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दिल्ली के मंगोलपुरी इलाक़े में एक 22 गज के मकान में रहने वाले परिवार के लिए नया साल दुनिया भर के ग़म लेकर आया. घर की इकलौती कमाऊ लड़की की दर्दनाक मौत हो गई. घटना दिल्ली के कंझावला इलाके में 31 दिसंबर की रात करीब 2 बजे की है. अंजलि नाम की एक युवती अपनी स्कूटी पर जा रही थी. तभी एक हाई स्पीड कार ने उसकी स्कूटी को टक्कर मार दी और अंजलि का पैर गाड़ी में जा फंसा. हादसे के वक़्त कार में सवार 5 युवक नशे में धुत्त थे और उन्हें इस बात की भनक तक नहीं लगी. वे गाड़ी को भगाते रहे और कई किलोमीटर तक कार के साथ अंजिल को सड़क पर घसीटते चले गए.
कंझावाला इलाके में पुलिस को एक कार के पीछे शव बंधे होने की सूचना मिली थी. जब पुलिस सूचना पाकर पहुंची, तो शव देखकर हैरान रह गई. उसके जिस्म पर कोई कपड़ा तक नहीं था. इसके बाद पुलिस ने थोड़ी दूर से लड़की की स्कूटी भी बरामद की. पुलिस के मुताबिक, उसकी मौके पर ही मौत हो गई और इस मामले में पांचों आरोपियों को हिट एंड रन के केस में गिरफ्तार कर लिया गया है. हालाँकि, मृतका के परिजन और इस घटना के चश्मदीद ने पुलिस पर सवाल खड़े किये हैं. कहा जा रहा है कि पुलिस अगर समय से एक्शन लेती तो शायद लड़की की जान बच सकती थी.
आम आदमी पार्टी के कुछ विधायकों ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से मुलाक़ात की और लापरवाह पुलिस वालों पर एक्शन लेने की मांग की. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मृतका के परिजनों को 10 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने और केस लड़ने के लिए सबसे अच्छा वकील नियुक्त किए जाने की बात कही है. वहीं दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी (लॉ एंड ऑर्डर) सागर प्रीत हुड्डा ने आज इस मसले पर डेढ़ मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कुछ नई जानकारी दी. लेकिन इस केस में अब तक क्या चीज़ें हैं जो साफ़ हैं और किन सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं? युवती की पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट में क्या सामने आया और पुलिस पर सवाल क्यों उठ रहे हैं, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.
किसी भी सरकार में शामिल कोई मंत्री अगर विवादित बयान देता है तो इसके लिए मंत्री ही पूरी तरह जिम्मेदार है, न कि सरकार. नेताओं के बयानबाजी की सीमा नहीं तय की जा सकती. ये आज सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने एक सुनवाई के दौरान कहा. कोर्ट ने कहा कि विवादित बयानों के लिए पहले ही कानून है, अब इन्हें नेताओ के केस में बदला नहीं जा सकता. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के लिए बोलने की आजादी पर गाइडलाइन बनाने की मांग की गई थी. 5 जजों की एक बेंच ने ये मामला सुना. कल नोटबंदी वाले मामले की तरह आज भी 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया. और आज भी जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बाकी जजों से अलग राय रखी. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ये सही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ज्यादा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. हालांकि, अगर कोई मंत्री अपमानजनक बयान देता है, तो ऐसे बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के क्या मायने हैं, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.
छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी बहुल ज़िला है, नारायणपुर. बस्तर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर. आए दिन यहां से छिटपुट नोक-झोंक की ख़बरें आती रहती हैं, मगर कल मामला ज़्यादा गंभीर हो गया. आदिवासी समाज के ईसाई और गैर-ईसाई समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गई, स्थानीय चर्च में तोड़फोड़ की गई. मामला शांत करने पहुंची पुलिस पर भी पथराव हुए जिसमें नारायणपुर के एसपी सदानंद कुमार घायल हो गए. अब हिंसा के ख़िलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. पीड़ित परिवारों का कहना है कि शिकायत के बावजूद पुलिस एक्टिव दिखाई नहीं दे रही है.
दरअसल, ये पूरा मामला धर्म परिवर्तन से जुड़ा हुआ है जिस पर हम आगे बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछ डेटा पर गौर करते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक नारायणपुर में करीब 77 फीसदी लोग ट्रायबल समाज से जुड़े हैं. एक संस्था है Centre for Study of Society and Secularism, उसके मुताबिक 9 से 18 दिसंबर के बीच नारायणपुर ज़िले के 18 गांवों में धर्म परिवर्तन को लेकर हिंसा हुई है जिसके बाद सैंकड़ों लोगों को गांव छोड़ना पड़ा. हालांकि हिंसा से पहले ही जिले के 40 गांव संवेदनशील बने हुए थे. बताया जा रहा है कि एड़का, बेनूर और नारायणपुर थाना क्षेत्र के इन गांवों से लोग घर छोड़कर चले गए हैं.
कुछ दिन पहले एड़का में भीड़ ने थाना प्रभारी पर हमला किया था. कल बवाल के बाद central armed force मौके पर पहुंची और स्थिति पर कंट्रोल किया गया. तो कल जो हिंसा हुई नारायणपुर में उसको हवा कैसे मिली, इसका पूरा बैकग्राउंड क्या था, अभी क्या स्थिति है और नारायणपुर में ईसाई और ग़ैरईसाई आदिवासियों के बीच झड़प का इतिहास क्या रहा है, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.
ख़ुद का घर और अपनी कार, ये हर इंसान की हसरत होती है. अगर आप भी नए साल में नई कार लेने का प्लान कर रहे हैं, तो आपको आज एक इंटरेस्टिंग बात बताते हैं, जो आपको सही कार चुनने में हेल्प करेगी. 2022 में ऑटोमोबाइल कंपनियों ने इंडिया में क़रीब 38 लाख कारें बेचीं जो कि 2021 के मुकाबले में 23 फ़ीसदी ज्यादा है. और इन 38 लाख कारों में 45 फीसदी कारें एसयूवी थीं. तो मोटा मोटी पिछले साल हर दूसरे ग्राहक ने एसयूवी खरीदी.
ऑटोमोबाइल कंपनियों का कहना है कि कोरोना के चलते डिमांड अटकी हुई थी, जिसकी कसर 2022 में निकली. क्योंकि इंडस्ट्रियल सेक्टर और सर्विस सेक्टर भी पूरी तरह खुल गए थे और इससे रोजगार और लोगों की आमदनी बढ़ी. इसके अलावा ऑटो इंडस्ट्री से आपके लिए एक और ज़रूरी बड़ी खबर है और वो ये कि अप्रैल 2023 से बाजार में 17 कारें बिकनी बंद हो जाएंगी. तो कौन सी कारें हैं जो तीन महीने बाद मार्केट से ग़ायब हो जाएंगी और इसके पीछे वजह क्या है, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में.