
नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार बनाम अन्य राजनीतिक दलों की सियासी जंग छिड़ी हुई है. मंगलवार को कच्छ में नरेंद्र मोदी ने किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने के लिए विपक्ष पर हमला बोला.
पीएम ने अपने सहयोगियों और किसानों से बातचीत की अगुवाई कर रहे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए ये इशारा किया कि सरकार विरोध प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक हाथ होने का जो दावा कर रही है, उसका खुलासा करने की जरूरत है.
पीएम ने कहा, “विपक्षी नेता एक समय जब सत्ता में थे तो इन सुधारों के लिए बल्लेबाजी कर रहे थे. अब जब यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया है, तो वे किसानों को गुमराह कर रहे हैं.” तो क्या विपक्ष ने वास्तव में इन कृषि सुधारों पर यू-टर्न ले लिया?
कांग्रेस ने मारी पलटी
कृषि कानूनों पर कांग्रेस का दोहरा रुख जगजाहिर है. अक्टूबर के पहले हफ्ते में राहुल गांधी पंजाब के नूरपुर में अपनी पार्टी की ‘खेती बचाओ यात्रा’ में शामिल हुए थे जिसमें उन्होंने एक लाल ट्रैक्टर चलाया था. एक हफ्ते पहले उन्होंने यह ट्वीट पोस्ट किया.
इस पोस्ट में एक अनकहा आरोप ये है कि नए कृषि कानून प्राइवेट प्लेयर्स के लिए बनाए गए हैं ताकि वे मौजूदा एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (APMC) के विकल्प के रूप में शोषणकारी अनाज खरीद मंडियां संचालित कर सकें.
लेकिन कांग्रेस के 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणा-पत्र में किसानों से वादा किया गया था कि एपीएमसी एक्ट को रद्द किया जाएगा और किसानों की उपज की खरीद के लिए अतिरिक्त सेट-अप का भी वादा किया गया था, जैसा कि नए कानून में प्रस्तावित है.
2 अप्रैल, 2019 को जारी कांग्रेस के घोषणा-पत्र में कहा गया था, “कांग्रेस एपीएमसी एक्ट रद्द करेगी और निर्यात व अंतरराज्यीय व्यापार समेत कृषि उपज के व्यापार को सभी प्रतिबंधों से मुक्त करेगी.”
केजरीवाल ने भी लिया यू-टर्न
आम आदमी पार्टी (AAP) ने तीनों कृषि कानूनों में से एक को तब अधिसूचित किया जब किसानों का प्रदर्शन दिल्ली पहुंच गया था. आलोचनाओं का सामना करते हुए पार्टी ने किसान आंदोलन के मद्देनजर दिल्ली पुलिस को शहर के 9 स्टेडियम को अस्थायी जेल बनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. पार्टी ने 8 दिसंबर को किसानों के 'भारत बंद' का भी समर्थन किया और फिर विरोध जताने के लिए किसानों की ओर से रखे गए एक दिवसीय उपवास में भी शामिल हुई.
लेकिन 24 अक्टूबर 2016 को पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए जारी हुए पार्टी के घोषणा-पत्र में तो कुछ और ही कहा गया था.
2016 में 'आप' के घोषणा-पत्र में वादा किया गया था कि एपीएमसी एक्ट में संशोधन के जरिए “किसानों को राज्य के अंदर और बाहर अपनी पसंद के खरीदार और बाजार में अपनी उपज बेचने की अनुमति दी जाएगी” और “किसानों को बेहतर मूल्य” दिलाया जाएगा.
घोषणापत्र से पता चलता है कि AAP कृषि बाजार में प्राइवेट प्लेयर्स की एंट्री के विरोध में नहीं थी, जैसा कि 2016 में पंजाब में इसने वादा किया था, “बाजार के निजीकरण पर जोर: हर जिले में बाजार और प्रोसेसिंग सेंटर्स में बड़े पैमाने पर निजी निवेश होगा, जहां किसान अपनी उपज बेचेंगे; ग्रामीण उद्यमियों को वही लाभ दिया जाएगा जो इंडस्ट्रलिस्ट और आईटी स्टार्ट-अप को मिलते हैं.”
एपीएमसी खत्म करने के लिए कांग्रेस का समर्थन
यहां तक कि अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब कांग्रेस ने भी एपीएमसी ढांचे को अपग्रेड करने की जरूरत के बारे में बात की थी. पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 के कांग्रेस के घोषणा-पत्र में कहा गया, “डिजिटल टेक्नोलॉजी के जरिये राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मार्केट तक किसानों की पहुंच बनाने के लिए मौजूदा एमएसपी में बिना कोई छेड़छाड़ किए एपीएमसी एक्ट को अपडेट किया जाएगा.”
एमएसपी पर इसने सख्त रुख अपनाते हुए कहा था, भारत सरकार को मौजूदा एमएसपी सिस्टम के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
सिर्फ इतना ही नहीं है. दिल्ली में पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह किसान के विरोध प्रदर्शन में भले ही पूरा जोर लगाए हुए हैं, लेकिन 2004 के बाद से पार्टी ने हर स्तर पर एपीएमसी स्ट्रक्चर को खत्म करने का समर्थन किया है.
महाराष्ट्र में, कांग्रेस अपने सहयोगी शरद पवार के साथ नए कृषि कानूनों का विरोध करती रही है. लेकिन यूपीए सरकार में बतौर कृषि मंत्री पवार ने कई मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कृषि सुधारों पर जोर दिया था, जिनमें एपीएमसी में बदलाव भी शामिल था.
2011 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण कंज्यूमर्स अफेयर पर 'मुख्यमंत्रियों के समूह' का हिस्सा थे जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बना था. इस समूह ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को सौंपी थी, जिसमें वितरण माध्यमों की दक्षता में सुधार और संगठित क्षेत्रों व सहकारी समितियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए कृषि बाजारों के उदारीकरण की सिफारिश की गई थी.
उस समय अविभाजित आंध्र प्रदेश के सीएम किरन रेड्डी भी इस ‘ग्रुप ऑफ सीएम’ के सदस्य थे, जिन्होंने पुरानी एपीएमसी प्रणाली के खिलाफ सुधारों का समर्थन किया था. 2004 में सत्ता में आने के बाद यूपीए ने पिछली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा तैयार ‘मॉडल लॉ फॉर एग्रीकल्चर मार्केटिंग’ पर काम करना शुरू कर दिया था.
26 अगस्त, 2004 को तब के कृषि मंत्री शरद पवार ने जूनियर मंत्री कांतिलाल भूरिया ने एपीएमसी एक्ट में संशोधन को लेकर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था, “28 जून 2002 को अपनी रिपोर्ट में कृषि बाजार सुधारों पर एक अंतर-मंत्रालयीय टास्क फोर्स ने सिफारिश की थी कि राज्य सरकारों को जहां भी जरूरत हो, एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग रेग्यूलेशन एक्ट (APMC एक्ट) में संशोधन करना चाहिए.”
यूपीए का यही रुख तब भी बना रहा जब वह सत्ता से बाहर हो गई और कांग्रेस ने अपने 2019 के घोषणा-पत्र में भी इसे डाला था. मोदी समिति के रिपोर्ट सौंपने के आठ दिन बाद 22 नवंबर 2011 को एक सवाल के जवाब में यूपीए सरकार ने लोकसभा को बताया था कि सरकार एक कानून पर काम रही है जिसमें "किसानों से सीधे खरीद, कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग, निजी और सहकारी क्षेत्रों में बाजारों की स्थापना के प्रावधान" शामिल हैं.”
एपीएमसी एक्ट में संशोधन पर सर्वदलीय सहमति
दिसंबर 2019 के अंत तक एपीएमसी एक्ट में संशोधन करने और प्राइवेट प्लेयर्स को कृषि उपज की खरीद की अनुमति देने की जरूरत पर सभी दलों के बीच एक वर्चुअल सहमति थी. 9 दिसंबर, 2019 को कृषि मामले पर संसद की स्थायी समिति ने संसद भवन एनेक्सी में एक बैठक की.
इसने अपनी 62वीं रिपोर्ट (संसद में 12 दिसंबर, 2019 को पेश की) को अंगीकार किया जिसमें कहा गया कि “एपीएमसी सिस्टम कृषि उपज के उचित मूल्य की खोज, बाजार को नियमित करने और लेनदेन में पारदर्शिता प्राप्त करने के लिए बनाया गया था, जो कि राजनीति, भ्रष्टाचार, प्रतिस्पर्धा को कम करने, व्यापारियों के कार्टेलिज़ेशन, बाजार शुल्क के नाम पर अनुचित कटौती, कमीशन शुल्क इत्यादि का एक बड़ा केंद्र बन गया है।
कृषि उपज के लिए प्रभावी मूल्य खोज, बाजार प्रथाओं को विनियमित करने और लेनदेन में पारदर्शिता प्राप्त करने के लिए बनाई गई APMC तंत्र राजनीति, भ्रष्टाचार, प्रतिस्पर्धा को कम करने, व्यापारियों की गुटबाजी, बाजार शुल्क के नाम पर अनुचित कटौती, कमीशन शुल्क आदि का केंद्र बन गया है. यहां व्यापारियों और बिचौलियों का एकाधिकार है. देश भर के एपीएमसी बाजार विभिन्न कारणों से किसानों के हित में काम नहीं कर रहे हैं.”
समिति ने यह भी कहा कि कुछ राज्यों में एपीएमसी एक्ट के प्रावधान किसानों के लिए बहुत ज्यादा प्रतिबंध लगाते हैं, यहां तक कि बाजार यार्ड के बाहर कृषि उपज की बिक्री होने पर भी बाजार शुल्क लगाया जाता है.
इसमें कहा गया है कि कई एपीएमसी बाजारों में ट्रेडिंग के लिए कई लाइसेंस की जरूरत होती है और राज्य के भीतर भी एक ही कमोडिटी पर कई मार्केट फीस वसूली जाती है. समिति ने ये भी कहा कि एपीएमसी एक्ट में मार्केटिंग और प्रतिस्पर्धा के कई माध्यमों को प्रोत्साहित करने पर बहुत ज्यादा प्रतिबंध है.
