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'पश्चिमी देशों का पसंदीदा था चीन, भारत की करते थे आलोचना', BT Mindrush में बोले विदेश मंत्री एस. जयशंकर

BT Mindrush कार्यक्रम में बोलते हुए, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वैश्विक मंच पर भारत और चीन की छवि के अंतर को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा, 'चीन लंबे समय तक पश्चिमी देशों की एक रणनीतिक प्राथमिकता रहा. उन्हें एक समाज के रूप में मजबूत बनाना, उनकी उपलब्धियों और इतिहास की प्रशंसा करना और भारत को कमतर दिखाना पश्चिम की एक रणनीतिक मजबूरी थी.'

BT Mindrush में बोलते विदेश मंत्री एस. जयशंकर BT Mindrush में बोलते विदेश मंत्री एस. जयशंकर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 1:35 PM IST

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने BT Mindrush कार्यक्रम में वैश्विक राजनीति और भारत-चीन की छवि को लेकर बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा, 'जिस दुनिया में हम सोते हैं, अगली सुबह वह वैसी नहीं रहती जैसी हमने सोचा था.'

जयशंकर ने इस मौके पर बताया कि किस तरह पश्चिमी देशों ने लंबे समय तक चीन को एक रणनीतिक प्राथमिकता माना और उसकी उपलब्धियों की सराहना करते हुए भारत को पीछे धकेलने की कोशिश की. उन्होंने कहा, 'चीन को मजबूत बनाना, उसकी उपलब्धियों और इतिहास की प्रशंसा करना और भारत की आलोचना करना पश्चिम के लिए एक रणनीतिक मजबूरी रही है.'

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'भारत को कमतर दिखाना पश्चिम की रणनीतिक मजबूरी थी'

एक ऐसी दुनिया जिसमें नैरेटिव से ही शक्ति तय होती है, जयशंकर ने कहा कि भारत को अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए और अधिक मेहनत करनी होगी.

BT Mindrush कार्यक्रम में बोलते हुए, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वैश्विक मंच पर भारत और चीन की छवि के अंतर को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा, 'चीन लंबे समय तक पश्चिमी देशों की एक रणनीतिक प्राथमिकता रहा. उन्हें एक समाज के रूप में मजबूत बनाना, उनकी उपलब्धियों और इतिहास की प्रशंसा करना और भारत को कमतर दिखाना पश्चिम की एक रणनीतिक मजबूरी थी.'

'पिछले कुछ साल में जो हुआ उसके लिए बीते 200 साल जिम्मेदार'

उन्होंने इसे औपनिवेशिक काल में 19वीं शताब्दी में लिए गए फैसलों से जोड़ा. जयशंकर ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में जो हो रहा है, वह दरअसल बीते 200 वर्षों की घटनाओं का परिणाम है.' उन्होंने बताया कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय इतिहास को व्यवस्थित रूप से कमजोर किया गया, जबकि रणनीतिक कारणों से चीन के इतिहास को बढ़ावा दिया गया और उसका समर्थन किया गया.

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'चीन के सबसे बड़े समर्थक थे अमेरिका और ब्रिटेन'

उन्होंने बताया कि 19वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों को यह डर था कि ज़ारशाही रूस चीन पर कब्जा कर सकता है. उन्होंने कहा, 'अगर आप 19वीं शताब्दी को देखें, तो उस समय चीन के सबसे बड़े समर्थक ब्रिटेन और अमेरिका थे- खासतौर पर अमेरिकी मिशनरी.' जयशंकर ने नोबेल पुरस्कार विजेता लेखिका पर्ल एस. बक का जिक्र करते हुए कहा कि वह चीन को बढ़ावा देने के लिए पश्चिमी देशों द्वारा किए गए सांस्कृतिक प्रयासों का एक उदाहरण थीं.

'हमें और अधिक मेहनत करनी होगी'

जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत को जिस छवि प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, उसकी शुरुआत एक बेहद अलग स्थान से होती है. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि हमारे सामने एक कठिन चुनौती है, और इसलिए हमें और अधिक मेहनत करनी होगी. आज की दुनिया में हम एक निश्चित धारणा के साथ सोते हैं, लेकिन अगली सुबह वह बदल चुकी होती है.'

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