
अपराधी बैकग्राउंड वाले सांसदों-विधायकों के चुनाव लड़ने पर बैन लगाने की मांग वाली याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सुनवाई करेगा. इससे पहले 10 फरवरी को हुई सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग (EC) से इस पर 3 हफ्ते में जवाब मांगा था. कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग तय वक्त में जवाब नहीं भी देते तो वे मामले को आगे बढ़ाएंगे. दोषी नेताओं के चुनाव लड़ने पर सिर्फ 6 साल का बैन लगाने का कोई औचित्य नहीं है.
कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराया जाता है, तो वह जिंदगी भर के लिए सर्विस से बाहर हो जाता है. फिर दोषी व्यक्ति संसद में कैसे लौट सकता है? कानून तोड़ने वाले कानून बनाने का काम कैसे कर सकते हैं?
केंद्र साफ कर चुका है अपना रुख
पिछले दिनों केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर अपना रुख साफ किया है कि अपराधी पृष्ठभूमि वाले या अपराध की सजा पाए लोग जीवन भर चुनाव लड़ सकेंगे या नहीं इस पर संसद निर्णय करेगी.
सरकार ने यह हलफनामा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 को धारा 8 और 9 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए गए नोटिस के जवाब में दाखिल किया था.
ये धाराएं किसी भी जनप्रतिनिधि को अपराध साबित होने और सुनाई गई सजा पूरी होने के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करती है. इसे ही चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने 10 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सरकार से हैरानी जताते हुए पूछा था कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया कोई व्यक्ति विधाई सदन में वापस कैसे जा सकता है? पीठ ने तब तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश सरकार को दिया था.
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225 सांसदों के खिलाफ दर्ज हैं आपराधिक मामले
इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने कोर्ट को बताया था कि लोकसभा के 544 सदस्यों में से 225 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. याचिका में संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 की आड़ लेने को भी चुनौती दी गई है.
ये अनुच्छेद किसी को भी चुनाव लड़ने या सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के नियम और शर्त बताते हैं. अपने जवाब में केंद्र सरकार ने कहा, "अनुच्छेद 102 और 191 संसद को सदस्य की अयोग्यता संबंधी कानून बनाने और संशोधन करने की शक्ति देते हैं. अदालत सरकार को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती. जबकि याचिका में ऐसा निर्देश देने की मांग है. ये अधिकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान प्रदत्त शक्तियों से परे है."
धारा 8 और 9 क्या कहती है?
केंद्र ने बताया कि धारा 8 के मुताबिक, किसी विशेष अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को जेल की अवधि पूरी होने के बाद छह साल तक अयोग्य घोषित किया जाता है. इसी तरह धारा 9 में यह प्रावधान है कि भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के कारण बर्खास्त किए गए लोक सेवकों को बर्खास्त करने की तारीख से पांच साल तक पात्रता से वंचित रखा जाएगा.
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हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह की अयोग्यता को आजीवन प्रतिबंध तक बढ़ाया जाना चाहिए. अयोग्यता की अवधि संसद द्वारा प्रोपोर्शनल और रीजनेबलनेस के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है.
इसमें कहा गया है, "संसदीय नीति के तहत आरोपित धाराओं के तहत की गई अयोग्यताएं समय तक सीमित हैं और इस मुद्दे पर याचिकाकर्ता की समझ को प्रतिस्थापित करना तथा आजीवन प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा."
केंद्र ने कहा कि विवादित प्रावधान संवैधानिक रूप से मजबूत हैं और उनमें अतिरिक्त प्रतिनिधिमंडल के दोष से ग्रस्त नहीं हैं और वह संसद के विधायी प्राधिकार के अंदर आते हैं.