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किसान आंदोलन के 7 महीने पूरे, संयुक्त मोर्चा ने कानून रद्द करने के लिए राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी

किसान मोर्चा ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, सात महीने से भारत सरकार ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए लोकतंत्र की हर मर्यादा की धज्जियां उड़ाई है. राजधानी में अपनी आवाज सुनाने के लिए आ रहे अन्नदाता का स्वागत करने के लिए इस सरकार ने हमारे रास्ते में पत्थर लगाए.'

नरेश टिकैत की अगुवाई में किसान ट्रैक्टरों के साथ फिर दिल्ली पहुंच रहे (पीटीआई) नरेश टिकैत की अगुवाई में किसान ट्रैक्टरों के साथ फिर दिल्ली पहुंच रहे (पीटीआई)
राम किंकर सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2021,
  • अपडेटेड 9:42 PM IST
  • 'ये काले कानून हमारी नस्लों और फसलों को बर्बाद कर देंगे'
  • 'सात महीने में जो देखा वो हमें इमरजेंसी की याद दिलाता है'
  • आंदोलन को बदनाम करने का अभियान चलाया गयाः मोर्चा

केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है. संयुक्त किसान मोर्चा ने कृषि कानूनों को रद्द कराने और एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है. पत्र में इमरजेंसी का जिक्र करते हुए लिखा गया कि पिछले सात महीने में हमने जो कुछ देखा है वो हमें आज से 46 साल पहले लादी गई इमरजेंसी की याद दिलाता है.

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संयुक्त किसान मोर्चा ने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में कहा कि हम भारत के किसान बहुत दुख और रोष के साथ अपने देश के मुखिया को यह चिट्ठी लिख रहे हैं. आज 26 जून को अपने मोर्चे के सात महीने पूरे होने पर खेती बचाने और इमरजेंसी दिवस पर लोकतंत्र बचाने की दोहरी चुनौती को सामने रखते हुए हर प्रदेश से हम यह रोषपत्र आप तक पहुंचा रहे हैं.

'नस्लों, फसलों को बर्बाद कर देंगे कानून'
पत्र में लिखा गया, 'देश हमें अन्नदाता कहता है. पिछले 74 साल में हमने अपनी इस जिम्मेवारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. जब देश आजाद हुआ तब हम 33 करोड़ देशवासियों का पेट भरते थे. आज उतनी ही जमीन के सहारे हम 140 करोड़ जनता को भोजन देते हैं. कोरोना महामारी के दौरान जब देश की बाकी अर्थव्यवस्था ठप हो गई, तब भी हमने अपनी जान की परवाह किए बिना रिकॉर्ड उत्पादन किया, खाद्यान्न के भंडार खाली नहीं होने दिए.'

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'लेकिन इसके बदले आप की मोहर से चलने वाली भारत सरकार ने हमें दिए तीन ऐसे काले कानून जो हमारी नस्लों और फसलों को बर्बाद कर देंगे, जो खेती को हमारे हाथ से छीनकर कंपनियों की मुट्ठी में सौंप देंगे. ऊपर से पराली जलाने पर दंड और बिजली कानून के मसौदे की तलवार भी हमारे सिर पर लटका दी.'

पत्र में कहा गया है, 'खेती के तीनों कानून असंवैधानिक हैं क्योंकि केंद्र सरकार को कृषि मंडी के बारे में कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है. यह कानून अलोकतांत्रिक भी हैं. इन्हें बनाने से पहले किसानों से कोई राय मशवरा नहीं किया गया. इन कानूनों को बिना किसी जरूरत के अध्यादेश के माध्यम से चोर दरवाजे से लागू किया गया. इन्हें संसदीय समितियों के पास भेज कर जरूरी चर्चा नहीं हुई. और तो और इन्हें पास करते वक्त राज्यसभा में वोटिंग तक नहीं करवाई गई. हमने उम्मीद की थी कि बाबासाहेब द्वारा बनाए संविधान के पहले सिपाही होने के नाते आप ऐसे असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और किसान विरोधी कानूनों पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर देंगे. लेकिन आपने ऐसा नहीं किया.'

