
कोरोना वायरस ने दुनिया में कोहराम मचाया हुआ है. लाखों लोगों की जान गई है और करोड़ों लोग इससे संक्रमित हुए हैं. अब लैंसेट ने अपनी स्टडी के जरिए एक ऐसा दावा कर दिया है जो चिंता को और ज्यादा बढ़ा सकता है.
उनकी स्टडी में 50 प्रतिशत कोरोना मरीजों में कोई ना कोई हेल्थ कॉम्लिकेशन पाया गया है. वहीं जो मरीज लंबे समय बाद कोरोना से ठीक हुए हैं, लेकिन उनमें वायरस के लक्षण मौजूद हैं, उन्हें भी अलग-अलग तकलीफों का सामना करना पड़ा है.
लैंसेट की रिपोर्ट में कोरोना के लेकर बड़ा दावा
लैंसेट की तरफ से यूके में 73,197 लोगों पर एक स्टडी की गई थी. उस स्टडी में पाया गया कि जो मरीज कोरोना की वजह से अस्पताल में एडमिट हुए थे, उनमें से 49.7% लोग ऐसे रहे जिन्हें कोई ना कोई हेल्थ कॉम्लिकेशन थी. वहीं हेल्थ कॉम्लिकेशन भी सिर्फ मृत्यु दर तक सीमित नहीं दिखी, बल्कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी कई लोगों में अलग-अलग लक्षण देखे गए. लैंसेट की माने कोरोना के बाद कुछ लोगों की खुद की देखभाल करने की क्षमता प्रभावित हो जाती है. वे जैसे पहले खुद की सेहत का ध्यान रख पाते थे, वैसा बाद में नहीं रख पाते हैं.
लॉन्ग कोविड का कितना असर?
वहीं रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया कि कोरोना का युवाओं पर भी गहरा असर पड़ा है. 19 से 29 साल के बीच 27 % लोग ऐसे रहे जिन्होंने कोरोना को तो मात दी, लेकिन उसके बाद भी लंबे समय तक बीमार रहे. उनमें 'लॉन्ग कोविड' के लक्षण देखे गए. इस वजह से उनके शरीद के किसी ना किसी अंग पर इसका असर देखने को मिला.
रिपोर्ट के मुताबिक लोगों में गुर्दे, श्वसन संबंधी हेल्थ कॉम्लिकेशन ज्यादा देखे गए. कुछ हेल्थ कॉम्लिकेशन ऐसी रहीं जिसका सीधा असर लोगों के अंगों पर पड़ा. स्टडी की माने तो सबसे ज्यादा असर किडनी और लिवर पर पड़ा है. ऐसे लोगों में कार्डियक एरिद्मिया की बीमारी आम पाई गई है.
लैंसेट की रिपोर्ट में चेतावनी
स्टडी में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि कोरोना की वजह से कई हेल्थ कॉम्लिकेशन ऐसी भी हो सकती हैं जिनका शरीर पर लंबे समय तक असर रहे. कई दूसरी तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है. लैंसेट ने चेतावनी दी है कि पॉलिसी मेकर्स को एक लंबे संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि अब सिर्फ खतरा कोरोना का नहीं है बल्कि उसके बाद होने जा रही हेल्थ कॉम्लिकेशन पर भी ध्यान देना जरूरी है.
किन युवाओं को कोरोना का ज्यादा खतरा?
लैंसेट ने अपनी स्टडी में ये भी बताया कि उन युवाओं में मौत का खतरा ज्यादा रहा जिन्हें कोरोना के साथ दूसरी हेल्थ कॉम्लिकेशन रहीं. वहीं उम्रदराज लोगों में कॉम्लिकेशन के बाद भी मौत का खतरा कम दिखा. अभी के लिए ये रिपोर्ट चिंता बढ़ा सकती है, लेकिन लैंसेट मानता है कि कोरोना पर अभी और ज्यादा अध्ययन की जरूरत है, तभी ये साफ हो पाएगा कि इस महामारी का लंबे समय में लोगों पर क्या और कितना प्रभाव रहेगा.