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अध्यादेश लाने के बाद अब SC पहुंची केंद्र सरकार, अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग मामले में दाखिल की पुनर्विचार याचिका

दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में अध्यादेश लाने के बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रूख करते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. सरकार ने संवैधानिक पीठ के 11 मई के फैसले पर फिर से विचार करने की गुहार लगाई है.

दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग: सुप्रीम कोर्ट पहुंची केंद्र सरकार दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग: सुप्रीम कोर्ट पहुंची केंद्र सरकार
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 20 मई 2023,
  • अपडेटेड 1:07 PM IST

दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग का विवाद इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है.  सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया जिसके बाद शुक्रवार को केंद्र सरकार इस फैसले के खिलाफ अध्यादेश ले आई. अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका भी दायर की है और संवैधानिक पीठ से अपने फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है.

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संवैधानिक पीठ ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था. दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल, यानी अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर को लेकर जारी अध्यादेश क्या नए संसद भवन में सदन के पटल पर रखा जाने वाया पहला अध्यादेश होगा? इसका जवाब कुछ दिनों में मिल जाएगा.

तो केंद्र ने इसे बनाया अध्यादेश का आधार

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने निर्णय के पैराग्राफ 95 में स्वयं कहा है कि दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर को लेकर सरकार कानून बना सकती है.  फिलहाल इस बाबत कोई स्थापित कानून नहीं है. लिहाजा कानून के अभाव में पीठ ने ये अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दिया. कानून के अभाव की पूर्ति के लिए उसी के आधार पर यह अध्यादेश केंद्र सरकार लेकर आई है.

अध्यादेश की अहम बातें

- केंद्र सरकार ने दिल्ली की 'विशेष स्थिति'का हवाला देते हुए अध्यादेश का बचाव किया है और कहा कि इस पर (दिल्ली) दोहरा नियंत्रण (केंद्र और राज्य) है.

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- अध्यादेश में कहा गया है, 'राष्ट्रीय राजधानी के संबंध में लिया गया कोई भी निर्णय न केवल दिल्ली के लोगों बल्कि पूरे देश को प्रभावित करता है.'

- अध्यादेश आगे कहा गया है कि स्थानीय और राष्ट्रीय, दोनों लोकतांत्रिक हितों के संतुलन के लिए दिल्ली के प्रशासन की योजना को संसदीय कानून (अदालत के फैसले के खिलाफ) के माध्यम से तैयार किया जाना चाहिए.

- अध्यादेश में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी संसदीय कानून के अभाव में निर्णय पारित किया और इसलिए यह अध्यादेश जारी किया जा रहा है.

कोर्ट ने सुनाया था ये फैसला

इससे पहले 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में अहम फैसला सुनाया था. CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने आगे कहा था,'एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते. एलजी की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती. अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए. 'उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी. पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा.'

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रविशंकर प्रसार बताई उत्तरदायी प्रक्रिया

इससे पहले आज ही पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि दिल्ली की अपनी विधानसभा है लेकिन वह राष्ट्रीय राजधानी है और उस भू-भाग पर पूरे देश का अधिकार है. उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रावधानों को सुनिश्चित करने के लिए एक अध्यादेश पारित किया गया है. रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'दिल्ली में काम करने वाले अफसरों से जुड़े निर्णय लेने के लिए एक पारदर्शी और उत्तरदायी प्रक्रिया हो... इसलिए यह आर्डिनेंस लाया गया है. केजरीवाल सरकार का जो रिकॉर्ड रहा है... हमारे पास खुद बहुत सारी शिकायतें आई हैं.  केजरीवाल सरकार जो कर रही थी उसे देखते हुए एक समर्पित प्रक्रिया लाई गई है और यह पूरी तरह से जनहित में है'

 

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