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भारतीय निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों से पूछा है कि वो बताएं कि चुनावी वादों को कैसे पूरा करेंगे. इसको लेकर आयोग ने दलों को चिट्ठी लिखी है, जिसमें कहा गया है कि घोषणा पत्र में योजनाओं पर आने वाले खर्च और उसके लिए राजस्व अर्जित करने की योजना के बारे में भी बताना होगा. केवल घोषणाएं कर देने से काम नहीं चलेगा. चुनाव आयोग के इन पोल कोड को लेकर विपक्ष भड़क गया है.
चुनाव आयोग के इन कोड पर कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि यह चुनाव आयोग का काम नहीं है. एक अखबार को दिए अपने बयान में जयराम रमेश ने कहा कि यह प्रतिस्पर्धी राजनीति की भावना के खिलाफ है और भारत में लोकतंत्र के ताबूत पर एक और कील होगी. जयराम रमेश ने कहा कि दशकों से परिवर्तनकारी कोई भी कल्याणकारी और सामाजिक विकास योजना कभी भी वास्तविकता नहीं बन पाती अगर ऐसा नौकरशाही नजरिया होता.
शिवसेना ने भी की EC की आलोचना
चुनाव आयोग के इस कदम की शिवसेना और सीपीएम ने भी आलोचना की है. शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि चुनावी लोकतंत्र और चुनावों के प्रशासन की रेखाएं धुंधली होती जा रही हैं, जो कि ईडी, सीबीआई के कार्यों के अनुरूप हैं.
चुनाव आयोग के सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि आयोग चुनावी वादों पर अपर्याप्त खुलासे और वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सकता है क्योंकि इस तरह किए गए खाली चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव हैं. सुप्रीम कोर्ट में अभी भी फ्रीबीज याचिका पर सुनवाई हो रही है. चुनाव आयोग चाहता है कि राजनीतिक दल अपनी वित्तीय योजना के साथ-साथ वादों की घोषणा के औचित्य पर विस्तार से बताएं.
मूकदर्शक नहीं हो सकता है ECI
चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि आयोग पार्टियों को वादे करने से नहीं रोक सकता है. मतदाताओं को पार्टियों द्वारा किए गए वादों के बारे में जानने की जरूरत है और उन्हें विकल्प बनाने के लिए सूचित करने का अधिकार है. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के नेतृत्व में आयोग ने फैसला किया है कि वह एक मूक दर्शक नहीं हो सकता है. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन व सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए समान अवसर बनाए रखने पर कुछ वादों और प्रस्तावों के अवांछनीय प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सकता है.
व्यवहारिक नहीं होती चुनावी घोषणाएं
सीईसी राजीव कुमार राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए एक प्रोफार्मा लाने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा किए गए चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहारिकता का आकलन करने के लिए मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी भी सुनिश्चित कर रहे हैं. बीते समय में यह देखा गया है कि कई दल ऐसे वादे करते हैं जो आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं होते हैं और वे बजट से अधिक हो जाते हैं और फिर परिणामस्वरूप धन के लिए हाथापाई करते हैं.
दलों को आयोग ने भेजा प्रोफार्मा
आयोग ने राजनीतिक दलों को जो प्रोफार्मा भेजा है, उसमें राजस्व जुटाने के तरीकों (अतिरिक्त टैक्स के माध्यम से), खर्च को युक्तिसंगत बनाने (यदि आवश्यक हो तो कुछ योजनाओं में कटौती), देनदारियों पर प्रभाव और आगे के ऋण को बढ़ाने और फिसकल रिस्पॉनसिबिलिटी और बजट मैनेजमेंट (FRBM) पर होने वाले प्रभाव का विवरण मांगा गया है.
टैक्स और खर्च का विवरण देने के लिए कहा गया
सीईसी राजीव कुमार ने मौजूदा MCC (आदर्श आचार संहिता) दिशानिर्देशों के पूरक और राजनीतिक दलों को घोषणापत्र में अपने वादों के वित्तीय प्रभावों के बारे में मतदाताओं को सूचित करने के लिए अनिवार्य करने का प्रस्ताव दिया है. जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के मुख्य सचिव और केंद्रीय वित्त सचिव - जब भी या जहां कहीं भी चुनाव होते हैं, एक निर्दिष्ट प्रारूप में टैक्स और खर्च का विवरण प्रदान करें.
18 अक्टूबर तक विचार भेजेंगे राजनीतिक दल
राजनीतिक दलों को अपने घोषणा पत्र में मतदाताओं को वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, वादों को पूरा करने में होने वाले अतिरिक्त खर्च को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाने के तरीकों और साधनों के बारे में बताना चाहिए. इसके अलावा वादों को पूरा करने के लिए पार्टियों को राज्य या केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिरता पर अतिरिक्त संसाधन जुटाने की योजना के प्रभाव को भी बताना चाहिए. चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से इस चिट्ठी के बारे में 18 अक्टूबर 2022 तक अपने विचार भेजने को कहा गया है.