Advertisement

SC में दागियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन बैन की याचिका, चुनाव आयोग ने जताई सहमति

बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर मुख्य रूप से तीन मांगें की हैं. आयोग ने हलफनामे में कहा है कि वह जनहित याचिका में की गई पहली और दूसरी मांग का समर्थन करता है. याचिका में दोषी ठहराए गए नेताओं या उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी की मांग की गई है.

चुनाव आयोग ने भी किया दागियों पर आजीवन बैन का समर्थन चुनाव आयोग ने भी किया दागियों पर आजीवन बैन का समर्थन
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 18 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 8:16 PM IST
  • याचिका में दोषी करार नेताओं के आजीवन बैन की मांग
  • आयोग ने कहा, 3 में से पहली 2 मांगों का समर्थन
  • याचिका पर केंद्र की ओर से अभी जवाब नहीं दाखिल

निर्वाचन आयोग ने भी अदालत से दोषी ठहराए गए नेताओं या उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी लगाए जाने पर अब हामी भरी है. राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की मांग वाली एक जनहित याचिका में दोषी करार लोगों को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए अयोग्य ठहराये जाने की मांग का निर्वाचन आयोग ने भी समर्थन किया है.

अपने हलफनामे में निर्वाचन आयोग ने जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों के शीघ्र निपटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन की मांग का भी समर्थन किया है. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में सारी बातें विस्तार से कही हैं.

Advertisement

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर मुख्य रूप से तीन मांगें की हैं. आयोग ने हलफनामे में कहा है कि वह जनहित याचिका में की गई पहली और दूसरी मांग का समर्थन करता है. 

क्या हैं याचिका में तीन मांगें
याचिका में पहली मांग है कि जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के आपराधिक मुकदमों का निपटारा एक साल के लिए होना सुनिश्चित किया जाए. इसके लिए विशेष अदालतें गठित की जाएं और दोषी ठहराए गए लोगों को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए आजीवन अयोग्य माना जाए.

दूसरी मांग यह है कि चुनाव सुधार से संबंधी विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग की सिफारिशें लागू की जाएं. 

तीसरी मांग है कि चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा तय होनी चाहिए. आयोग ने इस तीसरी मांग के बारे में कहा है कि ये मुद्दा विधायिका के कार्यक्षेत्र में आता है. अदालत अगर इससे सहमत है तो इसके लिए कानून में संशोधन की जरूरत होगी. और ये सब केवल विधायिका यानी संसद ही कर सकेगी. 

Advertisement

देखें: आजतक LIVE TV 

कानून मंत्रालय के साथ कई बैठकें
निर्वाचन आयोग ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि चुनाव सुधार के बारे में उसकी कानून मंत्रालय के विधायी विभाग के सचिव के साथ कई बैठकें हुई हैं. विधि आयोग की चुनाव सुधार संबंधी 244वीं और 255वीं रिपोर्ट की सिफारिश लागू करने के बारे में उसने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है. ये सब अभी सरकार के पास विचाराधीन है. 

आयोग ने इस बारे में गत 25 जुलाई को कानून मंत्री को चिट्ठी भी भेजी थी. उसका जवाब भी हलफनामे के साथ नत्थी किया है. हालांकि केंद्र सरकार ने अभी तक याचिका पर जवाब दाखिल नहीं किया है.

अश्वनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि न्यायपालिका या कार्यपालिका का कोई भी व्यक्ति किसी भी अपराध में दोषी ठहराया जाता है तो वह अपने आप निलंबित हो जाता है और फिर जीवनभर के लिए नौकरी से बाहर हो जाता है लेकिन विधायिका के लोगों पर ये नियम लागू नहीं होता उनके लिए नियम भिन्न है.

याचिका में कहा गया कि सांसद या विधायक दोषी करार और सजायाफ्ता होने के बावजूद अपनी राजनीतिक पार्टी बना सकता है, उसका पदाधिकारी हो सकता है. यहां तक कि वह व्यक्ति सजा पूरी होने के छह साल बाद चुनाव लड़ सकता है और मंत्री भी बन सकता है. याचिका में दोषी करार सांसद या विधायक पर जीवनभर के लिए रोक लगाने की मांग करते हुए कहा गया है कि ऐसा किए बगैर राजनीति का अपराधीकरण नहीं रुक सकता.

Advertisement

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement