बेनिफिट आईसीआईसीआई में उनके कार्यकाल के दौरान मिलने वाले सैलरी से अधिक कैसे हो सकते हैं? आईसीआईसीआई में उनका औसत वार्षिक सैलरी 1.30 करोड़ रुपये था. हालांकि, उनकी औसत पेंशन और अन्य रिटायरमेंट बेनिफिट 2.77 करोड़ रुपये. यह कैसे संभव है?"
पवन खेड़ा ने यह भी दावा किया कि 2015-16 में बुच द्वारा लिए गए रिटायरमेंट बेनिफिटों में रुकावट आई थी, लेकिन 2016-17 में ये फिर से शुरू हो गई जब वह सेबी में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल हुईं. खेड़ा ने कहा, "हमने कल के खुलासे में नरेंद्र मोदी, माधबी पुरी बुच और ICICI बैंक से सवाल पूछे थे. अब इस शतरंज के खेल के एक मोहरे यानी ICICI बैंक का खुलासे पर जवाब आया है. जब माधबी पुरी बुच ICICI से रिटायर हुईं तो 2013-14 में उन्हें 71.90 लाख रुपए की ग्रेच्युटी मिली. 2014-15 में उन्हें 5.36 करोड़ रुपए रिटायरमेंट कम्यूटेड पेंशन मिली. लेकिन अगर 2014-15 में माधबी पुरी बुच और ICICI के बीच सेटलमेंट हो गया था और 2015-16 में उन्हें ICICI से कुछ नहीं मिला तो फिर 2016-17 में पेंशन फिर से क्यों शुरू हो गई?"
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, "अब अगर साल 2007-2008 से 2013-14 तक की माधबी पुरी बुच की औसत सैलरी निकाली जाए, जब वो ICICI में थीं, तो वो करीब 1.30 करोड़ रुपए थी। लेकिन माधबी पुरी बुच की पेंशन का औसत 2.77 करोड़ रुपए है. ऐसी कौन सी नौकरी है, जिसमें पेंशन. सैलरी से ज्यादा है. उम्मीद है कि माधबी पुरी बुच जवाब देंगी कि 2016-17 में तथाकथित पेंशन फिर से क्यों शुरू हो गई थी? ध्यान रहे कि 2016-17 में माधबी पुरी बुच की 2.77 करोड़ रुपए की पेंशन तब फिर से शुरू हुई, जब वो SEBI में Whole time member बन चुकी थीं."
बता दें कि सोमवार को कांग्रेस ने माधबी पुरी बुच पर हितों के टकराव का आरोप लगाया था. उनका आरोप था कि वह सेबी की पूर्णकालिक सदस्य होने के बावजूद आईसीआईसीआई बैंक से नियमित आय प्राप्त कर रही थीं.
माधबी बुच 5 अप्रैल, 2017 से 4 अक्टूबर, 2021 तक सेबी की पूर्णकालिक सदस्य थीं, इससे पहले कि वह मार्च 2022 सेबी अध्यक्ष की भूमिका संभालें. बुच, जिन्होंने 1989 में आईसीआईसीआई बैंक के साथ अपना करियर शुरू किया, फरवरी 2009 से मई 2011 तक आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के सीईओ के रूप में कार्यरत थीं.
ICICI बैंक ने क्या कहा था?
आईसीआईसीआई बैंक ने उसी दिन एक बयान जारी कर कांग्रेस के आरोपों का खंडन किया. आईसीआईसीआई बैंक ने कहा है कि ICICI Bank या इसकी अन्य ईकाई ने माधबी पुरी बुच को उनके रिटायरमेंट के बाद सिर्फ रिटायरमेंट बेनिफिट दिए हैं, इसके अलावा कोई सैलरी या कोई ईएसओपी नहीं दिया है. बैंक के स्टेटमेंट में कहा गया कि यह ध्यान देने वाली बात है कि SEBI चीफ ने बैंक से 31 अक्टूबर, 2013 से रिटायरमेंट ऑप्शन चुना था. ग्रुप के साथ अपने रोजगार के दौरान उन्हें बैंक की तय की गई नीतियों के अनुसार ही सैलरी, बोनस, ESOP और रिटायरमेंट बेनिफिट्स मिला था, जबकि रिटायरमेंट के बाद कोई एक्स्ट्रा बेनिफिट नहीं दिया गया.
'हर कर्मचारी को बेनिफिट क्यों नहीं मिलता?'
इस पर पवन खेड़ा ने कहा, "आईसीआईसीआई का कहना है कि हमारे कर्मचारियों और रिटायर कर्मचारियों के पास अपने ईएसओपी का प्रयोग करने का विकल्प है. आईसीआईसीआई ने एक अमेरिकी वेबसाइट पर लिखा है कि अगर कोई आईसीआईसीआई बैंक से इस्तीफा देता है, तो इस्तीफे के तीन महीने के भीतर ईएसओपी का प्रयोग किया जा सकता है. लेकिन माधबी बुच जी इस्तीफा देने के 8 साल बाद भी ईएसओपी चला रही हैं. हर आईसीआईसीआई कर्मचारी को इस तरह का बेनिफिट क्यों नहीं मिलता? आईसीआईसीआई ने माधबी पुरी बुच की ओर से ईएसओपी पर टीडीएस का भुगतान क्यों किया."
उन्होंने कहा, "अब सवाल यह है कि क्या ऐसी नीति आईसीआईसीआई के सभी अधिकारियों/ कर्मचारियों पर लागू होती है? लेकिन अगर आईसीआईसीआई माधबी पुरी बुच की ओर से ईएसओपी पर टीडीएस का भुगतान करता है, तो क्या इसे माधबी पुरी बुच की आय में नहीं गिना जाना चाहिए? अगर यह आय में है, तो कर का भुगतान किया जाना चाहिए, तो आईसीआईसीआई ने इस टीडीएस राशि को कर योग्य आय में क्यों नहीं दिखाया? यह आयकर अधिनियम का उल्लंघन है."