
इंडिया टुडे ग्रुप ने डेटा एनालिटिक्स फर्म हाउ इंडिया लिव्ज के साथ मिलकर देश के सकल घरेलू व्यवहार के जो आंकड़े सामने रखे हैं, उसने देश के उस व्यावहारिक चेहरे को सामने रखा है, जो असल में लोगों के दोहरे व्यक्तित्व को दिखाता है. इसमें सामने आया है कि भारतीय लोगों में कथनी और करनी के बीच काफी फर्क है. ऐसा क्यों है? इस प्रश्न का जवाब तो एक अलग ही शोध का विषय है, लेकिन भारतीय नागरिक ऐसा किन-किन क्षेत्रों में कर रहे हैं ये जानना दिलचस्प है.
87 फीसद लोग बिजली चोरी को मानते हैं गलत
उदाहरण के लिए सर्वे में 87% लोगों ने बिजली चोरी को गलत कहा, 85% ने बिना टिकट यात्रा का विरोध किया, लेकिन रोज़मर्रा में ये नियम तोड़े जाते हैं. दिल्ली में 99% लोग बिना टिकट यात्रा को गलत मानते हैं, मगर हकीकत में यह आम है. सर्वे बताता है कि लोग नैतिकता को समझते हैं, पर अमल नहीं करते. 61% ने घूस देने की बात स्वीकारी, जो निजी हितों के आगे ईमानदारी की हार दिखाता है. यह फर्क सामाजिक दबाव, सुविधा और जागरूकता के अभाव से जुड़ा हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा और सख्त कानून इस खाई को कम कर सकते हैं. भारत का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपनी बात को कितना सच कर दिखाते हैं.
रिश्वत भी देने को तैयार हैं लोग
सर्वेक्षण में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि 61% भारतीय नौकरशाही से काम निकालने के लिए घूस देने को तैयार हैं. उत्तर प्रदेश में यह प्रवृत्ति सबसे मजबूत दिखी, जहां भ्रष्टाचार की छवि सबसे कमजोर रही. इसके उलट, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में नैतिकता पर जोर अधिक दिखा. सर्वे में 87% ने बिजली चोरी को गलत बताया, लेकिन घूस को लेकर उदासीनता चिंताजनक है. यह दिखाता है कि जब निजी लाभ की बात आती है, तो नैतिकता कमजोर पड़ जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि भ्रष्टाचार की जड़ें प्रशासनिक अक्षमता और पारदर्शिता की कमी में हैं. नीति-निर्माताओं को सख्त कदम उठाने होंगे, वरना यह समस्या देश के विकास को बाधित करेगी। नागरिक जागरूकता के साथ व्यवस्था में सुधार जरूरी है.