
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. शीर्ष अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा, 'चुनावी बॉन्ड चयनात्मक गोपनीयता (Selective Anonymity) प्रदान करते हैं, क्योंकि इनकी खरीददारी से संबंधित रिकॉर्ड भारतीय स्टेट बैंक के पास उपलब्ध हैं और जांच एजेंसियों तक पहुंच सकते हैं.' सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी सरकार के उस तर्क के जवाब में की, जिसमें कहा गया कि इलेक्टोरल बॉन्ड में गोपनीयता का प्रावधान नहीं रखने से, राजनीतिक चंदे के बड़े पैमाने पर ब्लैक मनी में तब्दील होने की आशंका बढ़ जाती है.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि जो आदमी बॉन्ड खरीद रहा है वही डोनर है ये आखिर कैसे पता चलेगा? हो सकता है खरीदार डोनर न हो. खरीदार की बैलेंस शीट में तो बॉन्ड खरीद की रकम दिखाई देगी, लेकिन असली डोनर की बैलेंस शीट में नहीं. बैलेंस शीट में ये भी नहीं पता चलेगा कि कौन सा बॉन्ड खरीदा? उसमें तो यही पता चलेगा कि कितने बॉन्ड खरीदे. बॉन्ड खरीद में लगाई रकम का स्रोत भी तो नहीं पता चलेगा? न ही डोनर का पता चलेगा! रकम कहां खर्च की गई यानी किसको दी गई? इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में इन तीनों सवालों के जवाब नहीं मिलते हैं.'
गोपनीयता नहीं रखने से काले धन को बढ़ावा मिलेगा: केंद्र सरकार
अदालत में सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई के सवालों के जवाब में कहा कि 100 में से पांच इसका दुरुपयोग कर सकते हैं. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन हमें कहीं और किसी पर तो भरोसा करना ही होगा. उन्होंने उदाहरण और तर्क देते हुए कहा- 'अगर मैंने पार्टी 'ए' को डोनेशन दिया और पार्टी 'बी' ने सरकार बनाई, तो मुझे डर रहेगा कि कहीं उत्पीड़न का सामना न करना पड़े. व्यावहारिकता में देखें तो इसलिए सबसे सुरक्षित तरीका नकद भुगतान होगा, ताकि मुझे उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़े. इस तरह, मेरी क्लीन मनी, ब्लैक मनी में परिवर्तित हो जाती है और यह अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी है. इसलिए, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में डोनेशन देने वाले का नाम गोपनीय रखने का प्रावधान उसे उत्पीड़न और प्रतिशोध से बचाने के लिए आवश्यक है.'
इस स्कीम की दिक्कत चयनात्मक गोपनीयता का होना है: सीजेआई
इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम दुरुपयोग की बात नहीं स्कीम की सक्षमता की बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'इस स्कीम के साथ समस्या यह है कि यह (केवल) चयनात्मक गोपनीयता प्रदान करती है. यह एसबीआई के लिए गोपनीय नहीं है...जांच एजेंसियों के लिए गोपनीय नहीं है. चुनावी बॉन्ड योजना के मौजूदा प्रावधानों के तहत, एक कंपनी को यह दिखाना होगा कि उसने कुल मिलाकर कितना राजनीतिक चंदा दिया है. भले ही उसे किसी अमुक पार्टी को कितना चंदा दिया यह नहीं बताया होगा, लेकिन वह राशि कंपनी की बैलेंस शीट में दिखाई देगी, इसलिए व्यापक अर्थ में, कोई भी पार्टी जान जाएगी कि उसे (कंपनी से) कितना डोनेशन मिला है.'
मुख्य न्यायाधीश ने एसजी के इस तर्क पर भी संदेह व्यक्त किया कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित करने से ऊपर वर्णित स्थिति वापस आ जाएगी- जिसमें कहा गया कि डोनर्स को लगेगा 'नकद भुगतान करना ही सबसे सुरक्षित तरीका है'. हालांकि, अदालत ने कहा कि वह इस बात से सहमत है कि कुल मिलाकर इलेक्टोरल बॉन्ड का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनावी फंडिंग नकदी में कम और बैंकिंग सिस्टम पर अधिक निर्भर हो. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'यह काम प्रगति पर है जैसी स्थिति है..., हम इस पर आपके साथ हैं.'
शीर्ष अदालत ने दो बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, सवाल यह है कि यदि हम इस दलील को स्वीकार करते हैं कि हमें पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता है, तो चाहे हम इसे मानें या नहीं, हमारी राजनीतिक व्यवस्था ऐसी है कि उत्पीड़न होगा. सुप्रीम कोर्ट ने दो बिंदुओं के बारे में कहा, 'गोपनीयता देकर आप यह सुनिश्चित करते हैं कि व्यापक सार्वजनिक हित की पूर्ति हो. दूसरा, जब सत्ता में बैठा व्यक्ति राजनीतिक चंदा देने वाले के डेटा तक पहुंच सकता है तो यहां चयनात्मक गोपनीयता के मुद्दे का क्या होगा?'
सरकार ने अपनी दलील में कहा- गोपनीयता पूरी है, चयनात्मक नहीं
हालांकि, सरकार ने शीर्ष अदालत की टिप्पणी पर अपने प्रतिवाद में जोर देकर कहा, 'गोपनीय रखने के अलावा और कुछ भी उत्पीड़न की समस्या का समाधान नहीं कर पाएगा. और उत्पीड़न नकद में भुगतान को प्रोत्साहित करता है.' एसजी तुषार मेहता ने अदालत को यह भी दृढ़ता से बताया कि 'पूरी गोपनीयता का प्रावधान है, न की चयनात्मक गोपनीयता है.' इससे पहले आज, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि यह 'ईमानदार (व्यक्ति) द्वारा बैंक ट्रांसफर और दूसरा जो गुमनामी चाहता है के बीच कृत्रिम अंतर पैदा करता है. ऐसा नहीं हो सकता. वरना पॉलिटिकल डोनेशन के दोनों रूपों (इलेक्टोरल बॉन्ड और नगदी) के बीच कोई अंतर नहीं बचेगा.'
एसजी ने आगे कहा कि पिछले कई दशकों से देखा जा रहा है कि सत्ताधारी दल को चंदा ज्यादा मिलता है उनकी आय कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने बुधवार को वहीं से अपनी दलीलें शुरू कीं, जहां वे मंगलवार को रुके थे, जब वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया था कि यह योजना राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के स्रोतों के बारे में जानने के नागरिकों के मौलिक अधिकार को खत्म कर देती है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहाथा कि यह योजना गोपनीय चुनावी बॉन्ड के माध्यम से ब्लैक मनी को 'री-रूट' करने के लिए डिजाइन की गई है. इससे पहले सोमवार को सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा था कि नागरिकों के पास धन के स्रोत के संबंध में जानकारी का ऐसा अधिकार नहीं है. अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत से कहा था कि उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना, 'कुछ भी और सब कुछ' जानने का कोई सामान्य अधिकार नहीं हो सकता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम क्या है और कैसे काम करती है?
साल 2018 में सरकार द्वारा अधिसूचित इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पॉलिटिकल फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में देखा गया था. केवल वे राजनीतिक दल ही इन्हें प्राप्त कर सकते हैं, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या राज्य चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों. चुनावी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से मिलते हैं. एसबीआई की जिन 29 शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदे जा सकते हैं, वे नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कलकत्ता और गुवाहाटी समेत कई शहर में हैं.
चुनावी बॉन्ड कौन खरीद सकता है, इसका क्या होता है?
चुनावी बॉन्ड को भारत का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था खरीद सकती है. ये बॉन्ड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं. देश का कोई भी नागरिक या कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा देना चाहते हैं तो उन्हें एसबीआई से चुनावी बॉन्ड खरीदने होंगे. वे बॉन्ड खरीदकर किसी भी पार्टी को दे सकेंगे. चुनावी बॉन्ड में डोनर का नाम नहीं होता. इस बॉन्ड को खरीदकर, आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, इस पर उसका नाम लिखते हैं. इस बॉन्ड को आप बैंक को वापस कर सकते हैं और अपना पैसा वापस ले सकते हैं, लेकिन उसकी एक समय सीमा तय होती है.