
धरना, बैठक, बातचीत, चेतावनी...अब तक सबकुछ हो चुका है और हो रहा है, मगर समाधान कोई नहीं निकल सका है. किसान सड़कों पर है, क्योंकि रास्ता नहीं निकल रहा है. किसानों और सरकार के बीच सोमवार को आठवें राउंड की बैठक भी बेनतीजा रही. बातचीत की टेबल पर केंद्र सरकार के मंत्री और किसान नेता करीब 4 घंटे तक आमने सामने रहे लेकिन फाइनल रिजल्ट टाई ही रहा. अब सवाल ये है कि आखिर पेच कहां फंसा कि बात एक नई तारीख तक पहुंच गई और अब इस मसले का हल कैसे होगा?
सरकार और किसानों के तर्क
दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं. किसान संगठन की सबसे बड़ी मांग जो पहले दिन से बनी हुई है वो ये कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं. जबकि सरकार इसके लिए राजी नहीं है. सरकार का कहना है कि वो पूरे देश के किसानों को ध्यान में रखकर फैसला करेगी. दूसरी तरफ किसान चाहते हैं कि एमएसपी पर अलग कानून बने.
दरअसल, किसान फसलों के एमएसपी की पूरी गारंटी चाहते हैं. सरकार से किसान एमएसपी पर लिखित गारंटी मांग रहे हैं. किसानों को लगता है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग के दौर में एमएसपी की बात बेमानी हो जाएगी, किसानों को औने-पौने दामों में फसल बेचनी पड़ेगी. किसान चाहते हैं कि उसकी हर फसल एमएसपी पर खरीदी जाए. एमएसपी से कम दाम पर खरीदने वालों को सजा देने के लिए कानून बनाया जाए. सरकार किसानों से मुख्य रूप से धान, गेहूं और दलहन की खरीदारी करती है. किसान चाहते हैं कि उसकी दूसरी फसलों को सरकार खरीदे या कोई निजी कंपनी, किसानों को एमएसपी मिलनी चाहिए. एमएसपी पर सरकार का तर्क है कि इस पर कोई भी असर नहीं पड़ेगा.
सरकार चाहती है कि कानून पर क्लॉज वाइज चर्चा हो लेकिन किसान संगठन कानूनों की वापसी के अलावा कुछ नहीं चाहते हैं. किसानों का कहना है न अपील, न दलील, सिर्फ रिपील (वापस).
पूरे देश के किसानों का ध्यान रखने वाली सरकार की दलील पर किसान नेताओं का कहना है कि सरकार कहती है देश के बाकी किसान खुश हैं तो फिर हम सरकार से ये पूछना चाहते हैं कि जो सितंबर से सड़कों पर बैठे हैं वो कौन हैं. किसान नेताओं का ये भी तर्क है कि देश के करीब 500 किसान संगठन आंदोलन कर रहे हैं, क्या सरकार उन्हें किसान नहीं मानती?
सरकार ने मीटिंग में क्या कहा
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार की बैठक में कहा कि हमें देशभर के बाकी राज्यों के किसानों से भी बात करनी होगी क्योंकि हमें बाकी देश के किसानों का हित भी देखना है. तोमर ने कहा कि बहुत से राज्यों के किसान और संगठन इन तीनों कानूनों का समर्थन कर रहे हैं, उनका मानना है कि इससे किसानों का फायदा होगा. तोमर ने कहा कि बाकी किसान संगठनों से बातचीत करने के बाद ही मैं आपको बता पाऊंगा, इसलिए 8 जनवरी को अगली मीटिंग रखी गई है.
किसानों की मांग पर सरकार ने एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश भी मीटिंग में रखी थी. सरकार का कहना था कि ये समिति तीनों कानूनो में क्या-क्या संशोधन किए जाने चाहिएं इस पर विचार करेगी. लेकिन सरकार के इस प्रस्ताव को किसान संगठनों ने नकार दिया.
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किसान नेताओं ने क्या कहा
किसान नेता बूटा सिंह का कहना है कि मीटिंग में सरकार बार-बार यही कहती रही कि वो संशोधन करने को तैयार है, लेकिन हम संशोधन नहीं, तीनों कानून की वापसी चाहते हैं. बूटा सिंह ने कहा कि इसीलिए सरकार ने समय मांगा है और 8 जनवरी को बैठक बुलाई है. सरकार बाकी लोगों से बातचीत करके हमलोगों को बताएगी.
केंद्रीय मंत्री तोमर ने मीटिंग के बाद कहा कि स्वाभाविक रूप से रास्ता निकालने के लिए तालियां दोनों हाथ से ही बजाते हैं. अब देखना होगा कि क्या वाकई तालियां दोनों तरफ से बजाई जाती हैं या नहीं. क्योंकि किसानों को दिल्ली की सरहदों पर डेरा डाले हुए 40 दिन से ज्यादा हो गए हैं और अब तक सरकार और किसान नेताओं के बीच अगर किसी बात पर एक राय बनती है तो बस ये कि मीटिंग की अगली तारीख क्या होगी.