ये बात ज्यादातर विपक्षी पार्टियों द्वारा बताई जा रही कहानी के उलट है कि तीन कानूनों को "अचानक" और बिना किसी चर्चा के लाया गया है.
इस समिति में लोकसभा के 31 और राज्यसभा के 10 सदस्य थे. 31 सदस्यों में से 13 भाजपा के थे और बाकी 18 सांसद कांग्रेस, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, एमडीएमके, टीआरएस, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), वाईएसपी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और अन्य दलों के थे.
पैनल के गैर-भाजपाई सदस्यों में मुलायम सिंह यादव (सपा), अबू ताहिर खान (AITC), अमोल रामसिंह कोल्हे (NCP), अफजल अंसारी (BSP), ए गणेशमूर्ति (MDMK), भीमराव बसवंतराव पाटिल (TRS), नवनीत रवि राणा (स्वतंत्र), विनायक भाऊराव राउत (शिवसेना), पोचा ब्रह्मानंद रेड्डी (YSR कांग्रेस), मोहम्मद सादिक (कांग्रेस), वीके श्रीकंदन (कांग्रेस), प्रताप सिंह बाजवा (कांग्रेस), सुखदेव सिंह ढींडसा (एसएडी), राम नाथ ठाकुर (जेडी-यू), वाइको (MDMK), आर वैथीलिंगम (AIADMK), छाया वर्मा (कांग्रेस) और चंद्रपाल सिंह यादव (सपा) शामिल थे.
रिपोर्ट में एपीएमसी एक्ट की खराबियों पर प्रकाश डाला गया था, जिसमें कहा गया कि इसके प्रावधान सही मायने में लागू नहीं किए जा रहे हैं. इसमें कहा गया, “बाजार शुल्क और कमीशन शुल्क कानूनी रूप से व्यापारियों पर लगाया जाना है; लेकिन किसानों की शुद्ध आय की राशि घटाकर इसे किसानों से लिया जाता है.”
दिलचस्प बात ये है कि समिति ने कहा कि एपीएमसी में सुधार के प्रस्तावों पर राज्य सरकारों की प्रतिक्रिया अनमनी थी.
रिपोर्ट में एपीएमसी के खराब कवरेज की भी आलोचना की गई क्योंकि 23 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों में सिर्फ 6,630 एपीएमसी मंडियां थीं. बिहार, केरल, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन और दादरा नगर हवेली में कोई मंडियां नहीं थी.
बीजेपी की एमएसपी को लेकर कशमकश
केंद्र में बीजेपी सरकार एमएसपी को क़ानून में जोड़ने की मांग को स्वीकार करने को लेकर अनिच्छुक है, लेकिन पिछले दिनों इसके नेताओं ने जोर दिया कि किसानों को एमएसपी के आश्वासन और समर्थन की जरूरत है. पीएम मोदी ने 2011 में कंज्यूमर्स अफेयर्स के चेयरमैन के रूप में सिफारिश की थी कि एमएसपी पर एडवांस घोषणा की जरूरत है.
उस समय पीएम मनमोहन सिंह को सौंपी गई उनकी रिपोर्ट में कहा गया था, “जब तक बाजार पर्याप्त रूप से प्रतिस्पर्धी नहीं हो जाते, तब तक सरकार द्वारा हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत सरकार विभिन्न वस्तुओं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित करने की नीति जारी रख सकती है.”
राजनीतिक दलों के स्टैंड में बदलाव स्पष्ट हैं. दिसंबर 2019 तक सभी राजनीतिक पार्टियों में कृषि कानूनों को लेकर कोई खास विरोध नहीं हुआ. राहुल गांधी, शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, TMC और AAP के सदस्यों की स्थिति एक जैसी थी कि APMC एक्ट में संशोधन और कृषि क्षेत्र में सुधार लाना.
दिसंबर 2019 में एग्रीकल्चर मामलों की स्थायी समिति ने सरकार से कहा था कि वह सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों की एक समिति का गठन करे जो कि जर्जर एपीएमसी तंत्र में संशोधन पर आगे बढ़ सके.
मार्च 2020 तक कोरोना महामारी आ गई और 5 जून को ठीक लॉकडाउन के बीच में सरकार ने कृषि से संबंधित तीन अध्यादेश पास किया जिसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी. यहीं से कुछ राज्यों, खासकर पंजाब में विरोध शुरू हो गया.
सितंबर में सरकार ने इन विधेयकों को पारित करवाने के लिए लोकसभा में अपने बहुमत का इस्तेमाल किया. इस आपाधापी में सरकार ने अपने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया, जिससे राज्य में अशांति और बढ़ गई. जब विरोध कर रहे किसान दिल्ली की सीमाओं तक पहुंच गए तब पार्टियों ने उनका समर्थन करना पसंद किया, भले ही इसका मतलब उनके पहले के स्टैंड पर यू-टर्न लेना था.