
मिजोरम में शराबबंदी के बावजूद अब स्थानीय स्तर पर बने वाइन और बीयर की बिक्री को अनुमति देने की तैयारी की जा रही है. ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट (ZPM) सरकार बुधवार को विधानसभा में एक विधेयक पेश करेगी, जिससे राज्य में फलों और चावल से बनी वाइन और बीयर के निर्माण और बिक्री को मंजूरी दी जा सके.
हालांकि, मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने साफ किया है कि उनकी सरकार मिजोरम लिकर (निषेध) अधिनियम, 2019 के तहत शराब की बिक्री और खपत पर लगी रोक नहीं हटाएगी.
क्या होगा नया बदलाव?
नए विधेयक के अनुसार, राज्य में उगाए गए फलों और चावल से बनी शराब को लाइसेंसधारकों को बेचने और बनाने की अनुमति दी जाएगी. इसके अलावा, परंपरागत मिजो देसी शराब, जो चावल से बनती है, उसे भी बेचने की मंजूरी दी जा सकती है.
मुख्यमंत्री ने बताया कि इस फैसले से पहले चर्चों से भी सलाह ली गई और उन्होंने इस पर सहमति जताई है. हालांकि, सरकार सख्त शराबबंदी को जारी रखेगी और हार्ड लिकर (मजबूत शराब) की बिक्री को मंजूरी नहीं देगी.
मिजोरम में शराबबंदी का इतिहास
मिजोरम में लंबे समय से शराबबंदी लागू रही है. 1984 में आंशिक रूप से शराब की बिक्री की अनुमति दी गई थी, लेकिन 1987 में इसे फिर से बंद कर दिया गया. 1997 में ‘मिजोरम लिकर टोटल प्रोहिबिशन एक्ट’ लागू कर दिया गया, जिससे पूरी तरह शराबबंदी हो गई. 2015 में इसे थोड़ी ढील दी गई और शराब की दुकानें खुलने लगीं, लेकिन 2019 में MNF सरकार ने फिर से शराबबंदी लागू कर दी.
राजस्व को लेकर उठ रहे सवाल
हाल के वर्षों में राज्य में शराबबंदी को लेकर बहस चल रही है. कई लोग मानते हैं कि शराबबंदी के बावजूद लोग अवैध तरीके से शराब पी रहे हैं, जिससे राज्य को कोई फायदा नहीं हो रहा है. साथ ही, मिजोरम की आय के स्रोत भी सीमित हैं, इसलिए इस नीति में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है.
अब देखना होगा कि नया विधेयक विधानसभा में पारित होता है या नहीं, और इसका मिजोरम की अर्थव्यवस्था और समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा.