
चुनावों के दौरान मतदाताओं को मुफ्त में सामान वितरित करने या वादे करने के मामले में निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हाथ खड़े कर दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले का हवाला देते हुए आयोग ने कहा कि जब घोषणा पत्र में किए गए मुफ्त उपहारों के वादे 'भ्रष्ट प्रथा' और 'चुनावी अपराध' नहीं हैं, तो आयोग इस बारे में क्या कर सकता है. साथ ही कहा कि कोर्ट निर्देश जारी कर दे तो आयोग उसे लागू कर देगा.
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए अपने हलफनामे में कहा कि मौजूदा व्यवस्था में राजनीतिक पार्टियों के मुफ्त उपहार के वादे पर रोक नहीं लगाई जा सकती. इस पर रोक लगाना उनके क्षेत्राधिकार में नहीं है. निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के जवाब में बताया कि मुफ्त उपहार देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला है. अदालत चाहे तो राजनीतिक पार्टियों के लिए इस बारे में गाइडलाइन तैयार कर सकती है. चुनाव आयोग इसे लागू कर सकता है, लेकिन अपनी मर्जी से आयोग ये नीति बनाकर लागू नहीं कर सकता है.
आयोग ने कहा कि फ्री-बी के मामले में सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के जरिए बताया कि चुनाव से पहले या बाद में किसी भी मुफ्त उपहार की पेशकश करना या बांटना राजनीतिक पार्टी या संगठन का नीतिगत निर्णय है. राज्य या देश के आर्थिक ढांचे और अर्थव्यवस्था पर इसका कैसा और कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इन सवालों पर मतदाता विचार कर फैसला ले सकते हैं.
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट के जून 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी मामले में दिए फैसले का भी हवाला दिया. उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि घोषणापत्र में दी जाने वाली मुफ्त सुविधाएं जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत "भ्रष्ट प्रथाओं" और "चुनावी अपराधों" के तहत नहीं आती हैं. वहीं, इसी साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 4हफ्ते में जवाब मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार देने के वादे पर चिंता भी जताई थी.