
4 सितंबर 2023 को एक वीडियो सोशल मीडिया पर जिसने देखा उसका दिल दहल गया. एंबुलेंस में एक बच्चे ने अपने पिता की गोद में तड़प-तड़पकर जान दे दी. लाचार पिता बेबस उसे देख रहा था और अपने बच्चे की जान नहीं बचा पाया. गाजियाबाद में 14 साल के शावेज को एक कुत्ते ने काट लिया था. घरवालों से डांट न पड़े, इसलिए बच्चे ने किसी को बताया नहीं और फिर शुरू हुई दिल दहलाने वाले अंत की शुरुआत. जब तक घरवालों को खबर हुई बहुत देर हो चुकी थी, रेबिज की वजह से बच्चे को हाइड्रोफोबिया हो गया. पिता ने एम्स से लेकर तमाम अस्पतालों के चक्कर काटे, लेकिन अपने बच्चे को नहीं बचा पाए.
इस घटना के बाद पुलिस में शिकायत की गई, हंगामा हुआ एक्शन की मांग की गई, लेकिन आज भी ऐसे मामलों में कमी नहीं आई है. आए दिन कुत्ते के काटने की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं, लेकिन हादसे कम नहीं होते. कुछ लोगों के पेट प्यार के चक्कर में दूसरे लोगों की जान पर बन आती है. हाईराइज इमारतों में अक्सर कुत्ते की वजह से हंगामे की खबरें हम सुनते हैं.
कुत्ते से प्यार शौक या सनक?
आजकल गौर सिटी 12th एवेन्यू का एक मामला सुर्खियों में है. कुछ दिन पहले एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. वीडियो में एक महिला अपने पालतू कुत्ते के साथ लिफ्ट में एंट्री कर रही थी, वहां मौजूद एक बच्चा डरने लगा. इसी बात पर महिला ने बच्चे के साथ मारपीट कर दी. जब घरवालों ने पुलिस को खबर दी, तो मामला दर्ज हुआ. गुरुवार को एक एनजीओ के कुछ सदस्य सोसायटी में घुसने की कोशिश कर रहे थे, जिसे लेकर सिक्योरिटी गार्ड्स और एनजीओ के सदस्यों के बीच नोकझोंक हो गई. हंगामा इतना बढ़ गया कि पुलिस को आना पड़ा और दोनों पक्षों को किसी तरह शांत कराया. पुलिस से पता चला कि एनजीओ की टीम कुत्तों की स्थिति का जायजा लेने आई थी. हालांकि, सोसायटी के सुरक्षा नियमों के कारण बाहरी लोगों को प्रवेश नहीं दिया गया, जिससे विवाद खड़ा हो गया. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर मामला शांत करवाया.
12th एवेन्यू की एओए प्रेसिडेंट शाशिमा शाही से Aajtak.in से बात की तो पता चला कि उस महिला के पेट प्यार के चक्कर में पहले भी कई लोगों के साथ हादसे हो चुके हैं. पिछले हफ्ते ही एक महिला पर हमला हुआ था, जिसमें उनको काफी चोट भी लगी थी. एओए की टीम लगातार महिला को समझाती रही है, लेकिन कोई खास फर्क नहीं पड़ा, उस दिन के हादसे के बाद सोसायटी के बच्चे इतने डरे हुए हैं कि वो पार्क में खेलने तक नहीं जा रहे हैं. शाशिमा कहती हैं कि हमने एडवाइजरी जारी कर रखी है कि अपने पेट को बिना चेन और मजल के न ले जाएं. हादसे के बाद हमने ये नियम बनाए हैं कि एक लिफ्ट से ही लोग अपने कुत्तों को लेकर जाएं. शाशिमा कहती हैं पेट लवर्स के खिलाफ एक्शन लेने का अधिकार हमारे हाथ में नहीं होता है, हमारे पास पुलिस के पास शिकायत करने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं होता है.
Aajtak.in ने गैलेक्सी नॉर्थ एवेन्यू के एओए सेक्रेटरी आलोक पांडेय से बात की तो उन्होंने बताया हर सोसायटी में दो तरह के लोग रहते हैं, एक जो पेट लवर होते हैं और दूसरे जो पेट से डरकर रहते हैं. हम लोग अपनी सोसायटी में सिक्योरिटी का पूरा ख्याल रखते हैं. कोशिश करते हैं एक साथ कई कुत्ते इक्ट्ठे ना हो, साथ ही लोग अक्सर स्ट्रीट डॉग को एक जगह पर खाना देते हैं, हम लोगों को बार -बार मना भी करते हैं, लेकिन दिक्कत है कि कोई सख्त कानून नहीं होने की वजह से हम ज्यादा कुछ कर नहीं पाते, बस लोगों से अपील ही कर सकते हैं.
कुत्ता रखने के क्या नियम?
कुत्ते पालने वालों में भी जागरूरता की भारी कमी है, जो दूसरे लोगों के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. हर नगर निगम की वेबसाइट पर पेट रजिस्ट्रेशन का ऑप्शन होता है. जो छोटा सा काम है लेकिन अक्सर लोग इसमें लापरवाही बरतते हैं. कुछ साल पहले लखनऊ में पिटबुल कुत्ते के काटने से 80 साल की महिला की मौत गुई तो यूपी सरकार ने कई दिशा- निर्देश भी जारी किए थे. कुत्तों के मालिकों को स्थानीय नगर निकायों में अपने पेट के व्यवहार को लेकर वचन पत्र देना होता है, जिसमें वो ये वचन देता है कि अगर कुत्ते ने सावर्जनिक तौर पर किसी को काटा तो जिम्मेदारी मालिक की होगी. लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है. कुत्ते के मालिकों को एक चिप लगाने का भी निर्देश है, जिसमें उसका रजिस्ट्रेशन नंबर और उसके मालिक का नंबर और पता लिखा होता है. अगर कुत्ता बिना चिप के पाया जाता है तो संबंधित नगर पालिका के कर्मचारी उसे जब्त कर सकते हैं. मालिक पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान हैं. वहीं आवारा कुत्तों को गोद लेने वालों को भी रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. आवारा कुत्तों का भी नसबंदी और टीकाकरण करने का नियम है.
पिछले साल ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने डॉग पॉलिसी लागू की थी, जिसमें कई दिशा निर्देश लागू किए गए थे. जिसमें पेट मालिकों की जिम्मेदारी तय की गई थी. पालतू कुत्ते को पब्लिक प्लेस पर नहीं छोड़ सकते हैं, पार्क में बच्चे नहीं बल्कि वयस्क कुत्ते को ले जाएं और पट्टा बंधा होना भी जरूरी है. पालतू कुत्ता अगर गंदगी करता है तो सफाई की जिम्मेदारी मालिक की होगी. सोसायटीज में पेट को ले जाने के लिए सर्विस लिफ्ट का इस्तेमाल करना होगा, लिफ्ट में ले जाते वक्त चेन या पट्टा लगना जरूरी होगा. अगर कुत्ता किसी को नुकसान पहुंचाता है तो उसके इलाज का खर्च उठाने की जिम्मेदारी भी पेट मालिक की होगी.
वैसे गाजियाबाद नगम निगम बोर्ड ने पिछले साल कुछ सख्त नियम लागू किए थे, जिसमें पेट डॉग के नसबंदी से लेकर एंटी रेबीज वैक्सीनेशन अनिवार्य है. रजिस्ट्रेशन फीस जो पहले 200 रुपये थी, उसे बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया गया. 200 वर्ग गज में दो कुत्ते और 400 वर्ग गज में 4 कुत्तों का पंजीकरण करने का नियम बनाया गया. पांच या उससे अधिक कुत्ते को आवासीय क्षेत्र में पालने की पाबंदी है. नगम निगम ने कुछ कुत्तों पर पाबंदी भी लगाई थी, जिसमें पिटबुल, रोटवीलर, डोगो जैसे ब्रीड शामिल हैं.
नगर निगम ने कुछ अटैकर ब्रीड कुत्तों को भी प्रतिबंधित किया, जिसमे पिटबुल, रोटवीलर, डोगो और अर्जेंटिनो जैसी ब्रीड शामिल है.
स्ट्रीट डॉग के वैक्सिनेशन की जिम्मेदारी नगम निगम की होती है, लेकिन अक्सर स्ट्रीट डॉग के वैक्सीनेशन को गंभीरता से नहीं लिया जाता है, जिसका खामियाजा कई लोगों को जान गंवाकर देना पड़ता है. एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में 8 लाख से ज्यादा स्ट्रीट डॉग्स हैं, जिसमें मुश्किल से 20 हजार का वैक्सिनेशन हुआ है.
कुत्ते का काटना कितना बड़ा खतरा?
पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ये नंबर चौंकाने वाले हैं. कभी सड़क के आवारा कुत्ते लोगों को अपना शिकार बनाते हैं तो कभी घरों में पाले जाने वाले कुत्ते, जिसे लोग अपने परिवार के सदस्य की तरह रखते हैं और यही कहते हैं कि ये काटता नहीं है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में कुत्तों के काटने के करीब 30.5 लाख मामले सामने आए थे, जिनमें 286 लोगों की मौत हो गई. राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 के दौरान कुत्ते के काटने के मामलों के लिए एंटी-रेबीज शॉट्स की संख्या 46.5 लाख थी. पूरी दुनिया में हर साल रेबिज के संक्रमण से जो मौतें होती हैं, उनमें 36 फीसदी हमारे देश में होती हैं.
वहीं 2019 से 2022 के बीच के आंकड़ों को देखें तो भारत में 1.6 करोड़ लोगों को कुत्ते ने काटा, इस दौरान हर साल करीब 15 हजार लोगों की जान गई. ये केस वो हैं जिनके रिपोर्ट दर्ज हुए. ऐसे और भी मामले होंगे जो रिपोर्ट नहीं हुए होंगे.
क्या कहते हैं साइकोलॉजिस्ट?
साइकोलॉजिस्ट प्राची जैन कहती हैं- लोगों के पास इमोशन को स्टेबल करने का तरीका ही नहीं है. लोग अपनों से दूर हो रहे हैं और पेट के करीब जा रहे हैं, उनको अपने घर के सदस्यों से ज्यादा कुत्ते अपने लगते हैं. जानवर कुछ जवाब तो देते नहीं है न ही वो कोई बहस करते हैं. आजकल लोगों को ऐसा कोई चाहिए जो उनकी सुने लेकिन बहस न करें, कुत्ते किसी का जवाब तो दे नहीं सकते. पेट को प्यार करने वालों में ज्यादातर ऐसे लोग होते हैं, जिनके खुद के जीवन में कुछ कमी होती है और वो कुत्ते में भी अपना सबकुछ ढूढते हैं.