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'पूरी फसल की खरीद की गारंटी मांगी'
राष्ट्रपति को लिखे पत्र में मोर्चा की ओर से कहा गया, 'आप जानते हैं कि हम सरकार से दान नहीं मांगते, बस अपनी मेहनत का सही दाम मांगते हैं. फसल के दाम में किसान की लूट के कारण खेती घाटे का सौदा बन गई, किसान कर्ज में डूब गए और पिछले 30 साल में 4 लाख से अधिक किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसलिए हमने बस इतनी सी मांग रखी कि किसान को स्वामीनाथन कमीशन के फार्मूले (सी2+50%) के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी पूरी फसल की खरीद की गारंटी मिल जाए. इस पर अपना वादा पूरा करने की बजाय सरकार ने "दुगनी आय" जैसे झूठे जुमले आपके अभिभाषण में डालकर आपके पद की गरिमा को कम किया.'

'पिछले सात महीने से भारत सरकार ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए लोकतंत्र की हर मर्यादा की धज्जियां उड़ाई है. राजधानी में अपनी आवाज सुनाने के लिए आ रहे अन्नदाता का स्वागत करने के लिए इस सरकार ने हमारे रास्ते में पत्थर लगाए, सड़कें खोदीं, कीलें बिछाईं, आंसू गैस छोड़ी, वाटर कैनन चलाए, झूठे मुकदमे बनाए और हमारे साथियों को जेल में बंद रखा.'

चिट्ठी में कहा गया, 'किसान के मन की बात सुनने की बजाय उन्हें कुर्सी के मन की बात सुनाई, बातचीत की रस्म अदायगी की, फर्जी किसान संगठनों के जरिए आंदोलन को तोड़ने की कोशिश की, आंदोलनकारी किसानों को कभी दलाल, कभी आतंकवादी, कभी खालिस्तानी, कभी परजीवी और कभी कोरोना स्प्रेडर कहा. मीडिया को डरा, धमका और लालच देकर किसान आंदोलन को बदनाम करने का अभियान चलाया गया, किसानों की आवाज उठाने वाले सोशल मीडिया एक्टिविस्ट के खिलाफ बदले की कार्रवाई करवाई गई. हमारे 500 से ज्यादा साथी इस आंदोलन में शहीद हो गए.'

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'46 साल पहले की इमरजेंसी की याद'
आगे लिखा है, 'पिछले सात महीने में हमने जो कुछ देखा है वो हमें आज से 46 साल पहले लादी गई इमरजेंसी की याद दिलाता है. आज सिर्फ किसान आंदोलन ही नहीं, मजदूर आंदोलन, विद्यार्थी-युवा और महिला आंदोलन, अल्पसंख्यक समाज और दलित, आदिवासी समाज के आंदोलन का भी दमन हो रहा है. इमरजेंसी की तरह आज भी अनेक सच्चे देशभक्त बिना किसी अपराध के जेलों में बंद हैं, विरोधियों का मुंह बंद रखने के लिए यूएपीए जैसे खतरनाक कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है, मीडिया पर डर का पहरा है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है, मानवाधिकारों का मखौल बन चुका है. बिना इमरजेंसी घोषित किए ही हर रोज लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है. ऐसे में संवैधानिक व्यवस्था के मुखिया के रूप में आपकी सबसे बड़ी जिम्मेवारी बनती है.'

किसानों ने पत्र में आगे लिखा, 'इसलिए हम इस पत्र के माध्यम से करोड़ों किसान परिवारों का रोष देश रूपी परिवार के मुखिया तक पहुंचाना चाहते हैं. हम आपसे उम्मीद करते हैं कि आप केंद्र सरकार को यह निर्देश दें कि वह किसानों की इन न्यायसंगत मांगों को तुरंत स्वीकार करे, तीनों किसान विरोधी कानूनों को रद्द करे और एमएसपी (सी2+50%) पर खरीद की कानूनी गारंटी दे.'

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