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10 में से वो 3 वोटर जो हर चुनाव में रहते हैं पोलिंग बूथ से दूर!

अब तक 17 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. वोटर्स की संख्या पांच गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है, लेकिन वोटिंग प्रतिशत में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है. चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि अब तक कभी भी लोकसभा चुनाव में 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग नहीं हुई है.

लोकसभा चुनाव में कभी 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग नहीं हुई. (फाइल फोटो-PTI) लोकसभा चुनाव में कभी 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग नहीं हुई. (फाइल फोटो-PTI)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 6:41 PM IST

क्या आपको पता है 1952 में जब देश में पहली बार आम चुनाव हुए थे, तब 17.32 करोड़ वोटर्स थे और इनमें से 10.59 करोड़ यानी 59% ने वोट डाला था. 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो वोटर्स की संख्या 5 गुना से भी ज्यादा बढ़कर 91 करोड़ के पार चली गई और इनमें से 67% यानी 61.36 करोड़ ने वोट दिया. 

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इसका मतलब क्या हुआ? मतलब ये कि अब तक 17 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. वोटर्स की संख्या पांच गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है, लेकिन वोटिंग प्रतिशत में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है. चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि अब तक कभी भी लोकसभा चुनाव में 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग नहीं हुई है. 

इसका कारण क्या है?

इसकी एक बड़ी वजह है प्रवासी वोटर्स. यानी ऐसे वोटर्स जो अपने घर से दूर रह रहे हैं. इनमें बड़ी संख्या युवाओं की है, जो पढ़ाई या रोजगार के लिए अपने घर से दूर हैं.

दरअसल, कानूनन भारत का कोई भी नागरिक कहीं का भी वोटर बन सकता है. लेकिन वोटर आप उसी विधानसभा के बन सकते हैं, जहां आप रह रहे हैं. अगर आप कहीं और रहने लगते हैं तो वहां के वोटर भी बन सकते हैं, पर उसके लिए पुरानी विधानसभा की वोटर लिस्ट से नाम हटवाना पड़ेगा.

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लेकिन इसमें एक दिक्कत भी है और वो ये कि नई विधानसभा की वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाना है तो उसके लिए बिजली बिल या एड्रेस प्रूफ जैसे दस्तावेज लगते हैं. चूंकि ज्यादातर प्रवासियों के पास ऐसे दस्तावेज नहीं होते, इसलिए वो अपना नाम जहां रह रहे हैं, वहां की वोटर लिस्ट में दर्ज नहीं करवा सकते.

इसके अलावा पीपुल्स ऑफ रिप्रेजेंटेशन एक्ट, 1951 की धारा 20A कहती है कि वोट देने के लिए व्यक्ति को पोलिंग स्टेशन ही जाना होगा. मतलब ये कि पोलिंग स्टेशन पर जाकर ही वोट डाला जा सकता है. सिर्फ सर्विस वोटर्स को ही इससे छूट है.

कितने प्रवासी?

इसके ताजा आंकड़े नहीं है, लेकिन कुछ पुराने आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है. 2011 में आखिरी बार जनगणना हुई थी, जिसमें सामने आया था कि भारत में 45 करोड़ से ज्यादा लोग प्रवासी थे. 

ये वो लोग थे जिन्होंने अलग-अलग कारणों से अपना घर छोड़ दिया था. इन प्रवासियों में आधी से ज्यादा महिलाएं थीं, जो शादी के बाद दूसरे शहर या राज्य में बस गई थीं. वहीं, ज्यादातर पुरुष ऐसे थे जिन्होंने रोजगार के लिए अपना घर छोड़ दिया था.

अभी 2023 चल रहा है और जाहिर है कि ये आंकड़ा और बढ़ा होगा. क्योंकि 2001 में जहां 31.45 करोड़ लोग ऐसे थे जिन्होंने देश के अंदर पलायन किया था, जिनकी संख्या 2011 में बढ़कर 45.36 करोड़ के पार चली गई थी.

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2011 में पांच एनजीओ ने प्रवासी वोटर्स पर एक स्टडी की थी. इसमें सामने आया था कि 60% प्रवासी ऐसे थे जो वोट डालने के लिए अपने घर नहीं लौटे, क्योंकि उनके लिए घर लौटकर आना काफी महंगा था. भारत में दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासी ऐसे हैं जो गरीब हैं और ऑटो-रिक्शा चलाकर या छोटे-मोटे काम करके अपना गुजर-बसर करते हैं. ऐसे में उनके लिए वोट डालने के लिए घर लौटकर आना महंगा पड़ जाता है.

लेकिन ये सिर्फ भारत की समस्या नहीं...

सिर्फ भारत ही ऐसा नहीं है जहां कम वोटिंग की समस्या है. बल्कि दुनिया के ज्यादातर बड़े मुल्कों में भी ये समस्या आम है. 

इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस यानी IDEA के आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के लिहाज से बड़े देशों में भी वोटिंग प्रतिशत काफी कम रहता है.

इसे कुछ उदाहरण से समझते हैं. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी ताकत. यहां 2020 में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे. उस चुनाव में 70 फीसदी के आसपास ही वोटिंग हुई थी. रूस में 2021 में संसदीय चुनाव हुए थे, जिसमें 52 फीसदी से भी कम वोटिंग हुई थी.

पाकिस्तान में भी 2018 में संसदीय चुनाव हुए थे. इसमें करीब 50 फीसदी ही वोट पड़े थे. बांग्लादेश में 2018 में चुनाव हुए थे, जिसमें 80 फीसदी वोटिंग हुई थी. इसी तरह यूके के 2019 के संसदीय चुनाव में 68 फीसदी के आसपास ही वोट पड़े थे.

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तो इसका तरीका क्या है?

वोट प्रतिशत बढ़ाने और प्रवासियों की हिस्सेदारी बढ़ाने का तरीका है- रिमोट वोटिंग. चुनाव आयोग इस पर काम कर भी रहा है.

चुनाव आयोग ने पिछले महीने राजनीतिक पार्टियों रिमोट वोटिंग मशीन (RVM) के प्रोटोटाइप का डेमो भी दिया था. हालांकि, राजनीतिक पार्टियों ने इसका विरोध किया था.

रिमोट वोटिंग मशीन के जरिए प्रवासी जहां हैं वहीं से वोट डाल सकते हैं और उन्हें अपने घर भी नहीं आना पड़ेगा. चुनाव आयोग ने एक बयान जारी कर बताया था कि अभी जो मौजूदा EVM इस्तेमाल होती है, रिमोट वोटिंग मशीन भी वैसी ही होगी. सरल शब्दों में कहा जाए तो RVM, EVM का ही अपडेटेड वर्जन है.

रिमोट वोटिंग मशीन में रिमोट कंट्रोल यूनिट (RCU), रिमोट बैलेट यूनिट (RBU), रिमोट वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (RVVPAT), कार्ड रीडर (CCR), पब्लिक डिस्प्ले कंट्रोल यूनिट (PDCU), रिमोट सिंबल लोडिंग यूनिट (RSLU) जैसे कंपोनेंट हैं.

रिमोट वोटिंग मशीन का प्रस्ताव अगर पास होता है और चुनावों में इसका इस्तेमाल होता है, तो दूसरे शहरों या राज्यों में रह रहे प्रवासी उसी जगह से वोट डाल सकेंगे.

 

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