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दिल्ली सर्विस बिल पर लोकसभा में चर्चा LIVE: अमित शाह बोले- नेहरू, पटेल-अंबेडकर ने भी किया था दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का विरोध

दिल्ली सेवा विधेयक मंगलवार को संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश किया गया. इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 नाम दिया गया है. इस बिल पर लोकसभा में गुरुवार को चर्चा शुरू हो गई. इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का विरोध जवाहर लाल नेहरू, अंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी किया था. 

लोकसभा में दिल्ली सर्विस बिल पर पक्ष रखते गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में दिल्ली सर्विस बिल पर पक्ष रखते गृह मंत्री अमित शाह
पॉलोमी साहा/अशोक सिंघल/पंकज जैन
  • नई दिल्ली,
  • 03 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 5:29 PM IST

दिल्ली सेवा विधेयक मंगलवार को संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश किया गया. इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 नाम दिया गया है. इस बिल पर लोकसभा में गुरुवार को चर्चा शुरू हो गई. इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का विरोध जवाहर लाल नेहरू, अंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी किया था. 

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केंद्र को दिल्ली के संबंध में कानून बनाने का पूरा अधिकार- शाह

अमित शाह ने कहा, जब विधेयक पेश किया गया तो कुछ विरोध हुआ. विधायी क्षमता पर सवाल उठाया गया. कहा गया कि यह SC के फैसले के खिलाफ है. अमित शाह ने कहा कि मैं विपक्षी सांसदों से कहना चाहता हूं कि आपने वही पढ़ा है जो आपके अनुकूल हो. आपको निष्पक्षता से सारी बातें सदन के सामने रखनी चाहिए. केंद्र को दिल्ली के संबंध में कानून बनाने का पूरा अधिकार है. 

अमित शाह ने कहा, यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संदर्भित करता है जो कहता है कि संसद को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से संबंधित किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने का अधिकार है.

बीजेपी-कांग्रेस के बीच इस मुद्दे पर कभी झगड़ा नहीं हुआ- शाह

शाह ने कहा कि 1993 में से मुद्दा है. लेकिन कभी केंद्र और राज्य सरकार के बीच में परेशानी नहीं आई. सेंटर में कभी बीजेपी की सरकार रही, तो राज्य में कांग्रेस की रही. सेंटर में कभी कांग्रेस की रही तो दिल्ली में बीजेपी की रही. तब कभी झगड़ा नहीं हुआ. बीजेपी ने कांग्रेस के साथ झगड़ा नहीं किया. कांग्रेस ने बीजेपी के साथ कोई झगड़ा नहीं किया.  

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 शाह ने बंगले के मुद्दे पर केजरीवाल को घेरा

शाह ने कहा, लेकिन साल 2015 में दिल्ली में एक ऐसी पार्टी सत्ता में आई जिसका मकसद सिर्फ लड़ना था, सेवा करना नहीं. समस्या ट्रांसफर पोस्टिंग करने का अधिकार हासिल करना नहीं, बल्कि अपने बंगले बनाने जैसे भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए सतर्कता विभाग पर कब्जा करना है. 

अमित शाह ने कहा, मेरा सभी पक्ष से निवेदन है कि चुनाव जीतने के लिए किसी पक्ष का समर्थन या विरोध करना, ऐसी राजनीति नहीं करनी चाहिए. नया गठबंधन बनाने के अनेक प्रकार होते हैं. विधेयक और कानून देश की भलाई के लिए लाया जाता है इसलिए इसका विरोध और समर्थन दिल्ली की भलाई के लिए करना चाहिए. 

नरेंद्र मोदी ही बनेंगे पीएम

अमित शाह ने कहा, दिल्ली के भले ही के लिए बिल का समर्थन करना चाहिए. लेकिन राजनीति में स्वीकृति कम है. सबको मिलाना है. मंत्री कुछ भी करें, जितना भ्रष्टाचार करना है करें. मुख्यमंत्री करोड़ों के बंगले बनाएं. लेकिन समर्थन करेंगे. क्योंकि हमें गठबंधन बनाना है. इस तरह से नहीं सोचना चाहिए. मेरी अपील है विपक्ष के सदस्यों को दिल्ली के बारे में सोचना चाहिए. गठबंधन की मत सोचिए. गठबंधन से फायदा होने वाला नहीं है. गठबंधन होने के बावजूद भी पूर्ण बहुमत से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे. इतना ही नहीं शाह ने कहा, कांग्रेस को यह बता देना चाहता हूं कि यह बिल पास होने के बाद, वे (AAP) आपके साथ किसी गठबंधन में आने वाले नहीं हैं.

अधीर रंजन बोले- मन हुआ कि अमित शाह के मुंह में शहद और शक्कर डाल दूं

अधीर रंजन ने कहा कि कल ये मुद्दा सदन में आने वाला था. हम तैयार होकर बैठे थे. लेकिन पता नहीं सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ से सदन को ठप्प कराया गया. संसदीय परंपरा में ऐसा कभी नहीं देखा गया. कल गृह मंत्री नदारद थे. बात में पता चली कि अंदर की बात क्या है? अब पता चला कि गृह मंत्री कल पीएम मोदी के साथ घूमने गए थे और सदन को भगवान के भरोसे छोड़ गए. आज जब सदन में आए, तो अच्छा लग रहा था कि हमारे गृह मंत्री बार बार नेहरू और कांग्रेस की तारीफ कर रहे थे. मुझे ऐसा लग रहा था कि दौड़ कर जाऊं और उनके मुंह में शहद और शक्कर डाल दूं. 

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इस पर अमित शाह ने कहा कि मैंने तारीफ नहीं की, मैंने उनके बयान को कोट किया है. अगर आप तारीफ मान रहे हैं, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है. 

NDA के समर्थन में BJD,YSR-TDP, बसपा का यू टर्न

उधर, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दिल्ली सेवा बिल पर यू टर्न ले लिया है. पार्टी का कहना है कि वह लोकसभा और राज्यसभा में वोटिंग के दौरान बायकॉट करेगी. इससे पहले बसपा ने दिल्ली सेवा बिल पर केजरीवाल की पार्टी AAP को समर्थन देने की बात कही थी. उधर, ओडिशा की सत्ताधारी बीजेडी और टीडीपी ने इस बिल पर केंद्र सरकार का समर्थन करने का ऐलान किया है. इससे पहले वाईएसआर भी केंद्र को समर्थन देने की बात कह चुकी है. ऐसे में जानते हैं कि दोनों सदनों में अब नंबर गेम क्या होगा?

लोकसभा में क्या है हाल?

- लोकसभा में मोदी सरकार बहुमत में है. बीजेपी के पास 301 सांसद हैं. एनडीए के पास 333 सांसद हैं. वहीं पूरे विपक्ष के पास कुल 142 सांसद हैं. सबसे ज्यादा 50 सांसद कांग्रेस के हैं. ऐसे में लोकसभा में दिल्ली अध्यादेश पर बिल मोदी सरकार आसानी से पास करा लेगी. इसके अलावा बीजेडी (12), वाईएसआर (22) और टीडीपी (3) ने समर्थन का ऐलान किया है. तीनों पार्टियों के पास लोकसभा में 37 सांसद हैं. बसपा के 9 सांसद हैं और अगर पार्टी बायकॉट करती है, तो बहुमत के लिए और भी कम सांसदों की जरूरत पड़ेगी.

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- राज्यसभा का क्या है गणित?

- राज्यसभा में कुल सांसद 238 हैं. बीएसपी का राज्यसभा में 1 सांसद है. ऐसे में बसपा बायकॉट करती है, तो कुल सांसद 237 होंगे और बहुमत के लिए 119 सांसदों की जरूरत पड़ेगी. विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA पर 105 सांसद हैं. 

दिल्ली सर्विस बिल लोकसभा में पेश, BJD करेगी मोदी सरकार का समर्थन, राज्यसभा में गड़बड़ा सकता है AAP का गणित
 

- वहीं, बीजेपी के राज्यसभा में 92 सांसद हैं. इनमें 5 मनोनीत सांसद हैं. जबकि सहयोगी दलों को मिलाकर यह 103 हो जाते हैं. बीजेपी को दो निर्दलीय सांसदों का भी समर्थन है. इसके अलावा दिल्ली सेवा बिल पर वाईएसआर, बीजेडी और टीडीपी ने केंद्र का समर्थन करने का ऐलान किया. बीजेपी और वाईएसआर कांग्रेस के राज्यसभा में 9-9 सांसद हैं. जबकि टीडीपी का एक सांसद है. ऐसे में अब बीजेपी के पास 124 सांसदों का समर्थन होगा और राज्यसभा में भी बिल आसानी से पास हो जाएगा.

बिल पर केजरीवाल के विरोध में कौन कौन सी पार्टियां ?

पार्टी राज्यसभा में सीटें
बीजेपी 92
वाईएसआर 9
बीजेडी 9
AIADMK 4
आरपीआई 1
टीडीपी 1
असम गण परिषद 1
पट्टाली मक्कल काची 1
तमिल मनीला कांग्रेस 1
एनपीपी 1
एमएनएफ 1
यूपीपी(लिबरल) 1

 
बिल पर केजरीवाले के पक्ष में कौन कौन?
 

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पार्टी राज्यसभा में सीटें
कांग्रेस 31
टीएमसी 13
आप 10
डीएमके 10
सीपीआई एम 5
जेडीयू 5
शिवसेना (उद्धव गुट) 4
एनसीपी (शरद पवार) 3
जेएमएम 2
सीपीआई 2
आईयूएमएल केरल कांग्रेस 1
आरएलडी 1
एमडीएमके 1

 - एनसीपी के 4 राज्यसभा सांसद हैं. लेकिन प्रफुल्ल पटेल खुले तौर पर अजित गुट में शामिल हुए हैं. ऐसे में उनका वोट भी बीजेपी को मिलने की संभावना है. 

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद?

दरअसल, दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर लंबे समय से केंद्र और केजरीवाल सरकार में ठनी है. दिल्ली में विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू है. 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था. 

संशोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे. इसके मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था.
 
GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी. इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 

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- केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुनाया फैसला

- केजरीवाल की याचिका पर मई में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने माना दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुड़े सभी अधिकार चुनी हुई सरकार के पास होंगे. हालांकि, पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास ही रहेगा.

- कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ''अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा. उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी.''

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र लाया अध्यादेश

- केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए 19 मई को जो अध्यादेश लाया गया था. इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया. अब इस अध्यादेश को कानूनी रूप देने के लिए सदन में विधेयक पेश किया गया है. 

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