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नकली लोगो, गायब है QR कोड... ग्रीन पटाखों के नाम पर बड़ा खेल, यूं उड़ रहीं SC के आदेश की धज्जियां

सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि दिल्ली में किसी तरह के पटाखे नहीं चल सकते. बावजूद इसके अब भी चोरी छिपे पटाखे बेचने को लाए जा रहे हैं. अदालत जहां साफ बोल चुकी है कि ग्रीन पटाखे के सिवाए बाकी हिस्से में कुछ नहीं चलेगा, वहां ग्रीन पटाखे के नाम पर गोरखधंधा चलाया जा रहा है. इसको लेकर आजतक की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम ने स्टिंग ऑपरेशन 'दमघोंटू' में चौंकाने वाले खुलासे किए.

आजतक के ऑपरेशन 'दमघोंटू' में हुआ चौंकाने वाला खुलासा आजतक के ऑपरेशन 'दमघोंटू' में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
नितिन जैन
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:59 AM IST

गीता का श्लोक है, जिसमें कहा गया, "धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे." इसमें भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वुद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं. शायद इस बार दिवाली से ठीक पहले दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण से फौरी राहत देने के लिए भी भगवान ने ही सुनी और बारिश हुई. इससे हवा की गुणवत्ता थोड़ी सुधरी. 

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प्रदूषण पर लगाम लगाने को दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है, जबकि देश के अन्य शहरों में सिर्फ ग्रीन पटाखे ही चलाने की अनुमति दी है, लेकिन कोर्ट के आदेशों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और धड़ल्ले से ग्रीन पटाखे के नाम पर खतरनाक पटाखे बेचे जा रहे हैं. इसका खुलासा आजतक के ऑपरेशन दमघोंटू में हुआ है.

दरअसल, दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकार को फटकार लगाते कहा कि हर साल जब हम दखल देते हैं, तभी एक्शन क्यों लिया जाता है. दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि हम नतीजे देखना चाहते हैं. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने सरकार से पूछा कि पिछले 6 साल से आप क्या कर रहे थे. सोचिए अदालत को ये तक कहना पड़ गया कि शायद भगवान ने दिल्ली के लोगों की प्रार्थनाएं सुन लीं. इसलिए गुरुवार रात में बारिश हो गई.

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कोर्ट ने लगाई फटकार

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या आप चाहते हैं कि ये आदेश हम पारित कर दें कि सभी राज्य सरकार के अधिकारी बिना मास्क के काम करें. तभी आम जनता के स्वास्थ्य के बारे में इनको पता चलेगा. कोर्ट ने पंजाब सरकार को कहा कि हम लोगों को प्रदूषण की वजह से मरने नहीं दे सकते.

सुप्रीम कोर्ट की फटकार तक पर भी क्या सरकारों के कान पर जूं नहीं रेंगती. सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि दिल्ली में किसी तरह के पटाखे नहीं चल सकते.  बावजूद इसके अब भी चोरी छिपे पटाखे बेचने को लाए जा रहे हैं. अदालत जहां साफ बोल चुकी है कि ग्रीन पटाखे के सिवाए बाकी हिस्से में कुछ नहीं चलेगा, वहां ग्रीन पटाखे के नाम पर गोरखधंधा चलाया जा रहा है.  इसको लेकर आजतक की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम ने स्टिंग ऑपरेशन में चौंकाने वाले खुलासे किए.

शामली में चल रही तमाम पटाखा फैक्ट्री

सुप्रीम कोर्ट से 100 किमी की दूरी पर स्थित उत्तर प्रदेश में शामली तमाम पटाखा फैक्ट्री हैं, जिनमें ग्रीन पटाखों के नाम पर खतरनाक और बैन पटाखे बनाए और बेचे जा रहे हैं. आजतक की स्टिंग टीम ऐसी ही पटाखा फैक्ट्रियों में पहुंची. यहां चारों तरफ पटाखे तैयार होते और बिखरे पड़े नजर आए. अब सवाल था कि क्या ये ग्रीन पटाखे हैं? क्या ये वो पटाखे हैं, जिन्हें चलाने की इजाजत देश के दूसरे हिस्सों में सुप्रीम कोर्ट ने दे रखी है. 

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आजतक के खुफिया कैमरे में जावेद खान नाम का पटाखा कारोबारी कैद हुआ, जो शामली में मेट्रो फायरवर्क्स के नाम से पटाखा फैक्ट्री चलाता है. 
 
रिपोर्टर- ये क्या रेट है?
जावेद- रेट तो इसका 135 रुपये का है हमारा. ये सारा मार्का हमने डोल के नाम से अपना छपवाया हुआ है. डब्बे पर सारा मार्का हमारा है. 
रिपोर्टर- कितनी देर चल जाता है ये?
जावेद- चलता होगा 12-13 सैंकड़

इसके बाद जहां पटाखे बनाए जा रहे हैं, वहीं जावेद खान पटाखा चलाकर अपने धंधे की नुमाइश करने लगता है. 

