मास्टर स्ट्रोक या मास्टर फेलियर? कैसे देखा जाए तीनों कृषि कानूनों का वापस लेना

सवाल उठने लगे कि ऐसा क्या हुआ कि कभी ना झुकने वाली सरकार ने तुरंत इस मुद्दे पर कदम पीछे खींच लिए. सवाल तो ये भी उठने लगा कि सरकार का चुनाव से ठीक पहले लिया गया ये फैसला एक मास्टर स्ट्रोक है या फिर मास्टर फेलियर.

Advertisement
पीएम नरेंद्र मोदी ( पीटीआई) पीएम नरेंद्र मोदी ( पीटीआई)
सुधांशु माहेश्वरी
  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:11 AM IST
  • मास्टर स्ट्रोक या मास्टर फेलियर, पीएम के फैसले के मायने
  • विवाद एक, राय अलग, कौन सा स्टैंड ज्यादा मजबूत
  • सरकार ने क्या रणनीति अपनाई, विपक्ष निकालेगा तोड़

शुक्रवार को सुबह 9 बजे पीएम मोदी ने देश को संबोधित किया. किस मुद्दे पर करेंगे किसी को अंदाजा नहीं था. कयास लग रहे थे लेकिन सभी गलत साबित हुए. पीएम ने आते ही ऐलान कर दिया कि वे तीनों कृषि कानून वापस लेने वाले हैं. वहीं कानून जिन्हें सरकार आजादी के बाद का सबसे बड़ा रिफॉर्म बता रही थी. पीएम मोदी के इस फैसले ने सभी को हैरान कर दिया. सवाल उठने लगे कि ऐसा क्या हुआ कि कभी ना झुकने वाली सरकार ने तुरंत इस मुद्दे पर कदम पीछे खींच लिए. सवाल तो ये भी उठने लगा कि सरकार का चुनाव से ठीक पहले लिया गया ये फैसला एक मास्टर स्ट्रोक है या फिर मास्टर फेलियर.

Advertisement

अब ये पहलू समझने के लिए पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर क्यों केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला कर लिया. राजनीतिक चर्चाओं में ये बात आती रही है कि किसान आंदोलन की वजह से सरकार की लोकप्रियता में कमी आई है. इसके ऊपर हाल ही में हुए उपचुनावों में भी बीजेपी का प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा. उपचुनावों के नतीजों पर विरोधी खेमों की तरफ से भी इसी तरह की आवाज उठीं.

मोदी का फैसला मास्टर स्ट्रोक या मास्टर फेलियर?

सरकार पर इस बात का भी दवाब था कि आंदोलन की वजह से बंद पड़ी सड़कों को खुलवाना था. लेकिन क्योंकि किसान आंदोलन खत्म करने के कोई संकेत नहीं दे रहे थे, ऐसे में कदम बढ़ाने की जिम्मेदारी सरकार पर ही आ गई थी. अब सरकार ने वो कदम उठाया भी, किसी को उम्मीद नहीं थी, लेकिन ऐसा किया गया. इस फैसले से विपक्ष खुश है, किसान का एक वर्ग भी जश्न मना रहा है, लेकिन सोशल मीडिया पर सिर्फ दो ही शब्द ट्रेंड कर रहे हैं- #Masterstroke और #Disappointed. अब इन दो शब्दों का ट्रेंड होना ही बताता है कि लोग भी ये निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि मोदी सरकार का ये फैसला मास्टर स्ट्रोक की तरह देखा जाए या फिर इसे मास्टर फेलियर करार दिया जाए.

Advertisement

मास्टर स्ट्रोक कारण 1

अब बात पहले उस तबके की करते हैं जिसे पीएम मोदी का यूं अचानक लिया गया फैसला एक मास्टर स्ट्रोक दिखाई पड़ रहा है. कुछ महीनों में पंजाब चुनाव होने जा रहे हैं. राज्य में बीजेपी की स्थिति पहले से ही पतली चल रही है, मुकाबला भी कांग्रेस बनाम आम आदमी पार्टी का बताया जा रहा है. अकाली भी बीजेपी से अलग हो चुकी है. मतलब बीजेपी के लिए ये डगर काफी मुश्किल है. लेकिन अब क्योंकि तीनों कृषि कानून वापस ले लिए गए हैं, ऐसे में हो सकता है कि अकाली दल फिर अपने पुराने साथी से हाथ मिला ले. अगर ऐसा हो जाता है तो सिर्फ टाइमिंग के नजरिए से पीएम मोदी का तीनों कृषि कानून वापस लेने वाला फैसला मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है.

मास्टर स्ट्रोक कारण 2

इस मुद्दे का दूसरा पहलू भी पंजाब चुनाव से ही जुड़ा हुआ है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ खुद की पार्टी बना ली है. कैमरे के सामने कह चुके हैं कि अगर बीजेपी तीनों कृषि कानून को वापस ले लेती है तो वे साथ आ सकते हैं. अब उनके मन की इच्छा तो पूरी हो गई है. पीएम के फैसले के बाद कैप्टन ने कह भी दिया है कि वे बीजेपी के साथ जा सकते थे. ऐसे में अगर एक फैसला बीजेपी को अमरिंदर सिंह जैसा कद्दावर चेहरा दे देता है, तो ये राजनीतिक दृष्टि से ये काफी अहम माना जाएगा. पंजाब में बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है. पिछले चुनाव भी जो कभी जीते गए हैं, वहां पर अकालियों का ज्यादा जोर रहा है. ऐसे में अमरिंदर का बीजेपी की तरफ झुकना पंजाब की राजनीति में कई समीकरण बदलने का दमखम रखता है. इस लिहाज से भी प्रधानमंत्री का फैसला मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है.

Advertisement

मास्टर स्ट्रोक कारण 3

एक और एंगल से इसे समझा जा सकता है. देश का सबसे बड़ा राज्य चुनावी सरगर्मी में डूबा हुआ है. वहां किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम यूपी में स्थिति बीजपी के लिए ज्यादा मजबूत दिखाई नहीं पड़ रही. सत्ता की चाबी जरूर इस क्षेत्र से जुड़ी है, लेकिन किसानों का सबसे ज्यादा गुस्सा भी यही देखने को मिला है. गन्ना किसान हो या फिर हो गुजर, जाट जाति वाले दूसरे किसान, सभी ने तीनों कृषि कानून का विरोध किया था. खुद राकेश टिकैत ने भी यहां पर माहौल को लगातार बीजेपी के खिलाफ बनाकर रखा. ऐसे में योगी सरकार की सत्ता वापसी मुश्किल हो रही थी. इसका समाधान काफी आसान था- किसानों को तुरंत राहत देना. वो काम पीएम मोदी ने कर दिया. सीधे जड़ पर वार करते हुए कानून ही वापस ले लिए गए. इसलिए बीजेपी समर्थक और कुछ बुद्धिजीवी इसे एक मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं.

मास्टर स्ट्रोक कारण 4

अब इस बड़े और निर्णायक फैसले का एक भावनात्मक पहलू भी देखा जा रहा है. बीजेपी नेता लगातार कह रहे हैं कि तीनों कृषि कानूनों का वापस होना पीएम मोदी का 'बड़प्पन' है. ये एक अकेला शब्द ही कई बड़े संदेश देने का काम कर रहा है. जब राजनीतिक गलियारों में इस बात का शोर चल रहा हो कि मोदी सरकार झुक चुकी है, मोदी सरकार हार गई है, ऐसे वक्त में ये कहना कि पीएम मोदी ने बड़ा दिल दिखाते हुए तीनों कानून वापस लिए हैं, मायने रखता है. अभी तक हर तरफ बीजेपी की तरफ से मोदी की मजबूत छवि प्रोजेक्ट की गई है. बताया जाता है कि वे झुकने वालों में से नहीं हैं. लेकिन अब अगर उनके इस इमोशनल अवतार को भी एक रणनीति के तहत भुना लिया गया तो ये भी फायदा दे सकता है.

Advertisement

मास्टर फेलियर कारण 1

लेकिन अब जितने कारण पीएम मोदी के इस फैसले को मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं, उतने ही कारण इसे एक मास्टर फेलियर भी बता सकते हैं. एक वर्ग पीएम मोदी के इस फैसले पर सवाल इसलिए भी खड़े कर रहा है क्योंकि उसके मन में प्रधानमंत्री के पुराने बयान आज भी ताजा हैं. वो बयान जहां पर पीएम ने इसे एक क्रांतिकारी और 21वीं सदी का सबसे जरूरी कदम बता दिया था. अब जो कानून तब जरूरी था, अब क्या उसकी जरूरत खत्म हो गई है? वहीं क्योंकि कल के संबोधन में प्रधानमंत्री ने देश से माफी मांगी है, ऐसे में ये भी सवाल उठ जाता है कि 'गलती' क्या हुई है? कानून गलत थे, ये गलती थी, कानून में खामियां थी ये गलती थी, सरकार की नीयत गलत रही, ये गलती थी? इतने सारे सवाल मन में इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि पीएम मोदी के पिछले हर भाषण में पूरे विश्वास के साथ इन कानूनों की पैरवी कर दी गई थी. अब जब उन दावों से ही पीछ हट लिया गया है, लिहाजा कुछ लोग इसे मास्टर फेलियर करार दे रहे हैं.

