
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों को जंतर- मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है. न्यायालय ने लद्दाख की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय हितों की रक्षा करने वाली संगठन एपेक्स बॉडी द्वारा अदालत में दायर की गई याचिका पर नोटिस जारी किया है.
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा ने नोटिस जारी किया. जिसका जबाव दिल्ली पुलिस को देना है. अदालत इस मामले पर अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को करेगी. दिल्ली पुलिस की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी तरह के प्रदर्शन या धरने की अभी तात्कालिक कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि इस मामले में अधिकारियों को जवाब देने के लिए समय दिया जा सकता है.
छठी अनुसूची की मांग
पिछले महीने 30 सितंबर को वांगचुक के साथ उनके साथियों को लोकल पुलिस ने दिल्ली की सीमा पर हिरासत में ले लिया था. वांगचुक लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल कराने की लगातार मांग कर रहे हैं. सोनम वांगचुक ने 170 लोगों के साथ एक महीने पहले लद्दाख से दिल्ली के लिए पदयात्रा शुरू की थी. एक्टिविस्ट वांगचुक ने इससे पहले भी मार्च में 21 दिनों का अनशन किया था, इस दौरान उनके सहयोगियों ने भी 18 मार्च को एक दिन का भूख हड़ताल रखा था.
क्या है छठी अनुसूची
बता दें कि छठी अनुसूची के तहत असम,मेघालय, त्रिपुरा और मिजोर में स्वायत्त ज़िला परिषदों को बनाया गया है. इस अनुसूची के जरिए, इनको स्वायत्त जिलों के रूप में प्रशासित किया जाता है. इस अनुसूचि का उद्देश्य आदिवासी समूहों के हितों की रक्षा करना है. स्वायत्त जिलों को स्थापित करने के पीछे तर्क ये दिया जाता है कि भूमि के साथ संबंध आदिवासी या जनजातीय की पहचान का आधार है. इसके जरिए उनकी संस्कृति के साथ पहचान की भी हिफाजत की जा सकती है.