जावेद (दूसरे पटाखे दिखाते हुए)- इसका हमारा होल-सेल रेट ही 15 रुपये का है.
रिपोर्टर-क्या बात कर रहे हो.
जावेद- इसमें गोला 8 रुपये का भी आता है, 10 रुपये का भी आता है, 6 रुपये का भी आता है.
रिपोर्टर- रेट क्या है?
जावेद- रेट आपको लगा दूंगा 150 रुपये 
रिपोर्टर- इसमें कितने हैं? 
जावेद- 50 पीस
रिपोर्टर- चलेंगे न?
जावेद- दौड़ेंगे.
जावेद- भाई साहब चला नहीं सकता यहां पर खुला है सारा. बहुत दूर तक आवाज़ जाएगी.

इसके पटाखे दूर तक आवाज सुनाते हैं. यानी इनमें वो बारूद है, जिसकी मनाही अदालतें करती हैं. तो क्या ये ग्रीन पटाखा नहीं है? 

रिपोर्टर- इस पर मार्का (ग्रीन पटाखे का) नहीं है?
जावेद- किस चीज का. ग्रीन का? ये रहा. 
रिपोर्टर- ये कोई मार्का थोड़ी है. क्यू आर कोड होता है.
जावेद- बस वो नहीं है. हां लेकिन ये है कि दिवाली के 20 दिन बाद 25 दिन बाद ग्रीन का लासेंस आ जायेगा.

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ग्रीन पटाखों के लिए बने हैं ये नियम

बता दें कि ग्रीन पटाखों में कोई खेल नहीं कर सके, इसलिए राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान NEERI ने नियम तय किया है. नियम बना है कि ग्रीन पटाखों के डिब्बे पर QR कोड भी होगा. इसमें जैसे ही कोई क्यूआर कोड स्कैन करेगा तो उस फैक्ट्री का पता, कैमिकल कम्पोजिशन, लाइसेंस नंबर पता चल जाता ह लेकिन बाज़ार में पूरे सिस्टम को धोखा देते हुए फर्जी ग्रीन पटाखे का लोगो का इस्तेमाल करके बेचा जा रहा है. 

इसी खेल में शामिल शाहिद भी आजतक की स्टिंग टीम को मिला, जो शामली में पटाखों का बड़ा कारोबारी है.

रिपोर्टर- बड़ा वाला दिखाओ (अनार).
शाहिद- इससे बड़ा? 
रिपोर्टर - मिट्टी वाला है?
शाहिद- वे रखे हैं पीस दिखाना जरा.
रिपोर्टर-हां ये वाला दिखाओ
शाहिद- ये भी साईज मिलेगा एक ये है. 
रिपोर्टर- इससे बड़ा?
शाहिद-इससे बड़ा कोई साईज नहीं है?
रिपोर्टर-कितने का?
शाहिद-चार पीस है 250 रुपये के.
रिपोर्टर-चार पीस 250 रुपये के? थोके में? 
शाहिद- एक दो आइटम बनाते हैं लेकिन बाकी सब ये एक दूसरे से ले देकर काम करते है. 
शाहिद-भाईया आप ये देशी ले रहे हो? अगर ग्रीन ट्रेड मार्क चाहिए तो गुड़िया या सुप्रीम का मिलेगा. मेरे पास चलता नहीं है, महंगा होता है.
शाहिद- रॉकेट है ये वाला नोनी के हैं. चलने में कोई दिक्कत नहीं है. 900 रुपये हैं. ये हमारे ही हैं.

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ऐसे एक नहीं, पूरे पटाखा मार्केट में भरे पड़े हुए लोग मिलते हैं. जो ग्रीन पटाखे के नाम पर नकली ग्रीन क्रैकर तैयार करके बना रहे हैं. धड़ल्ले से बेचने का दावा कर रहे हैं. 

ऐसा ही एक पटाखा कारोबारी और मिला, जिसका नाम अकरम था. ये ग्रीन पटाखों के साथ ऐसे पटाखे भी तैयार कर रहा है, जिनको चलाने की इजाजत ही नहीं है.  

अकरम- इसमें तो आईरन डस्ट है.
रिपोर्टर- आर्यन डस्ट? 
अकरम- लड़की का बरूदा, चिपकाने के लिए. दो कोट मिट्टी के लगेगें. दो कोट चॉक मिट्टी के लगेगें. ऊपर अल्मुनियम पाउडर, सोडा.
रिपोर्टर- ठीक है भाई, इन सबसे के मुझे सैम्पल दे दो.
रिपोर्टर- इन दोनों के रेट में कितना अंतर है? 
अकरम- इसकी डिब्बी है 320 रुपये की यूनिट यानी 32 रुपये की डिब्बी है और जो डिब्बी आएगी शिखा की, वो 170 रुपये का (यूनिट) उठेगा. इसके कैमिकल्स महंगे होते हैं ग्रीन के.
रिपोर्टर- और ये सस्ता होता है?
अकरम- ये बहुत सस्ता होता है.

पुलिस-प्रशासन की नाक के नीच हो रहा बड़ा खेल?

देश की राजधानी और सुप्रीम कोर्ट से मुश्किल से डेढ़ घंटे की दूरी पर जब धड़ल्ले से सस्ते के नाम पर पूरी व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते हुए खतरनाक पटाखे बन रहे हैं तो फिर सोचिए क्या इन पटाखा बनाने वालों की पुलिस और अधिकारियों के साथ मिलीभगत नहीं होगी? कारण, इन पटाखा फैक्ट्रियों से आसपास के शहरों में धड़ल्ले से सप्लाई होती है, लेकिन ये कारोबार पुलिस-प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है. इसके चलते अधिकारियों की तरफ भी शक की सुईं घूमती दिखती है.

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