मास्टर फेलियर कारण 2

दूसरी वजह जो बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ जाती है वो है उनकी खुद की छवि. पिछले सात सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में अपनी सरकार चला रहे हैं. ये एक ऐसी सरकार रही है जिसने कई बड़े फैसले किए हैं. ऐसे फैसले जिन पर बवाल हुआ, विरोध हुआ, विपक्ष का सड़कों पर प्रदर्शन हुआ, लेकिन सरकार कभी नहीं झुकी, सरकार कभी नहीं हारी. नोटबंदी का उदाहरण ले लिए, बैंकों के बाहर लंबी कतारे थीं, कई ने अपनी जान भी गंवाई. लेकिन सरकार अपने फैसले से टस से मस नहीं हुई. जीएसटी लाया गया, कुछ समय के लिए व्यापारियों का एक वर्ग खूब नाराज रहा, गुजरात में भी सत्ता तक गंवाने की नौबत आ रही थी. लेकिन उस वक्त भी सरकार अपने फैसले पर अडिग रही. फिर पीएम मोदी ने ट्रिपल तलाक के कानून को ला दिया. विवादित था, मुद्दा भी काफी संवेदनशील. लेकिन सरकार ने अपनी इच्छा शक्ति दिखाते हुए हर विरोध को खामोश कर दिया. CAA कानून पर भी बवाल हुआ, बात इतनी ज्यादा बढ़ गई कि शहरों में हिंसा होने लगी. सड़कों पर पत्थरबाजी हुई, पुलिस का लाठीचार्ज देखने को मिला. कुछ जगहों पर कर्फ्यू तक लग गया. लेकिन हुआ क्या, सरकार अपने फैसले पर कायम रही.

Advertisement

मास्टर फेलियर कारण 3

अब इन प्रदर्शन के दौरान कुछ लोगों ने सरकार का विरोध किया था, लेकिन ज्यादातर मान रहे थे कि ये सरकार बड़े फैसले लेती है. ऐसे फैसले जो कड़वी दवाई की तरह काम करते हैं. शुरुआत में दर्द लेकिन फिर देश के लिए फायदा. इस छवि के दम पर ही पीएम मोदी ने दो बार सत्ता संभाल ली है. लेकिन अब क्योंकि मोदी सरकार ने अपने ही बनाए कानूनों को वापस ले लिया है, उस छवि को ठेस पहुंची है. जो समर्थक पीएम मोदी को मजबूत नेता के तौर पर देखते हैं, उन्हें असहज महसूस हो रहा है. एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार का यूं अपने कदम पीछे खींच लेना हैरान कर रहा है. सोशल मीडिया पर तो कुछ लोग इस फैसले को 'चुनावी मजबूरी' का नाम दे रहे हैं. इस शब्द का इस्तेमाल ही बता रहा है कि कुछ वर्गों के लिहाज से पीएम मोदी का ये फैसला बैकफायर कर गया है. उन्हें आज भी पीएम मोदी का वो बयान याद आ रहा है- मजबूर नहीं मजबूत सरकार. लेकिन इस फैसले में मजबूरी झलक रही है, इसलिए एक वर्ग भी इसे मास्टर फेलियर कहने से गुरेज नहीं कर रहा.

मास्टर फेलियर कारण 4

एक और पहलू नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. किसानों का मजबूत हो जाना. जिस आंदोलन को एक साल पहले शुरू किया गया था. उसे शुक्रवार को सबसे बड़ी सफलता मिल गई. उस आंदोलन ने 350 सीटें जीतने वाली मोदी सरकार को भी अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया. प्रदर्शन तो शाहीन बाग में भी हुए थे, लेकिन तब उस आंदोलन ने सरकार को नहीं झुकाया. अब स्थिति अलग है. एक साल से चल रहे किसान आंदोलन ने सरकार को ही इतना मजबूर बना दिया कि तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़ गए. ऐसे में जीत तो मिल गई लेकिन कई किसानों ने अपनी जान भी गंवाई. इस वजह से कृषि कानूनों की वापसी के बाद प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रति एक बार नरम रुख देखने को मिल सकता है. 26 जनवरी की हिंसा के बाद जो माहौल किसानों के विरोध में चला गया था, उसमें बदलाव देखने को मिल सकता है. अगर ये सहानुभूति चुनावी मौसम में भी सक्रिय रहती है तो इसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ सकता है. और अगर ये नुकसान असल में हो गया, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला मास्टर स्ट्रोक नहीं मास्टर फेलियर कहा जाने लगेगा.

Advertisement

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement