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ट्रांसफर-पोस्टिंग ही नहीं दिल्ली सरकार से बहुत कुछ छिनने वाला है?

ट्रांसफर-पोस्टिंग ही नहीं दिल्ली सरकार से और क्या छिनेगा, नूंह हिंसा पर पुलिस की नई थ्योरी, जातीय जनगणना पर बिहार हाईकोर्ट के फैसले का आधार क्या और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए में ट्रम्प के लिए अच्छी खबर. सुनिए ‘दिन भर’ में.

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रोहित त्रिपाठी
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  • 01 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 7:20 PM IST

साल 2014 से दिल्ली की आम आदमी पार्टी और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के बीच राजधानी पर नियंत्रण का जो संघर्ष शुरू हुआ था, वो अब एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच गया है. दोनों सरकारें चाहती हैं कि राजधानी में अधिकारियों और कर्मचारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार उनके पास रहे. सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों फैसला दिया कि ये हक़ दिल्ली सरकार के पास ही रहेगा. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी खुश ही हो रही थी कि केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर कोर्ट के फैसले को पलट दिया और अब संसद में अपने संख्याबल के इस्तेमाल से इसे क़ानूनी प्रोटेक्शन देने की ओर बढ़ रही है. आज केंद्र सरकार ने संसद में नेशनल कैपिटल टेरेटरी ऑफ दिल्ली अमेंडमेंट बिल पेश किया. इस बिल के कानून बनते ही दिल्ली सरकार को अपने कई अधिकार केंद्र सरकार से शेयर करने होंगे. अभी इस बिल को लोकसभा में पेश किया गया है और यहां से पास होने के बाद ये राज्यसभा जाएगा.  इस बिल के कानून बनते ही न सिर्फ अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार पर केंद्र सरकार का भी कुछ नियंत्रण होगा, बल्कि दिल्ली महिला आयोग और दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन जैसी संस्थाओं पर भी केंद्र का प्रभाव बढ़ जाएगा. आजतक रेडियो रिपोर्टर कुमार कुणाल इस ख़बर पर शुरू से नज़र रखे हुए हैं. आज इस बिल की  लोकसभा में पेशी पर कैसी तस्वीर थी गणित के लिहाज से, सुनिए ‘दिन भर’ में. 

हरियाणा के नूह में कल बृजमंडल शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा में पांच लोगों की मौत हो गई. इसके बाद नूह से सटे दूसरे इलाकों में भी हिंसा की घटनाएं देखने को मिलीं. गुरुग्राम के सेक्टर 56 में भीड़ ने अंडर कंस्ट्रक्शन मस्जिद में तोड़ फोड़ की और फिर वहाँ मौजूद मौलवी मोहम्मद साद को की हत्या कर दी. पुलिस के अनुसार पाँच लोग भीड़ की जद में आए थे, जिनमें से चार लोगों ने छिप कर अपनी जान बचाई. सोहना इलाके में भी भीड़ ने गाड़ियों पर पथराव किया. इस घटना के बाद तकरीबन अस्सी लोग अब तक हिरासत में लिए गए हैं. उधर नूंह में अब भी कर्फ्यू लगा हुआ है और इंटरनेट बैन है. हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सब कुछ नियंत्रण में होने का दावा किया है । हालांकि इस मुद्दे पर बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की लेटलतीफी पर सवाल उठ रहे हैं. अभी तक सरकार ने इस बात का जवाब नहीं दिया है कि हिंसा की आशंका अगर पहले से थी तो शोभायात्रा की परमिशन विदड्रॉ क्यों नहीं की गई? अगर शोभायात्रा इस माहौल में हो रही थी तो वहां पर्याप्त पुलिस बल मौजूद क्यों नहीं था? सुनिए ‘दिन भर’ में. 
दिल्ली की ही तरह बिहार में भी एक बड़े राजनीतिक मुद्दे पर एक फैसला आया. पटना हाईकोर्ट ने बिहार की जातियों के सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें बिहार में जातीय सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग की गई थी. बिहार सरकार और नीतीश कुमार के लिए ये बड़ी राहत की बात है क्योंकि उनका कहना है कि जातीय सर्वेक्षण का लगभग 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. इस मसले में क़ानूनी दलीलें क्या थीं, किस आधार पर रोक की मांग की जा रही थी, जिन्हें अदालत ने ख़ारिज़ कर दिया, सुनिए ‘दिन भर’ में. 
पिछले कुछ वक़्त से ऐसी खबरें आ रही थी कि अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी को डॉनल्ड ट्रंप की जगह एक नया चेहरा मिला है, वो है फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डिसैंटिस का. लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स का एक सर्वे जुदा तस्वीर बयान कर रहा है.  
इस अमेरिकी अखबार ने सिएना कॉलेज के साथ मिलकर रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों के बीच एक सर्वे करवाया. सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 54 पर्सेंट लोग अब भी डॉनल्ड ट्रंप के पक्ष में हैं जबकि रॉन डी सैंटिस को सिर्फ 17 परसेंट लोगों का समर्थन मिला है. बाकी दावेदारों को 2 या 3 पर्सेंट वोट मिले हैं. ट्रम्प के अलावा जितने भी कैंडीडेट्स हैं उनके वोट्स जोड़ भी दिए जाएं तो ट्रम्प कहीं आगे हैं.   
 न्यूयार्क टाइम्स ने एक रिपब्लिकन समर्थक का बयान छापा है जिसका कहना है कि We Like De Santis but Love Trump.  
अपने खिलाफ तमाम कानूनी मुकदमों में फंसे ट्रम्प और विवादित वजहों से चर्चा में रहने के बावजूद रिपब्लिकन समर्थकों के लिए क्यों अब भी पसंद किये जा रहे हैं, सुनिए ‘दिन भर’ में.

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