
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE)-2009 के प्रविधान को चुनौती देते हुए मदरसों और वैदिक पाठशालाओं को कानून के दायरे में लाने की मांग के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि आरटीई अधिनियम की धारा एक (चार) और एक (पांच) मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों को शैक्षिक उत्कृष्टता से वंचित करती है.
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21-ए के तहत आरटीई एक्ट-2009 की संबंधित धाराओं को मनमाना और तर्कहीन घोषित करने का निर्देश देने की मांग की है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले की सुनवाई से इनकार करने और याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने की सलाह देने के बाद अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था, "हमारी राय है कि याचिकाकर्ता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर करके हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए.'' कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता इस रिट याचिका को वापस लेने और हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहता है. हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है.
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया है कि अनिवार्य शिक्षा, जिसके लिए प्रत्येक बच्चे को स्कूल जाने की आवश्यकता होती है, लेकिन वह एक पर्याप्त सामान्य पाठ्यक्रम प्रदान नहीं करता है. यह शिक्षा न होने से भी बदतर है. याचिका में यह भी कहा गया है कि बच्चों के अधिकारों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि सामाजिक-आर्थिक और धार्मिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर भेदभाव के बिना समान गुणवत्ता वाली शिक्षा तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें बच्चों के लिए समान पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम की जरूरत होती है.